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बिहार में यूनिवर्सिटी शिक्षकों को चपरासी से कम सैलरी, वो भी लेट

बिहार की यूनिवर्सिटी में गेस्ट टीचरों को मिलती है फोर्थ ग्रेड से कम सैलरी, वो भी लेट  

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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

बिहार के विश्वविद्यालयों में ऐसे शिक्षक पढ़ाते हैं, जिनकी सैलरी फोर्थ ग्रेड कर्मचारियों से भी कम है. जो सैलरी है वो भी वक्त पर इन्हें नहीं मिलती. मार्च 2020 से ही इन्हें सैलरी नहीं मिली है, जिसकी वजह से इस कोरोनाकाल में इन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

मार्च 2020 से भुगतान लंबित होने के कारण कोरोना काल में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. लोगों का जीना मुश्किल हो गया है. यहां तक कि मकान मालिक भी अब अल्टीमेटम देने लगे हैं कि मेरे किराए का भुगतान होना चाहिए. राशन दुकानदार भी धमकी देने लगे हैं.
डॉ. सूर्यदेव राम, इतिहास, एचआर कॉलेज, अमनौर

2018 में शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए कॉलेजों में अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति  हुई थी. हर एक लेक्चर पर 1000 रुपये मिलने का नोटिफिकेशन जारी किया गया था. महीने में अधिकतम 25 क्लास की सीमा तय की गई थी.

राज्य में करीब 1800 अतिथि शिक्षक 12 से ज्यादा विश्वविद्यालयों और संबद्ध कॉलेजों में काम कर रहे हैं. लॉकडाउन में भी वो बच्चों की ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं.

इस महामारी के दौर में भी प्रत्येक दिन अतिथि शिक्षक ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं, फिर भी 5 महीने से इनका भुगतान बाकी है. लगभग 6 महीना होने को है.
धर्मेंद्र कुमार सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, गेस्ट फैकल्टी, फिजिक्स, गंगा सिंह कॉलेज, छपरा

कोरोना काल में बिना सैलरी इनकी जिंदगी काफी परेशानी में गुजर रही है. बच्चों की पढ़ाई, घर चलाना मुश्किल हो गया है.

हम अपनी चीजों को कैसे मैनेज कर रहे हैं, ये सिर्फ हम समझ रहे हैं. हमारी यहां सुनने वाला कोई नहीं है और न ही किसी का ध्यान इस विषय पर जा रहा है कि अतिथि शिक्षक इस दौर में कैसे जीवनयापन कर रहे हैं.
सीमा (बदला हुआ नाम), सहायक अतिथि शिक्षक, जेपी यूनिवर्सिटी

हालांकी जब इस विषय में हमने तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी के वीसी से बात की तो उनका कहना था कि हम उन्हें वेतन देने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

हमलोगों ने इन्हें देने वेतन का फैसला लिया है. पढ़ाए तो हैं ही, तो इन्हें मिलना चाहिए. इसके लिए कमिटी बैठी है. 3-4 दिन में पेमेंट हो जाएगा. फंड में पैसे नहीं आए हैं. जो भी इंटरनल रिसोर्सेज हैं, उससे दे रहे हैं.
प्रो. अजय कुमार सिंह वीसी, तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी

2018 में अतिथि सहायक शिक्षकों का मानदेय 25000 तय हुआ था जिसे 2019 में UGC ने बढ़ाने का निर्देश दिया. लेकिन इससे बिहार के शिक्षकों का नसीब नहीं बदला.

राजभवन में भी 28 नवंबर 2019 को ये निर्णय लिया गया कि अतिथि शिक्षकों के मानदेय में वृद्धि करते हुए इन्हें 50,000 रुपये दिए जाए लेकिन इसके बावजूद बिहार सरकार ने मानदेय में वृद्धि नहीं की.
डॉ. आनंद आजाद तिलका मांझी भागलपुर विश्विद्यायलय, भागलपुर

मधेपुरा के भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी के डॉ. सतीश कुमार दास बताते हैं कि मानदेय किसी चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी से भी कम है. उनको भी 30-35 हजार वेतन मिलता है. जबकी गेस्ट फैकल्टी को केवल 25 हजार अधिकतम मासिक मानदेय मिलता है. उनका शोषण होता है.

विज्ञापन निकालकर अगर सभी नियमों के तहत नियुक्ति की गई है तो 244 दिन के अंदर सरकार को खुद नियमित कर देना चाहिए. देश का कौन सा कानून है कि आप हमें 25000 पर नियुक्त किए तो हम रिटारयमेंट तक 25000 पर काम करते रहे.
डॉ. मुकेश प्रसाद निराला, राजनीतिशास्त्र, रामेश्वर लता संस्कृत महाविद्यालय

परमानेंट शिक्षकों को 57,700- 1,82, 200 रुपये तक सैलरी मिलती है. अभी फिलहाल बिहार की यूनिवर्सिटीज में करीब 5,000 पद खाली है. गेस्ट टीचरों की मांग है कि पहले उन्हें परमानेंट किया जाए, उसके बाद ही नई भर्तियां निकाली जाए.

हमारी नियुक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बिहार सरकार के नियमों के मुताबिक हुई है. सरकार से मांग है कि हमारी सेवा को नियमित किया कि जाए, उसके बाद ही नई नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया जाए.
डॉ. मनीष कुमार सिंहराजेंद्र महाविद्यालय, छपरा

शिक्षक अपनी मांगों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिख रहे हैं. लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है.

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