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गंगा की लहरों पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की यादों का सफर  

बिस्मिल्लाह खान की दत्तक बेटी ने पुण्यतिथि पर बांटी बाबा की यादें

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उनके कंठ में कुछ ऐसा था जिससे निकली सांसें जब शहनाई से छू जाती थीं तो मानो वक्त कहीं ठहर जाता हो. अगर दुनिया में किसी एक वाद्य को सिर्फ एक शख्स से जोड़ दिया जाए तो शहनाई, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के नाम ही रहेगी.

बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहार के डुमरांव में 21 मार्च 1916 को पैगम्बर खान और मिट्ठन बाई के यहां हुआ था. उनके बचपन का नाम कमरुद्दीन था. कहा जाता है कि चूंकि उनके बड़े भाई का नाम शम्सुद्दीन था, इसलिए उनके दादा रसूल बख्श ने उन्‍हें 'बिस्मिल्लाह' नाम से पुकारा और ताउम्र यही नाम उनके साथ रहा. 21 अगस्त, 2006 को संगीत की विरासत छोड़ कर उस्ताद सुरों की अनंत यात्रा पर चल दिए.

उस्ताद की दत्तक बेटी और गायिका सोमा घोष ने क्विंट से अपने पिता की यादें साझा कीं. उसी गंगा की लहरों पर जो आधी सदी से ज्यादा तक बिस्मिल्लाह खान की सुर लहरियों से ताल मिलाती रही.

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