एंटीलिया बम मामला और 100 करोड़ वसूली कांड, इन दो घटनाओं ने महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था. लेकिन आज स्थिति यूं बनी हुईं हैं कि मानो ऐसा कभी कुछ हुआ ही नहीं था.
हाल ही में सस्पेंड हुए एपीआई सचिन वझे (Sachi Vaze) ने पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) को वसूली कांड में क्लीन चीट दे दी है.
वझे ने चांदीवाल कमीशन को बताया कि उसने देशमुख या उनके स्टाफ को कभी कोई पैसे नहीं दिए हैं.
कहानी में कई सवाल
वहीं पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने भी हलफनामा दायर कर देशमुख के खिलाफ कोई सबूत ना होने की बात कही है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या अनिल देशमुख, परमबीर सिंह और सचिन वझे सिर्फ एक सियासी खेल के शिकार हुए हैं? क्या आतंकी हमला और करोड़ों की उगाही जैसे गंभीर आरोप हवा में लगाए गए थे?
क्या इन कहानियों के पीछे की असलियत कभी सामने आएगी? या फिर सबूतों की कमी की वजह से इन मामलों के पीछे के मुख्य सूत्रधार कभी भी पकड़ में नहीं आएंगे?
फिलहाल कहानी के दो मुख्य किरदार अनिल देशमुख और सचिन वझे सलाखों के पीछे हैं. दूसरी ओर परमबीर सिंह गिरफ्तारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं.
पूर्व महाराष्ट्र डीजी प्रवीण दीक्षित का कहना है कि, चांदीवाल कमीशन केवल एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी है, उसे जांच करने या सजा देने का अधिकार नहीं है.
दरअसल एनआईए, ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियां कोर्ट के सामने जो सबूत रखेंगी, वो इन मामलों की आगे की दिशा तय करेंगे.
देशमुख को उन पर लगे आरोपों से राहत मिले या ना मिले लेकिन वझे और परमबीर सिंह जैसे पुलिस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं.
वझे ने भले ही कमीशन के सामने पैसे की लेनदेन की बात को नकारा हो, लेकिन ED और NIA के मुताबिक देशमुख की संस्था को मिले पैसों का ट्रेल स्थापित हुआ है.
परमबीर पर लगे उगाही के आरोपों में भी कई अहम सबूत मिलने का दावा किया गया है. वहीx एंटीलिया मामले में मनसुख हिरेन की हत्या मामले में भी सेंट्रल एजेंसी तह तक पहुंचने का दावा कर रही है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
लीगल एक्सपर्ट एड. असीम सरोदे का मानना है कि आज कल सियासी स्कोर सेटल करने के लिए सिर्फ सेंट्रल एजेंसियां ही नहीं बल्कि ज्युडिशयरी का भी गलत इस्तेमाल हो रहा है. राजनीतिक पार्टियां सनसनीखेज आरोप लगाकर अपने प्रतिद्वंद्वियों को सिर्फ बदनाम करना चाहती हैं.
पूर्व महाराष्ट्र डीजी प्रवीण दीक्षित का कहना है कि ये केस बताता है कि कैसे सियासतदान उन्हें मोहरा बनाते हैं और वक्त आने पर बली चढ़ा देते हैं.
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