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ग्लोबल टेक वॉर में भारत से पंगा लेकर चीन ने कर लिया सेल्फ गोल

ये एक बेहद संगीन टेक युद्ध है, जिसे लंबा चलना था, लेकिन पलक झपकते ही ये युद्ध एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है.

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

59 ऐप पर बैन को कोई डिजिटल सर्जिकल स्ट्राइक बता रहा है तो कोई करारा जवाब, लेकिन सच ये है कि असली युद्ध का मैदान कहीं और है. ये एक बेहद संगीन टेक युद्ध है, जिसे लंबा चलना था, लेकिन पलक झपकते ही ये युद्ध एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है. असली लड़ाई हो रही थी 5G के अखाड़े में. इस मैदान में चीन ने भारत से पंगा लेकर सेल्फ गोल कर लिया है.

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चैलेंजर चीन ने चल दी उलटी चाल

इस युद्ध में चीन चैलेंजर था लेकिन उसने खुद ही ये बाजी अपने खिलाफ कर ली है. टेक्नोलॉजी का ये युद्ध अमेरिका और चीन के बीच था. अमेरिका काफी आगे था लेकिन चीन ने तेजी से छलांग लगाई और उसने तय किया कि अगर अमेरिका का मुकाबला करना है तो इसका एक ही तरीका है कि वो 5G टेक्नोलॉजी में अमरीका को टक्कर दे और दुनिया के कई सारे देश उसकी टेक्नोलॉजी को अपना लें. भारत इस मामले में न्यूट्रल था.

यहां पहले अमेरिकी कंपनियां आईं. उसके बाद चीनी कंपनियां आईं. भारत ने उनको आसानी से आने दिया. भारत हुवावेई से बात कर रहा था. पिछले साल 5G का ट्रायल शुरू करने की बात हुई थी. जाहिर है कि अमेरिका दुनिया के सारे देशों को चीन की इस टेक्नोलॉजी को लेने से मना कर रहा था. भारत ने ट्रायल की तारीख टाल दी.

दरअसल हुवावेई और भारत के बीच दस साल से ज्यादा से ये बातचीत चल रही थी लेकिन कभी अंजाम तक नहीं पहुंच पाई. चीन से बढ़ते तनाव और 59 ऐप पर बैन के बाद अब हुवावेई को भारत में ट्रायल या सामान बेचने की इजाजत मिले ये मुश्किल है.
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इसी तरह चीन की दूसरी बड़ी कम्पनी ZTE टेलीकॉम के सामान बनाती है. उसे भी अब देश की सरकारी और प्राइवेट कंपनियां कारोबार बंद कर देंगी. भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है लेकिन सूत्रों के हवाले जानकारी दे दी है कि उसके MTNL और BSNL ने इन दोनों कंपनियों से कारोबार करने से मना कर दिया. 'अब तब 59' से भारत साफ संकेत दे दिए हैं लेकिन उसे इस दिशा में आगे भी बढ़ना पड़ेगा.

भारत का बाजार बंद तो 'चीनी कम'

चीन के साथ बेहद जटिल संबंधों के बावजूद भारत के चीन के साथ कारोबारी रिश्ते बढ़ रहे थे. लेकिन भारत और चीन की सीमा पर मई और जून में जो घटनाएं हुई हैं, उसके बाद अब ये साफ है कि चीन ने 5G के लिए भारत जैसा बेहद बड़ा बाजार खो दिया है. पूरी दुनिया में टेक्नोलॉजी के मामले में जो चार बड़े बाजार हैं - अमेरिका, चीन, भारत और यूरोपीय देश- उनमें हर तरह की टेक्नोलॉजी के लिए भारत संभावनाओं से भरा था, एक बड़ा बाज़ार था लेकिन अब चीन आने वाले कई वर्षों के लिए भारत को खो चुका है और भारत के बिना उसका टेक्नोलॉजी से जुड़ा कारोबार अब एक हद तक ही बढ़ सकता है.

दुनिया भर में चीन के लिए मुश्किलें

अमेरिका कई वर्षों से चीन की टेक्नोलॉजी के खतरे को समझ रहा था और बता रहा था. ट्रंप के शासनकाल में हुवावेई और ZTE जैसी सरकारी चीनी कंपनियों के खिलाफ कई जांच शुरू हुई है हालांकि व्यापार में फायदा लेने के लिए ट्रंप चीन की ZTE की पैरवी करते रहे. लेकिन आखिर अब अमेरिका ने भी कह ही दिया है कि हुवावेई और ZTE देश की सुरक्षा के लिए खतरा है. रोक लगी नहीं है लेकिन अमेरिका उसी दिशा में बढ़ रहा है. सरकारी फंडिंग से ग्रामीण इलाकों में कनेक्विटी के लिए जो वेंडर इन दो कंपनियों से सामान खरीद रहे थे, उसपर रोक तो लगा ही दी गई है. अमेरिका के बाद आशंका है कि यूूके, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया भी चीनी टेक से मुंह फेरेंगे.

अमेरिका के कहने पर हुवावेई के मालिक की बेटी को, जो कंपनी की CFO भी हैं, कनाडा में गिरफ्तार किया गया. कंपनी के दो अधिकारी इस वक्त कनाडा की जेल में है. चीन ने उनको छुड़वाने के लिए कनाडा के हाल ही में तीन नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन कनाडा इस दबाव में नहीं आ रहा. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने साफ कर दिया है कनाडा चीन के ब्लैकमेल में नहीं आने वाला.

चीन ने कभी सिल्क रूट के जरिए आर्थिक शक्ति पाई थी, अब वो 'सिलिकन रूट' के जरिए अपने विश्व विजय रथ को लेकर निकला था. लेकिन इधर भारत और उधर अमेरिका-यूरोप में चीन के इस सिलिकन रूट में इतने बैरिकेड उग आए हैं कि इस रथ के आगे बढ़ने के आसार कम दिखते हैं.

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