वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस का कहर भयानक है. ये बीमारी पसरती जा रही है. बीमारी का खौफ इस कदर हावी हो गया है कि पास के जिले के लोग गांव से पलायन कर रहे हैं.
क्विंट पहुंचा बिहार के वैशाली जिले के हरिवंशपुर गांव. गांव में कई घरों के दरवाजे पर ताला लगा है और बुखार के नाम से खौफ और सन्नाटा पसरा है.
इसी गांव के राजेश सहनी बताते हैं कि ‘सब डरे हुए हैं कि बीमारी से हमारे बच्चों की मौत हो जाएगी. हर बच्चा बीमार हो रहा है इसलिए सभी गांव छोड़ के जा रहे हैं.’
राजेश इस बीमारी की वजह से अपनी बेटी को खो चुके हैं.
अपने बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए बेबस लोग अपने रिश्तेदारों के घर ठिकाना ढूंढ रहे हैं.
हमारी मुलाकात एक स्थानीय महिला से हुई जो अपना सामान बांध गांव छोड़ने की तैयारी में थी. जब हमने पूछा तो वो कहती हैं, इस बीमारी की वजह से मैं मायके जा रही हूं.
हमारे 7 बच्चे हैं. 4 को अलग भेज दिया है और 3 मेरे साथ हैं और तीनों बच्चे बीमार हैं. ये ठीक नहीं हो रहे हैं. इसलिए गांव छोड़ कर जा रही हूं.
इंसेफेलाइटिस से मुजफ्फरपुर में ही 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. 1995 के बाद से हर साल ही इस बीमारी से बच्चे मरते हैं. दिक्कत ये है कि लोगों में अब भी जागरुकता का अभाव है.
लेकिन आखिर बीमारी से डरे हुए लोग पास के अस्पताल में इलाज कराने क्यों नहीं जा रहे?
इस बाबत हमने भगवानपुर ब्लॉक के डॉक्टर से सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि ये लोगों की व्यक्तिगत वजह है कि वो पास के PHC नहीं आ रहे. उन्होंने सुविधाओं की कमी की बात को खारिज किया.
“भगवानपुर ब्लॉक के जो बच्चे हैं, उनके परिवार खुद SKMCH, केजरीवाल हॉस्पिटल, PMCH चले जाते हैं. यहां बहुत से ऐसे केस हैं जो PHC नहीं आकर सीधे वहीं चले जाते हैं”.डॉ. नलिन नयन, PHC भगवानपुर
हरिवंशपुर गांव के ही चतरी सहनी के 2 बच्चों की मौत इस बीमारी से हो गई. वो बताते हैं कि एक बच्चे की मौत PMCH में हुई और एक की मौत मुजफ्फरपुर (SKMCH) में हुई. दो जगहों पर दोनों की मौत हो गई. और डॉक्टर हमें ये तक नहीं बता रहे थे कि कौन सी बीमारी हुई. उन्होंने ये बताया कि 'चमकी बुखार से करीब 200 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस बीमारी से बच्चे नहीं बचते हैं' यही हमें डॉक्टर ने बताया.
चमकी बुखार (इंसेफेलाइटिस) से इस गांव में 12 बच्चों की मौत हो चुकी है. लोगों का अपने घरों से पलायन जारी है. लेकिन क्या पलायन ही इस बीमारी का आखिरी ‘इलाज’ बचा है?
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