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बिहार में मांओं का चीत्कार और सिस्टम बीमार,आखिर कब तक?

बिहार के मुजफ्फरपुर में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है.लेकिन मंत्री जी क्रिकेट में लगे शतक पर झूम रहे हैं.

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वीडियो एडिटर- विवेक कुमार

कैमरा- सुमित

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माएं सिसक रही हैं, बाप का कलेजा चीख चीखकर फटने को है, बच्चा सिर पटकते-पटकते मौत की आगोश में जा छिपा है. लेकिन मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बहुमत की चट्टान पर चढ़कर लोगों के पहाड़ जैसे दर्द को देख नहीं पा रहे हैं. बिहार के मुजफ्फरपुर में 10 दिनों में 10, 20, 30 नहीं बल्कि 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. लेकिन सरकार के मंत्री क्रिकेट के मैदान में लगने वाले शतक पर झूम रहे हैं.

कोई बिहार के सीएम से लेकर देश के हेल्थ मिनिस्टर से ये सवाल पूछे कि जनाब और कितने साल चाहिए? बिहार की माएं पूछ रही हैं और कितनी लाशें चाहिए? और कितने चुनावों में जीत चाहिए? आपको सिस्टम दुरुस्त करने के लिए. बिहार पूछ रहा है जनाब ऐसे कैसे?

बिहार में दिमागी बुखार से 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. और 300 से ज्यादा अस्पताल में जिंदगी और मौत से बिना किसी मजबूत तैयारी के बस भगवान भरोसे लड़ रहे हैं. दिन ब दिन मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. मुजफ्फरपुर की बदहाली की तस्वीर धीरे-धीरे मीडिया के हिंदू-मुसलमान की बहस के बीच जगह तो बना पा रही है.

लेकिन सूबे के सीएम को उन माओं को सहारा देने, उन लचर हेल्थ सिस्टम के चरमराए हुए अस्पताली तैयारी का जायजा खुद से आकर लेने में 10 दिनों से ज्यादा का वक्त क्यों लग जाता है. सीएम नीतीश कुमार के मंत्री श्याम रजक कहते हैं. सीएम के आने से क्या होगा, इलाज और मॉनिटरिंग की जरूरत है. वो हो रही है. लेकिन मंत्री जी भूल गए कि पिछले 15 सालों से ये कैसी मॉनिटरिंग है, जिसने सूबे के मॉनिटर की तैयारी की कलई खोल दी.

सीएम नीतीश से सवाल

सूबे के मालिक अब क्या कहेंगे. क्यों अब भी अस्पतालों के ICU में डॉक्टरों की कमी है? क्यों नहीं अब तक ट्रेंड नर्स की बहाली हुई? क्यों नहीं अस्पताल में बेड की कमी दूर हो सकी? सवाल सिर्फ इनसे ही नहीं देश की सेहत का ख्याल रखने वाले स्वास्थय मंत्री से भी है.
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डॉक्टर हर्षवर्धन ने 2014 में भी किए थे वादे

साल 2014 में बिहार के इसी मुजफ्फरपुर में 350 से ज्यादा बच्चों की बुखार से मौत हुई थी. तब केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने इस बीमारी से लड़ने के लिए बड़े बड़े वादे किये थे, वो वादे आज भी कोमा में हैं.

पिछली बार की तरह इस बार भी डॉक्टर हर्षवर्धन ने वादे किए हैं, लेकिन जिनके बच्चे मर गए हैं उन माओं से मंत्री जी क्या कहेंगे? क्या कहेंगे की आजतक मरीजों के इलाज का प्रोटोकॉल तय नहीं हो सका? क्या कहेंगे की इस महामारी से लड़ने के लिए इलाज नहीं, बल्कि मौसम के भरोसे रहना होगा.

जूनियर मंत्री को क्रिकेट की चिंता

सीनियर मंत्री ने तो वादा भी किया, लेकिन जूनियर मंत्री तो बच्चों की जिंदगी से जुड़े गंभीर मामले पर चल रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्रिकेट में कितना विकेट गिरा है, इस चिंता में थे.

मंगल पांडेय जी इतने दिनों में कितने माओं का सपना टूटा है उसकी भी फिक्र कर लेते, तो आज हालत कुछ और होती.

बिना एनेस्थेसिया के बेहोशी में चल रहे सिस्टम का हाल तो ये है कि केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे बुखार से बच्चों की मौत पर चल रहे प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान झपकी लेते नजर आए.

हालांकि मंत्री जी ने ‘ऊंघने’ पर सफाई दी. उन्होंने कहा है कि वह प्रेस कॉन्फ्रेंस में सो नहीं रहे थे, बल्कि “मनन-चिंतन” कर रहे थे.

खैर जो भी हो सवाल बहुत हैं, लेकिन जीत और बहुमत के शोर में शायद सरकार के कानों में माओं की चीख की आवाज नहीं पहुंच पा रही है. शायद ये बच्चे वोट बैंक नहीं हैं. या शायद धर्म के नाम पर नफरत तो फल फूल रहा ही है फिर किसी का पालना सूना भी हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है.

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