(इस खबर को सबसे पहले दिसंबर 2015 में पब्लिश किया गया था. क्विंट के आर्काइव से इस खबर को दोबारा पब्लिश किया गया है.)
भागदौड़ भरी जिंदगी में कहां वक्त मिलता है कविता से जुड़ने का, उन्हें सुनने का, उनमें छिपी यादों को टटोलने का. क्विंट राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की याद में आपके लिए लेकर आया है ये खास पेशकश.
मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी के सर्वाधिक प्रभावी और लोकप्रिय रचनाकारों में से एक हैं. उनकी
कविताओं में बौद्ध दर्शन, महाभारत और रामायण के कथानक स्वत: उतर आते हैं. खड़ी बोली हिंदी के रचनाकार, मैथिलीशरण गुप्त ने 12 साल की उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं.
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झांसी में हुआ और उन्हें साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से संबोधित किया जाता था.
59 वर्षों में गुप्त जी ने गद्य, पद्य, नाटक, मौलिक और अनूदित, सब मिलाकर, हिंदी को लगभग 74 रचनाएं प्रदान की हैं, जिनमें दो महाकाव्य, 20 खंड काव्य, 17 गीतिकाव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य हैं. पिताजी के आशीर्वाद से वह राष्ट्रकवि के सोपान तक पदासीन हुए. महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहे जाने का गौरव प्रदान किया. भारत सरकार ने उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें दो बार राज्यसभा की सदस्यता प्रदान की. हिन्दी में मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-साधना सदैव स्मरणीय रहेगी. बुंदेलखंड में जन्म लेने के कारण गुप्त जी बोलचाल में बुंदेलखंडी भाषा का ही प्रयोग करते थे.
पंकज त्रिपाठी ने जिस कविता के अंशों को आपके सामने रखा है वो मैथिली शरण गुप्त की कविता ‘यशोधरा’ है. गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा केंद्र में है, यशोधरा की मन:स्थितियों का मार्मिक अंकन इस काव्य में हुआ है तो ‘विष्णुप्रिया’ में चैतन्य महाप्रभु की पत्नी केंद्र में है.
मैथिलीशरण गुप्त का निधन 12 दिसंबर, 1964 को झांसी में हुआ.
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