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‘बेगम जान’ देखने जा रहे हैं, तो पहले देखें ये रिव्यू

‘बेगम जान’ के कई सीन्स बहुत पॉवरफूल हैं लेकिन फिल्म कनेक्शन नहीं बिठा पाती.

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फिल्म ‘बेगम जान’ में एक सीन में औरतों का झुंड रेडियो के इर्द गिर्द बैठ कर पंडित जवाहर लाल नहरू की ऐतिहासिक स्पीच सुन रहा है. अब स्पीच इंग्लिश में है, इसलिए इन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा. तभी उनमें से एक चिल्ला कर कहती है कि 'मिल गई आजादी'... फिर क्या था, वहां बैठी सारी औरतें खुशी से झूम उठती हैं और नाचने गाने लगती हैं.

इस पूरे सीन को दूर बैठी बेगम जान बड़े ध्यान से देख रही थी और फिर कहती है कि "आजादी केवल मर्दों की होती है.'' ऐसे ही कई स्ट्रोंग सीन्स हैं, जब आपको फिल्म से प्यार हो जाता है लेकिन साथ ही साथ आप हताश भी हो जाते हैं क्योंकि इन सारे ब्रिलियंट सीन्स के बीच लाउड बैकग्राउंड, इतना चीखना-चिल्लाना, डायलॉग डिलीवरी का वॉल्यूम इतना ज्यादा और थोक के भाव में इतना सिम्बोलिज्म कि फिल्म कम डायग्राम ज्यादा लग रही है.

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ऐसा नहीं है कि आप फिल्म न देखें क्योंकि उसकी वजह है विद्या बालन. जिन्होंने बेगम जान के किरदार को बखुबी निभाया है. इसके बेहतरीन और दमदार डायलॉग लिखे हैं कौसर मुनीर ने.

फिल्म भारत और पकिस्तान के बंटवारे के बीच बेगम जान के कोठे की कहानी है. जिसे सरकार खाली कराना चाहती है और बेगम जान इस बात का विरोध करती हैं.

कई सीन्स बहुत पॉवरफूल हैं. गौहर खान और पल्लवी शारदा की एक्टिंग भी काबिल-ए-तारीफ है. लेकिन फिल्म में कनेक्शन नहीं बैठता जिसकी बजह से फिल्म का इम्पैक्ट कम हो जाता है. इसलिए बेगम जान को मिल हैं रहे हैं 5 में से 2.5 क्विंट.

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