अगर जनमत सर्वे पर विश्वास किया जाए, तो भारतीय जनता पार्टी असम में सत्ता में वापसी कर रही है. और अगर ऐसा होता है, तो पार्टी को राज्य का अगला मुख्यमंत्री चुनते वक़्त काफ़ी सावधानी बरतनी होगी. उन्हें सीएम सर्बानंद सोनोवाल और उनके सहयोगी नेता हिमंता बिस्वा सरमा के बीच एक को चुनना होगा.
अगर पिछले पांच साल के संदर्भ में बात किया जाए तो हिमंता ज़्यादा सुर्खियों में हैं और लोगों के बीच लोकप्रिय भी.
“सर्बानंद सोनोवाल सीएम हैं लेकिन ऐसा लगता है कि सरमा सीएम की वास्तविक भूमिका निभा रहे हैं. प्रशासन, वित्त या पार्टी - सभी में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है.निर्मल शर्मा, बिजनेसमैन
छात्र देबाशीष देका कहते हैं कि मीडिया में आप हिमंता बिस्वा सरमा को सर्बानंद सोनोवाल से ज्यादा देखते हैं. इसीलिए लोग भ्रमित हैं.
हालांकि बीजेपी इसे स्वीकार नहीं करना चाहती है, लेकिन सोनोवाल और सरमा के बीच असम में एक वर्चस्व की लड़ाई है, सरमा वित्त, योजना और विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, शिक्षा और पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं.
5 मार्च को, जब बीजेपी ने अपने 70 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की तो टिकट ज्यादातर सरमा के करीबियों को दिए गए.
COVID महामारी ने सरमा की स्थिति को और मजबूत किया. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में, वो सबसे आगे खड़े थे.
वो लोकप्रिय हैं क्योंकि उन्होंने बहुत अच्छे काम किए हैं. असम की युवा पीढ़ी उन्हें ‘मामा’ कहती है. ये ट्रेंडिंग है. वो लोगों को आकर्षित कर सकते हैंपॉम्पी दास, वर्किंग प्रोफेशनल
कई लोगों का कहना है कि सरमा ने 2016 में असम में बीजेपी की जीत सुनिश्चित की. वो 2015 के अंत में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए थे. इससे पहले, उन्होंने लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन पूर्व सीएम तरुण गोगोई के वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी., गोगोई उस वक्त अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में बेटे गौरव को तवज्जो दे रहे थे.
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