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रियलिटी चेक: बिहार का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल बीमार है,बहुत बीमार

बिहार:चमकी बुखार और सरकारी हेल्थ सिस्टम ने 140 बच्चों की जान ले ली,लेकिन क्या बिहार के बाकी अस्पतालों ने सबक लिया?

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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मी और मोहम्मद इरशाद आलद

वीडियो प्रोड्यूसर- फबेहा सैयद और फुरकान फरीदी

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बिहार के मुजफ्फरपुर में बुखार ने और सरकारी हेल्थ सिस्टम ने 100 से ज्यादा बच्चों की जान ले ली, लेकिन क्या बिहार के दूसरे अस्पतालों ने इस मौत की कहानी से सबक ली है? इसी सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए क्विंट पहुंचा बिहार के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल दरभंगा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल. खंडहर में बदलती बिल्डिंग, गंदगी, कूड़े का ढेर, डॉक्टर, नर्स की भारी कमी और जरूरी मशीनों का न होना बिहार के हेल्थकेयर सिस्टम की डरावनी तस्वीर दिखाती है.

क्विंट की टीम जब दरभंगा पहुंची, तो हालात चौंकाने वाले थे. मानो अस्पताल की इमारत कभी भी गिर सकती है. अस्पताल की बिल्डिंग के छत के लोहे बाहर आ चुके हैं, दीवार से पानी टपकता हुआ, गंदगी और कूड़े का ढेर, दिन में ही वॉर्ड के अंदर अंधेरा रहता है.

यही नहीं जब हमारी टीम अस्पताल के अंदर पहुंची, तो और भी भयावह स्थिति थी. अस्पताल के एक वॉर्ड में मरीज जमीन पर लेटी हुई थी और उल्टी कर रही थी. उसे देखने के लिए ना ही नर्स थी, ना ही डॉक्टर. पूछने पर पता चला कि उसे किसी ने दवा तक नहीं दी है. ये हाल सिर्फ एक मरीज का नहीं था, बल्कि ऐसे कई मरीज थे जो जमीन पर पड़े थे. जब इन हालातों के बारे में हमने दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट से पूछा तो मामला और भी परेशान करने वाला था. उन्होंने कहा,

हमारे यहां हर दिन 2200 से 3000 मरीज आते हैं, दरभंगा ही नहीं उसके आसपास के जिले के मरीज भी आते हैं. लेकिन हमारे पास 40% डॉक्टरों की सीट खाली है. 1200 नर्स की जगह सिर्फ 250 नर्स हैं. ऐसे में जितना बन पा रहा है हम लोग कर रहे हैं.
डॉक्टर आर आर प्रसाद, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, DMCH

जब हमने उनसे पूछा कि क्या आपका अस्पताल चमकी बुखार जैसी बीमारी के इलाज के लिए तैयार है, तो उन्होंने कहा, “हमने ICU में 6 नए बेड लगवाए हैं. फिलहाल ICU में कुल 22 बेड हैं. लेकिन अगर कोई और बड़ी बीमारी आ जाती है तो हम उसके लिए तैयार नहीं हैं.”

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सर्जरी वॉर्ड की खंडहर बिल्डिंग, 600-700 लोगों की जिंदगी खतरे में

जब सर्जरी वॉर्ड के हालात को लेकर क्विंट ने मेडिकल सुपरिटेंडेंट से पूछा तो उन्होंने सरकार और सिस्टम पर दोष मढ़ दिया. उन्होंने कहा,

सर्जरी वॉर्ड में 600-700 लोग होते हैं. सभी आपदा का शिकार हो सकते हैं. कुछ भी हो सकता है. इसे लेकर मैंने चिट्ठी भी लिखी है. यहां के लोकल एडमिनिस्ट्रेशन, डीएम, कमिश्नर ,सबको लिखा. वो कहते हैं शिफ्ट कर दीजिए. मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है. वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है. जो इन सबको शिफ्ट कर सकूं. मेरी मजबूरी है कि मैं इस व्यवस्था में रोगियों का इलाज कर रहा हूं.
डॉक्टर आर आर प्रसाद, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, DMCH

डॉक्टर ने खोले कई राज

अपना नाम न छापने की शर्त पर एक डॉक्टर ने बताया कि यहां इंफेकशन से लड़ने के लिए कुछ भी इंतजाम नहीं है. उन्होंने कहा,

इफेंक्शन की बात की जाए तो यहां ऑपरेशन थिएटर (OT) में फ्यूमिगेशन नहीं होता. इसका मतलब हमेशा इंफेक्शन का खतरा रहता है. ऑपरेशन कामयाब भी हो जाए, लेकिन इंफेक्शन उस मरीज को और नई बीमारी दे देगा. मेडिसीन वॉर्ड में जाइए, वहां टीबी मरीज, एड्स का मरीज, कैंसर मरीज सब एक ही जगह लेटे होते हैं. किसी का इंफेक्शन किसी को भी लग सकता है. 
डॉक्टर

सरकारी अस्पताल में प्राइवेट पैथ लैब वाले करते हैं खून जांच

सिर्फ बिल्डिंग ही नहीं दवा और खून जांच जैसी चीजों का भी बुरा हाल है. जब क्विंट की टीम मेडिसिन वॉर्ड में पहुंची, तो सरकारी सिस्टम के फेल होने की एक और कहानी सामने आई. अस्पताल के अंदर निजी पैथालॉजी लैब का स्टाफ आकर मरीज का ब्लड सैंपल ले रहा था. पूछने पर पता चला कि डॉक्टर ने जो खून जांच लिखे हैं वो अस्पताल में होते ही नहीं हैं.

दरभंगा से 50 किलोमीटर दूर से अपनी बच्ची को इलाज के लिए लेकर आए सरोज झा बताते हैं कि यहां दवा मिलती है, तो ड्रिप के लिए पानी नहीं, पानी मिल जाता है तो बोला जाता है सीरिंज बाहर से लाइए.

अब सवाल ये उठता है कि बिहार के इस चरमाराते हेल्थकेयर सिस्टम के बीच मरीजों पर हर दिन टूटता है कहर, दोषी कौन?

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