कैमरा- शिव कुमार मौर्या
वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया
''बिहार के लोगों का इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत होता है, कोरोना-वोरोना कुछ नहीं करेगा...'', ''चुनाव निकाल दिए हम लोग तो अब कोरोना का करेगा...'' ये वो जुमले थे जो बिहार में घर से लेकर सड़कों पर सुनने को मिलते थे. लेकिन अब बड़बोलापन महंगा पड़ रहा है.
बिहार में कोरोना स्पीड पकड़ ही रहा है, लेकिन उससे लड़ने के लिए तैयारी नाम बराबर है. 12 करोड़ की आबादी वाले बिहार में जहां मार्च के महीने तक एक हजार से भी कम एक्टिव केस थे वहां अप्रैल के 14 दिनों में ही 29 हजार हो चुके हैं. लेकिन इससे निपटने की तैयारी हवा-हवाई. चुनाव में जोर लेकिन इलाज करने में कमजोर, फ्री वैक्सीन का चुनावी वादा लेकिन जरूरत के वक्त अस्पताल में बेड भी नसीब नहीं. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 14 अप्रैल 2021 तक कोरोना से 1675 लोगों की मौत हो चुकी है.
बिहार में कोरोना किस तेजी से फैला है इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि 01 अप्रैल 2021 को सिर्फ 1907 एक्टिव केस थे वहीं 14 अप्रैल को ये 29078 हो गए हैं. मतलब 10 गुना से भी ज्यादा केस सिर्फ 14 दिनों में बढ़े हैं.
कोरोना के बढ़ते मामलों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य की राजधानी के सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिए बेड तक नहीं हैं.
पटना के NMCH में लखीसराय से आए एक कोरोना पॉजिटिव मरीज की मौत अस्पताल के बाहर ही हो गई. रोते-बिलखता परिवार कह रहा है कि बेड खाली नहीं होने की वजह से भर्ती नहीं किया गया. और ये सब तब हुआ जब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय इसी अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे थे.
मंत्री साहब पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि बिहार में कोरोना से लड़ने की तैयारी के बजाए वो पिछले कुछ दिनों से बंगाल चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार में व्यस्त थे.
अब मंत्री जी ने मौत पर दुख जता दिया है और रटा रटाया बयान देते हुए कहा कि बेहतर सुविधा देने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन मंत्री जी को कोई बताए कि इतने सालों से सत्ता में वही हैं फिर भी हाल बेहाल है.
आइए आपको कोरोना वायरस के आतंक के बीच बिहार के अस्पतालों का हाल बताते हैं.
हमने बिहार के बड़े सरकारी अस्पतालों के सुप्रिटेंडेंट से बात की है. जिसमें कई चौंकाने वाली बात सामने आई है. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, बिहार में सबसे ज्यादा मामले पटना में ही आ रहे हैं. पटना में पिछले एक हफ्ते में औसतन हर दिन एक हजार से ज्यादा पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं. पटना में ही सिर्फ साढे़ सात हजार से ज्यादा एक्टिव केस हैं.
पटना के अस्पतालों में करीब 1100 बेड हैं. जिसमें करीब 850 बेड फुल हैं. वहीं सरकारी अस्पतालों के सभी बेड भरे हुए हैं.
जब हमने बिहार के सबसे बड़े अस्पताल PMCH के सुप्रिटेंडेंट आईएस ठाकुर से बात की तो उन्होंने बताया कि पीएमसीएच में 100 कोरोना डेडिकेटेड बेड हैं, जिसमें से सभी फुल हैं. इसके अलावा करीब 20 बेड हेल्थ वर्कर और डॉक्टरों के लिए आरक्षित हैं.
ये तो हुई बेड की बात. लेकिन लापरवाही पीछा नहीं छोड़ रही है. PMCH में हुआ ये कि एक मृतक की बॉडी किसी और परिवार को सौंप दी. इस बात की सच्चाई तब सामने आई जब अंतिम संस्कार के लिए शव को श्मशान घाट लाया गया. मरीज के परिजन ने पटना के बांस घाट के श्मशान पर मुखाग्नि से पहले मृतक का चेहरा दिखाने की मांग की, जब चेहरा दिखाया गया तो सबके होश उड़ गए, क्योंकि शव किसी और का था. जबकि जिसका डेथ सर्टिफिकेट बना था वो अस्पताल के आईसीयू में था.
एनएमसीएच में नहीं है बेड
NMCH के सुप्रिटेंडेंट बताते हैं कि कोरोना के मरीजों के लिए 107 बेड का इंतजाम किया गया था, लेकिन फिलहाल एक भी बेड खाली नहीं है. इसलिए अब 44 बेड और जोड़े जा रहे हैं. NMCH में कोरोना के लिए आईसीयू में सिर्फ 8 बेड हैं.
पटना AIIMS में भी मरीजों के लिए खाली बेड नहीं हैं. एम्स में कोरोना के नोडल अफसर डॉक्टर संजीव बताते हैं कि एम्स में 115 बेड हैं और उसमें से एक भी खाली नहीं है.
वो कहते हैं, "हमारे पास 30 ICU बेड हैं, सभी फुल हैं. लेकिन मरीजों की तादाद को देखते हुए 30 बेड और जोड़ने की तैयारी चल रही है."
संजीव एक जरूरी बात भी बताते हैं, वो कहते हैं कि बेड का मतलब सिर्फ बेड लगा देना नहीं होता है उसके साथ सुविधा देनी होती है. ऑक्सीजन है कि नहीं, नर्स, वेंटिलेटर, वेंटिलेटर चलाने वाले कितने हैं ये सारी चीजें देखनी होती हैं.
पटना के बाद सबसे ज्यादा कोरोना के मामले भागलपुर में हैं. भागलपुर में 1500 से ज्यादा एक्टिव केस हैं. भागलपुर के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के हेल्थ मैनेजर सुनील गुप्ता बताते हैं कि उनके पास 100 बेड आइसोलेशन वार्ड में है और 36 आईसीयू में बेड हैं. फिलहाल दोनों जगह मिलाकर 35 बेड खाली हैं, वहीं आईसीयू के सारे बेड भरे हुए हैं.
वहीं दूसरे शहरों में बेड के मामले में पटना से बेहतर हालत है लेकिन बदइंतजामी बदस्तूर जारी है.
दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 10 अप्रैल को आइसोलेशन वार्ड के शौचालय में कोरोना पॉजिटिव युवक की लाश मिली. इससे पहले भी साल 2020 में इसी अस्पताल में दरभंगा के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर उमेश चंद्रा की DMCH में तड़प -तड़पकर दम तोड़ देने की कहानी भी हमने आपको बताई थी.
अब बात मौत और दर्द के बीच 'टीका-उत्सव' की
बिहार में 14 अप्रैल को 1 लाख 32 हजार लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई गई. नीतीश कुमार ने 11 से 14 अप्रैल तक चलने वाले टीका-उत्सव के लिए हर दिन 4 लाख लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा था. मतलब 16 लाख लोगों को वैक्सीन लगाने का टार्गेट. लेकिन वो पूरा नहीं हो सका. 4 दिन में सिर्फ 5 लाख 44 हजार लोगों को ही वैक्सीन लग सकी.
बिहार में 14 अप्रैल 2021 तक 54 लाख से ज्यादा लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई गई है. मतलब 12 करोड़ वाले बिहार में अबतक 5 फीसदी से भी कम लोगों को कोरोना का टीका लगा है.
अगर चुनाव का खुमार उतर गया हो तो बिमार बिहार का इलाज भी निकालिए.. भले ही बिहार में बहुत से लोग सब ठीके है, जो है सो है, जैसी बातें कर रहे हों, लेकिन ज्यादातर बिहारी पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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