वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
बार-बार जीतने वाले को ‘नरेंद्र’ कहते हैं, तो हारकर जीतने वाले को ‘जगन’ कहते हैं.
जगन मोहन रेड्डी- आंध्र प्रदेश के नए मुख्यमंत्री. चुनाव 2019 में जगन के ‘पंखे’ ने हवा नहीं, वो आंधी बरसाई, जिसमें चंद्रबाबू नायडू और कांग्रेस पार्टी सूखे पत्तों की तरह उड़ गए.
जगन की पार्टी YSRCP ने विधानसभा की 175 में से 151 और लोकसभा की 25 में से 22 सीटें जीतकर इतिहास बना दिया.
कथा जोर गरम है कि करारी हार के कारणों पर कसरत कर रही कांग्रेस पार्टी को फिर कोई ‘एंटनी कमेटी’ बनाने के बजाए जगन मोहन से सीखना चाहिए. जगन का पिछले 10 साल का सफर कांग्रेस के लिए सबक की लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट है. जगन ने पदयात्रा को अपना हथियार बनाया. हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा से उन्होंने सूबे का चप्पा-चप्पा छान मारा और लोगों के दिलो-दिमाग पर छा गए.
जगन का सियासी सफर
सितंबर 2009. आंध्र प्रदेश के कुरनूल में नल्लामल्ला की पहाड़ियों के ऊपर से गुजरता एक हेलिकॉप्टर अचानक गायब हो गया. अगले दिन उस हेलिकॉप्टर के टुकड़े जंगल में मिले. क्रैश हुए उसी हेलिकॉप्टर में थे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और जगन मोहन रेड्डी के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी.
वाइएसआर की लोकप्रियता का आलम ये था कि उनकी मौत पर कई लोगों ने खुदकुशी तक कर ली. जगन ने ऐसे लोगों से घर-घर जाकर मिलने के लिए यात्रा शुरू की. इस यात्रा को नाम दिया गया ‘ओदारपू'. ‘ओदारपू’ का हिंदी में मतलब है ‘शोक’ और अंग्रेजी में ‘Condolence’.
वाईएसआर उस वक्त आंध्र प्रदेश के सीएम और साउथ की सियासत के हीरो थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को दरकिनार कर दिया. पहले के. रोसैया को सीएम बनाया और उनसे पार्टी नहीं संभली, तो साल 2010 में किरण कुमार रेड्डी को सीएम बना दिया. हालांकि कांग्रेस को इसकी कीमत सत्ता गंवाकर चुकानी पड़ी. इस वक्त तक जगन और कांग्रेस पार्टी के बीच का तनाव अपनी हदें पार कर चुका था.
चुनी कांग्रेस से अलग राह
29 नवंबर 2010 को जगन कांग्रेस से अलग हो गए. उस वक्त वो कांग्रेस के लोकसभा सांसद थे. उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. उनकी मां वाई विजयलक्ष्मी ने भी पुलिवेंदुला विधायक पद से इस्तीफा दे दिया.
मार्च 2011 में जगन ने पहले से बनी YSR कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संभाल लिया. 2011 के उपचुनाव में कडप्पा से पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड 543,053 वोट से जीते.
उन दिनों रेड्डी एक कामयाब बिजनेसमैन थे. लेकिन उन पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा. आय से अधिक संपत्ति के मामले दर्ज हुए और जगन ने 18 महीने जेल में काटे.
सत्ता ने तो पिता की विरासत नहीं सौंपी, लेकिन जनता का फैसला अभी बाकी था. 2014 के चुनाव में तो वो चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी पर पार नहीं पा सके. लेकिन इसके बाद जनता-जनार्दन का आशीर्वाद लेने के लिए जगन ने पूरे आंध्र प्रदेश को पैदल नाप डाला. करीब 3,600 किलोमीटर की पदयात्रा की और लोग उनमें उनके पिता वाइएसआर रेड्डी की छवि ढूंढने लगे.
इसके बाद साल 2019 के चुनाव ने सियासत के पन्नों पर नतीजों की वो इबारत लिखी कि जगन मोहन रेड्डी एक हीरो बनकर उभरे.
कांग्रेस के लिए सबक
चुनाव 2014, कांग्रेस पार्टी का सबसे खराब चुनाव था. 139 साल पुरानी पार्टी लोकसभा में महज 44 सीटों पर सिमट गई. इसके बाद पार्टी ने सड़क पर जान झोंकने की बजाए एक कमेटी बनाई- ‘एंटनी कमेटी’. कुछ महीनों की मशक्कत के बाद कमेटी ने कुछ वजहें बताईं. पार्टी ने उन वजहों पर काम किया, लेकिन पांच साल बाद नतीजा वही- निल बटे सन्नाटा. सीटों की संख्या 44 से बढ़कर बामुश्किल पहुंची 52 पर.
कांग्रेस पार्टी को जगन से सबक लेते हुए आम लोगों से सीधे संवाद का अभियान शुरू करना चाहिए. चुनाव नतीजों के आइने में उभरी अपनी धुंधली छवि के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी को समझना होगा कि रैलियों में गूंजते 'चौकदार चोर है' के नारे और रोड-शो में उमड़ी भीड़ का शोर मृगतृष्णा के सिवा कुछ नहीं था.
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