क्विंट हिंदी और गूगल की पहल BOL: Love Your भाषा में टेक, पॉलिसी और अपनी भाषाओं के लिए काम करने वाले तमाम दिग्गजों का जमावड़ा लगा. बात स्टार्टअप की चुनौतियों को लेकर हुई तो इस पर भी कि ऐसी कंपनियां रेवेन्यू कैसे कमा सकती हैं?
लैंग्वेज स्टार्टअप की चुनौतियां क्या हैं?
भारतीय भाषाओं की सोशल नेटवर्किंग एप शेयरचैट के को-फाउंडर अंकुश सचदेवा इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि शुरुआत में पूंजी जुटाना आसान नहीं था. हिंदी एप में निवेशकों ने दिलचस्पी ही नहीं दिखाई. मीडियोलॉजी के को-फाउंडर मनीष ढींगरा ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि जिन कंपनियों के साथ वो काम कर रहे थे वहां कंटेंट तो जेनरेट हो रहा था लेकिन पैसा नहीं आ रहा था. आज हिंदी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू- इन 4 भाषाओं में ‘मॉनेटाइजेशन’ आसान है. लेकिन एडवरटाइजर, भारतीय भाषाओं के डिजिटल मीडिया पर पैसा लगाने को लेकर आशंकित हैं. उनकी ये चिंता दूर करने की जरूरत है.
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