कैमरा पर्सन- खुर्रम मलिक
वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह
‘बिहार में बहार है’ या ‘बेरोजगार है’ ये समझने के लिए पटना यूनिवर्सिटी में क्विंट की चुनावी चौपाल लगी. इसी यूनिवर्सिटी से दिनकर, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी जैसे नेताओं ने पढ़ाई की है. इसके गलियारे में कई प्रतियोगी छात्र सरकारी नौकरी पाने की चाहत में बैठकर पढ़ाई करते हैं.
रंजन कुमार 2014 से ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, अब तक कई बार परीक्षा कैंसिल हो चुकी है. उनके पिताजी खेती करते हैं. उनके जैसे कई अन्य छात्र अब तक तैयारी कर रहे हैं. लेकिन उनके हाथ अब तक नौकरी नहीं लगी है.
6-7 साल से तैयारी कर रहे हैं. अभी तक लगे हुए है. झारखंड से यहां पटना में आकर रहते हैं. 4-5 हजार रुपये हर महीने का खर्च आता है.अजय कुमार, प्रतियोगी छात्र
छात्रों का कहना है कि नेताओं को युवाओं की चिंता नहीं है. ये सोचकर शर्मिंदगी होती है कि वो किस आधार पर वोट मांगने चले आते हैं. जाति और धर्म के नाम पर चुनाव लड़ने वाले नेताओं के बारे में इन युवाओं की एक खास राय है.
बिहार में धर्म जाति हावी है, लेकिन हम उस धर्म को नहीं मानते. सरकार बीच- बीच में एक एजेंडा लाती है, इंसान को रास्ते से भटकाती है, वो भी सिर्फ अपने फायदे के लिए.पपलेश कुमार, प्रतियोगी छात्र
सरकार को नंबर देने के बात पर नीतीश सरकार को युवा नंबर देने से साफ इंकार करते हैं. उनका कहना है कि बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है कि सरकार को क्या ही नंबर दिया जाए. सारे लोग बेरोजगार पड़े हुए हैं. सालों से तैयारी कर रहे हैं लेकिन नौकरी हाथ में नहीं मिल पा रही है. उम्मीद है आने वाले चुनावों के बाद इन युवाओं की किस्मत भी बदलेगी.
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