वीडियो एडिटर- मोहम्मद इब्राहिम
पहले गुरमीत राम रहीम और अब आसाराम- ये एक बड़ी चेतावनी है, जो कह रही है कि आस्था के नाम पर गुनाह और भ्रष्टाचार का एक बड़ा गोरखधंधा चल रहा है, जिसे फौरन बंद करने की जरूरत है.
गुरमीत राम रहीम और आसाराम. दोनों के बड़े-बड़े पॉलिटिकल कनेक्शन— मंत्री और संतरी, सब कदमों में. लगता था कि लौकिक और आध्यात्मिक शक्तियों का समागम हो गया हो. इहलोक और परलोक दोनों पर राज.
इस चकाचौंध में फंसते कौन हैं? स्वभाव से धर्मभीरू और ईश्वर की भक्ति में लीन रहने वाली जनता.
नौकरी नहीं मिली, बाबा के पास जाओ. इलाज के पैसे नहीं, बाबा तो हैं. प्यार में लफड़ा है, जमीन पर विवाद है, बाबा हर मर्ज की दवा है. किसी और से मदद मिलने से रही. सरकारी तंत्र से तो न्याय मिलने की उम्मीद ही नहीं. मिल भी गया, तो उम्र गुजर जाएगी. और बीच-बीच में कट भी तो देना पड़ेगा.
ऐसे में क्विक सोल्यूशन यानी फौरी राहत देने वालों की चल पड़ी. देशभर में कई दुकान खुल गईं. इन दुकानों का सर्वे करेंगे, तो पता चलेगा कि ये पूरी तरह से एक समानांतर अर्थव्यवस्था चलाते हैं. इन दुकानों को चलाने वालों का देश चलाने वाले के साथ गजब का तालमेल है.
लेकिन हर कुकर्म का अंत तय है. इन दुकानदारों का भी, जो बिना किसी लाइसेंस के सारे नियमों की धज्जियां उड़ाकर खुल्ला खेल खेलते हैं, भोले-भाले लोगों की भावनाओं के साथ.
दुकानों के साइज के दो नमूने देखिए. गुरमीत का 700 एकड़ में फैला साम्राज्य, फिल्मी दुनिया में पैठ, चमत्कारी होने का स्वांग और न जाने कितने ही ढकोसले.
आसाराम तो नेटवर्थ के हिसाब देश के कई टॉप बिजनेस हाउस से भी आगे है. कुल वर्थ 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा. देश-दुनिया में 400 से ज्यादा आश्रम. इतना बड़ा एंपायर खड़ा हुआ सिर्फ पिछले 4 दशक में.
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मेरा सबसे बड़ा सवाल ये है कि हम इनके कुकर्मों के खुद-ब-खुद किसी अंजाम तक पहुंचने का इंतजार करेंगे या फिर आगे आकर आस्था के इन दुकानदारों के खिलाफ मुहिम चलाएंगे. ऑनलाइन हेट को रेगुलेट करने की बात हो सकती है, फेसबुक ट्विटर, वॉट्सऐप, फेक न्यूज पर लगाम कसने की बात हो सकती है, तो आस्था के इन दुकानदारों पर शिकंजा क्यों नहीं कसना चाहिए?
हो सकता है कि कुछ लोग आसाराम की सजा का विरोध करें, सड़कों पर जाम लगाएं, हंगामेबाजी करें. लेकिन यकीन मानिए वो मेरे या आपके जैसे आम लोग नहीं होंगे. वो या भाड़े के टट्टू होंगे या फिर सिरफिरे.
वक्त आ गया है कि आसाराम, गुरमीत राम रहीम, नित्यानंद, रामपाल और उन जैसे सैकड़ों बेईमानों के खिलाफ आवाज उठाई जाए. और अगर कोई नेता या राजनीतिक दल उनका समर्थन करते हैं, तो उनका भी विरोध किया जाए.
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