वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
बिहार के भोजपुरी गानों को गैर भोजपुरी भाषी फूहड़ता का पर्याय मान लेते हैं. लेकिन कुछ युवा कलाकार भोजपुरी से इस टैग को अलग करने की कोशिश में जुटे हैं. क्विंट आपको मिला रहा है बिहार की ऐसी ही 2 युवा महिला कलाकारों से.
बिहार के भोजपुर जिले की चंदन तिवारी, गांव की गलियों से लोकगीत ढूंढ़ लाती हैं और खुद कंपोज कर, अपनी आवाज में पिरोती हैं. संगीत नाटक एकेडमी समेत कई अवॉर्ड जीत चुकीं चंदन के गांधी गीत- ‘चरखवा चालू रहे’, ‘रसूल के राम’ जैसे गाए गीत काफी मशहूर हैं. देश-विदेश में वो इन गानों के साथ स्टेज पर उतरती हैं और उनका कहना है कि लोग चाव से इन गीतों को सुनते हैं और सुनाने की डिमांड करते हैं.
इंडियन आइडल 3 से फेम पाने वालीं, पटना की दीपाली सहाय फिल्म और टीवी की दुनिया में बिहार से चमकता एक नाम हैं. इन्होंने बॉलीवुड में गाने गाए हैं, टीवी शो होस्ट किया है और भोजपुरी सीरियल ‘बड़की मलकाइन’ में लीड रोल से इन्हें खूब प्यार मिला. इन सबके अलावा, दीपाली की कोशिश है कि वो साफ-सुथरे भोजपुरी गीत-संगीत के लिए काम करती रहें.
भोजपुरी गाने फूहड़ता का पर्याय कैसे बन गए?
इसके बारे में दीपाली अपनी राय जाहिर करती हैं- “बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार, संसाधनों की कमी रही है. अब बदलाव आ रहा है लेकिन राज्य में पलायन बड़े पैमाने पर हुआ. बाहर, ज्यादातर मजदूरी करने वाले लोग जब थक-हार कर शाम में घर वापस लौटते तो उन्हें इंटरटेनमेंट की जरूरत पड़ती थी. लाइट इंटरटेनमेंट के नाम पर भोजपुरी में सेक्स और फूहड़ता परोसी गई, जो बिकी भी.”
लेकिन उनका कहना है कि ये उन ऑडियंस की गलती नहीं है. इंटरटेनमेंट के नाम पर इंडस्ट्री के जिन लोगों ने उनकी फीलिंग्स से पैसा कमाना शुरू किया, ये उन लोगों की गलती है. उनके पास साफ-सुथरा इंटरटेनमेंट देने का भी ऑप्शन था, जो उन्होंने नहीं दिया.
चंदन कहती हैं कि सच्चाई ये है कि सलीकेदार भोजपुरी गानों की भी है डिमांड है. उनके यू-ट्यूब चैनल पुरबियातान पर लोकगीतों से लेकर देश-समाज के मुद्दों पर बने गीत हैं, गांधी के गीत हैं, जिसे लोग सुनते हैं.
भोजपुरी के लिए और क्या किए जाने की जरूरत है? क्या बिहार चुनाव 2020 इन कलाकारों की भी उम्मीदों को पूरा करेगा? अपनी तमाम कोशिशों से इतर सरकार से इनकी क्या मांगे हैं? देखिए वीडियो में पूरी बातचीत.
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