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5% की GDP-खतरे की घंटी, बैंक मर्जर जैसे सुधार से नहीं आएगी रफ्तार

जानिए- विकास दर 5% पहुंचने का मतलब क्या है?

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

गिरती अर्थव्यवस्था को थामने के लिए सरकार कई कोशिशें कर रही हैं. इसी कड़ी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों के विलय से चार बड़े बैंक बनाने की घोषणा की. इसी बीच खबर ये भी आई की देश की विकास दर गिरकर पांच फीसदी पर पहुंच गई है.

पिछले कुछ दिनों से देश की अर्थव्यवस्था को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही थीं. तमाम तरह के सवाल मन में उठ रहे थे कि असल में अर्थव्यवस्था की क्या हालत है? इस पर भी बहस हो रही थी, कि क्या वाकई में अर्थव्यवस्था गिर रही है या नहीं.

लेकिन पहली तिमाही के नतीजे आने के बाद अब इस बहस पर फुल स्टॉप लग गया है. इस साल की पहली तिमाही की विकास दर पांच फीसदी रही है. ये आंकड़ा पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले 3% यानी बहुत कम है. इतना ही नहीं ये गिरावट पिछले सात सालों में सबसे ज्यादा है.

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विकास दर 5% पहुंचने का मतलब क्या है?

पहली तिमाही में विकास दर पांच फीसदी पर पहुंचने से पता चलता है कि मैन्यूफेक्चरिंग और एग्रीकल्चर आउटपुट बुरी तरह से गिरा है. सबसे डरावना आंकड़ा ये है कि निजी खपत गिरकर 3 फीसदी पर आ गई है, जो पिछले साल इसी अवधि में सात फीसदी के आसपास था. प्राइवेट कंजम्प्शन ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था को चलाता है. प्राइवेट कंजम्प्शन गिरना सबसे बुरी खबर है.

क्या सरकार के हालिया फैसलों का कंजम्प्शन और डिमांड पर कोई असर पड़ेगा?

सरकार ने पहली बार माना है कि देश मंदी की गिरफ्त में है और इसे रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. सरकार ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं. लेकिन क्या सरकार के हालिया फैसलों का कंजम्प्शन और डिमांड पर कोई असर पड़ेगा?

सरकार ने FDI को लेकर जो ऐलान किए हैं, उससे डिमांड पर कोई असर नहीं पड़ेगा. FDI नियमों में दी गई ढील कुछ सहूलियतें जरूर हैं, लेकिन इससे फौरी तौर पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है.

सरकारी बैंकों के सुधार को लेकर सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उन्हें मंदी को रोकने की कोशिश के तौर पर नहीं देखना चाहिए. इससे पहले भी सरकारी बैंकों के दो बड़े विलय हो चुके हैं और सरकार ने जो ताजा फैसला लिया है, वो भी पहले से ही तय था. बैंकों के विलय को लेकर जनवरी महीने से ही बात चल रही थी, लेकिन मई महीने में चुनाव होने की वजह से उस वक्त ये ऐलान नहीं किया गया. उम्मीद थी कि सरकार आने के बाद ये ऐलान कर दिया जाएगा.

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कैपिटल गेंस पर सरचार्ज वापस लेने से क्या हुआ?

सरकार को ऐसा लग रहा था कि FPI के कैपिटल गेंस के ऊपर से सरचार्ज हटा लेने से शेयर बाजार का मूड ठीक हो जाएगा. लेकिन सरकार के इस फैसले के बाद के हफ्ते की बात करें तो FPI इस पूरे हफ्ते में नेट सेलर रहे हैं. यानी अगर नेट सेल हो रहा है तो समझ लेना चाहिए कि सरकार के उपायों पर इन्वेस्टर का भरोसा अभी नहीं बना है.

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आने वाले दिनों में सरकार क्या ऐलान कर सकती है?

गिरती अर्थव्यवस्था को थामने के लिए सरकार आने वाले दिनों में और ऐलान कर सकती है. इनमें से ज्यादातर ऐलान मिडिल क्लास, अर्बन एरिया और एमएसएमई के मूड को ठीक करने के लिए होंगे.

सुधार के लिए क्या करना होगा?

विशेषज्ञों की मानें तो जब तक टैक्स की दरों में बड़ी कटौती नहीं की जाती, तब तक डिमांड नहीं आ सकती, प्रोडक्शन नहीं बढ़ सकता और इन्वेस्टमेंट को जो छलांग चाहिए वो नहीं मिल सकती.

  • सरकार को टैक्स की दरों में बड़े पैमाने पर कटौती करनी चाहिए. उससे ही बड़ा बदलाव आ सकता है.
  • सरकार के कैपिटल एक्सपेंडिचर में जो लगातार गिरावट आई है, उसमें सरकार को तुरंत यूटर्न लेना चाहिए. सरकार को आरबीआई से पैसे मिल गए हैं, ऐसे में अब सरकार को वो पैसे उन कामों में लगाना चाहिए, जो प्रोडक्टिविटी बढ़ाएं और जॉब क्रिएट करें.
  • सरकार को एक्सपोर्ट बढ़ाने पर भी गंभीरता से काम करना चाहिए. इसके लिए सरकार को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, स्पेशल इकनॉमिक जोन, लैंड और लेबर को सुधार करने होंगे

मौजूदा हालात थोड़े इमरजेंसी वाले हैं. इसलिए अब होम्योपैथी का उपचार नहीं चलेगा, सरकार को अब ऐलोपैथी के इंजेक्शन का इस्तेमाल करना चाहिए. सरकार को समझना होगा कि जीडीपी का गिरकर 5 फीसदी पर पहुंचना, उसके लिए वेकअप कॉल है.

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