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देश की राजनीति में संतुलन लेकर आए ये चुनावी नतीजे 

  2018 विधानसभा चुनाव से मिले हैं ये बड़े संकेत

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप

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5 राज्यों में चुनावों के नतीजों का अगर विश्लेषण किया जाए तो ये कहना गलत नहीं होगा कि ये चुनाव बहुत भारी रहा है. हिंदी हार्टलैंड माने जाने वाले 3 बड़े राज्यों में यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है, वही मिजोरम में MNF ने बाजी मार ली है तो तेलंगाना में TRS ने अपनी जीत का डंका बजा दिया.

इन चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करने पर 5 बड़ी बातें सामने आती हैं-

सबसे बड़े विजेता राहुल गांधी

इसमें कोई शक नहीं है कि इस चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जीत हुई है, क्योंकि 2014 के बाद जब बीजेपी बहुमत में आई तब से कांग्रेस लगातार हर राज्य हार रही थी, और हमेशा कहा जाता था कि राहुल गांधी में क्षमता नहीं है कि वो कांग्रेस को जीत दिला सकें. लेकिन नतीजों ने ये दिखाया है कि राजनीति में सबसे बड़ी क्वालिटी होती है लगातार हार मिलने के बाद भी खड़े रहने पर मिलने वाला जीत का फल. कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा श्रेय राहुल गांधी को जाना चाहिए.

राजनीति में संतुलन लेकर आए ये चुनावी नतीजे

चुनावी राजनीति में सांसद से ज्यादा विधायकों की अहमियत मानी जा सकती है, क्योंकि विधायक छोटे इलाके का प्रतिनिधि होता है और लोगों के ज्यादा करीब होता है.

2014 में राजनीति में एमएलए का बैलेंस थोड़ा बिगड़ सा गया था, यानी बीजेपी के एमएलए ज्यादा हो गए थे. लेकिन आज के नतीजों के बाद कांग्रेस ने करीब 160-165 नए एमएलए राजनीतिक शक्ति के रूप में जोड़े हैं. ये देश की राजनीतिक संतुलन के लिए अच्छे संकेत हैं.

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'साॅफ्ट हिंदुत्व' का जुमला गलत साबित हुआ

लोग कहते हैं कि कांग्रेस ‘साॅफ्ट हिंदुत्व’ की विचारधारा अपना रही थी. लेकिन मेरे मुताबिक उनकी विचारधारा ‘साॅफ्ट हिंदुत्व’ कभी नहीं रही दरअसल कांग्रेस "किताबी सेक्युलरिज्म" में फंस गई थी. उन्होंने इस चुनावी नतीजे से अपने लिबरल हिंदुत्व वाली छवि वापस पाई है, जो वो महात्मा गांधी के समय से रही है.

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तेलंगाना में केसीआर की स्कीमों का चला जादू

तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की जीत बताती है कि उन्होंने योजनाओं को कितने बेहतर तरीके से जमीन पर उतारा.

किसानों के लिए डायरेक्ट इनकम ट्रांसफर जैसी इनोवेटिव योजनाएं शुरू की. हम लंबे समय से कह रहे हैं कि किसानों को परेशानियों से छुटकारा दिलाने का ये एक एकमात्र तरीका है. केसीआर ने ये किया और जीत उनकी झोली में है.

पीएम मोदी इस हार से कैसा सबक लेंगे?

नरेंद्र मोदी 2002 में चुनावी राजनीति में आए थे. तब से, उन्होंने एक भी चुनाव नहीं गंवाया. पंजाब में भी, हार और नुकसान अकाली दल की हुई थी क्योंकि बीजेपी राज्य में एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर नहीं थी.

ये पहला चुनाव रहा जहां मोदी-शाह की जोड़ी को हार मिली है. ये राजनीति में एक अहम मोड़ है. जो लोग इतने लंबे समय से जीतते आ रहे हैं, वे हार का सामना कर रहे हैं. इस हार से वो जो सबक लेने जा रहे हैं, वो काफी मायने रखता है.

क्या वो खुद को सेंट्रिस्ट मोड में लाएंगे जैसा उन्होंने 2014 में खुद को पेश किया था? या अब ध्रुवीकरण, बंटवारे की राजनीति ज्यादा जोर पकड़ेगी, जैसा हाल के सालों में देखने को मिला है. ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसका 2019 के चुनावों में पड़ा असर होगा.

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