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अमरावती हिंसा में सबका हुआ नुकसान, क्या हिंदू-क्या मुसलमान

अमरावती हिंसा में सभी को भारी नुकसान हुआ है लेकिन राज्य सरकार और विपक्ष एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हैं

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"जिस दिन बंद था उस दिन सुबह मेरी बेटी का इंतकाल हो गया था. मेरी दुकान बंद था. फिर भी ताला तोड़कर मेरी दुकान को तहस-नहस कर उसे आग लगा दी" अमरावती में भड़की हिंसा के बाद पूरी तरह से टूटे हुए वारिस शेख बताते हैं.

अमरावती के हरशराज कॉलनी में वारिस पिछले आठ सालों से सलून चलाते थे. शभर में हिंसा भड़कने से पहले ही शेख परिवार के घर मातम छाया हुआ था. क्योंकि वारिस की बेटी ने अस्पताल में उस दिन सुबह दम तोड़ दिया था. जब वारिस अपनी मरहूम बेटी को आखिरी बार सीने से लगाए अस्पताल में बैठा था तब शहर में भड़की आग की लपटों में उसकी दुकान जलकर खाक हो रही थी.

12 नवंबर की रात दुकान बंद करके वारिस अस्पताल पहुंचे थे. उसी दिन दोपहर को त्रिपुरा की कथित हमले की घटना के विरोध में अमरावती में रजा अकादमी और कुछ मुस्लिम संगठनों ने अमरावती शहर में मोर्चा निकाला था. जिसमें कथित रूप से बीजेपी नेता प्रवीण पोटे के घर और कुछ दुकानों पर पथराव हुआ. इसके विरोध में दूसरे ही दिन हजारों की संख्या में बीजेपी ने भी शहर में प्रदर्शन किया. जिसमें हिंसा भड़की और कई दुकानों पर पथराव और आगजनी की घटना हुई. स्थानीय पुलिस के मुताबिक इसमें लगभग दर्जन भर दुकानों का लांखों का नुकसान हुआ है.
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वारिस शेख का कहना कि एक दुकान खड़ा करने में उसके पिता की पूरी जिंदगी खर्च हो गई. हर महीना इस दुकान का 40 हजार लोन भरना पड़ता है. लेकिन कुछ दंगाइयों की वजह से आज सब कुछ राख हो गया. उसकी दुकान में हिंदू, मुस्लिम, सिंधी सभी लोग आते थे. वो सभी को अच्छी सर्विस देता और कभी किसी से झगड़ा नहीं किया. लेकिन फिर भी वो नफरत का शिकार बन गया.

हालांकि वारिस आज भी मानते हैं कि जो होना था वो तो हो गया. अब अमन से रहना जरूरी है. क्योंकि इन दंगाइयों का कोई मजहब नहीं होता.

तो वहीं शहर के दूसरे छोर पर राजेश गुप्ता एक छोटा से दाबेली फ़ास्ट फ़ूड कॉर्नर पर अपना घर चलाते हैं. कोरोना की मार झेलने के बाद इस दिवाली में हुई कमाई से राजेश खुश थे. महामारी के दौरान हुए कर्जे के पैसों को वो बस लौटाने ही वाले थे कि उनकी दुकान हिंसा की चपेट में आ गई.

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उस दिन को याद करते हुए राजेश ने बताया कि, "अचानक एक साथ सौ डेढ़ सौ की भीड़ दुकानों पर हमला करने लगी. मैं दुकान बंद कर ही रहा था कि कुछ लड़कों ने पथराव और आगजनी शुरू की. मेरे गल्ले से पैसे लूटे और मेरे लड़के को पीटा. विरोध करने का अधिकार सबको है लेकिन कायदे से विरोध होना चाहिए. अगर दुकानें बंद करने से तुम्हारी समस्या का हल निकलता है तो जरूर करें लेकिन तोड़फोड़ और लूटपाट करना गलत है."

हिंसक भीड़ ने मेडिकल की दुकान तक को नहीं छोड़ा. जिस दुकान मालिक ने महामारी के वक्त इमरजेंसी सेवा होने के नाते अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों को जीवनदान दिया उसे भी दंगाइयों ने बेरहमी से पीटा.

वसंत टॉकीज इलाके में स्थित मेडिकल पॉइंट के मालिक हरीश अड्डा ने बताया कि, "जैसे ही हिंसक भीड़ द्वारा दुकानों को निशाना बनाया गया मेरा बेटा दौड़कर आया और दुकान बंद करने को कहा. दुकान का शटर बंद करके निकल ही रहे थे कि भीड़ ने सरिया, लाठी, डंडे से हमें पीटना शुरू किया. मेरे साथ मेरे बेटे और भतीजे को कुछ दंगाइयों ने बहुत मारा."
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अमरावती हिंसा में अब तक 35 मामले दर्ज किए गए हैं और 188 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. ऐसी जानकारी लॉ एंड आर्डर, एडीजी राजेन्द्र सिंह ने दी है. हालांकि आम आदमी और व्यापारी आज भी डर के माहौल में जी रहे हैं. पिछले एक सप्ताह से इलाके में कर्फ्यू लगा है और इंटरनेट सेवा पर बैन लगा हुआ है. बावजूद इसके अब तक पुलिस इस हिंसा की जड़ तक नहीं पहुंच पाई है.

गौरतलब है कि हिंदू हो या मुस्लिम, सभी को भारी नुकसान हुआ है लेकिन राज्य सरकार और विपक्ष एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हैं. जहां एक तरफ नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फड़नवीस इस हिंसा को स्टेट स्पॉन्सर्ड बताकर माइनोरिटीज के ध्रुवीकरण करने का एमवीए सरकार का प्रयोग बता रहे हैं. तो वहीं मंत्री नवाब मलिक इसका ठीकरा बीजेपी पर फोड़ रहे हैं. अब तो एनसीपी प्रमुख शरद पंवार ने भी इस हिंसा को यूपी चुनाव की दस्तक बताकर राजनीति गरमा दी है. हालांकि दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाले आम आदमी के पास आंसू बहाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

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