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हिंदुत्व की राजनीति को मुकाम, अयोध्या पर फैसले का क्या होगा अंजाम?

दशकों पुराने अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

दशकों पुराने अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने हिंदुओं को विवादित भूमि देने का आदेश दिया है, वहीं मस्जिद के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन दी जाएगी. कोर्ट के इस फैसले का देश की दशा-दिशा और इसकी राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, इसे समझने की कोशिश करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इस विवादित मामले का निपटारा कर देता है. इस तरह का फैसला दिया गया है, जिसमें कानूनी दायरे में रहते हुए लोगों के विश्वास का ध्यान रखा गया है.

इसे बीजेपी की राजनीति के नाते देखेंगे तो ये ‘प्लस-प्लस’ है. बीजेपी और इस तरह की विचारधारा की राजनीति वालों के लिए ये एक मुकाम हासिल करने जैसा है. कहा जा रहा है कि इस फैसले को हार-जीत के तौर पर न देखकर, केवल एक फैसले की तरह देखा जाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान किया जाए, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ये बीजेपी के लिए हर मायने में विन-विन सिचुएशन है.

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‘पहला आउटकम इससे ये निकलता है कि तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनेगा, जिसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू होगा. भव्य मंदिर बनाना पहले ही बीजेपी का अरमान था. आगे विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, तो उससे पहले मंदिर का काम कितनी तेजी से करके दिखा दें, ये बीजेपी का फिलहाल प्लान होगा.’

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कांग्रेस पार्टी ने स्वागत करते हुए कहा कि वो हमेशा से राम मंदिर के पक्ष में थे.

‘कांग्रेस पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता की जिस राजनीति को प्रैक्टिस किया, उसको उसी ने बिगाड़ दिया है कि आज उसका वो इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. कांग्रेस की ही सरकार में ताला खोला गया था. कांग्रेस को नहीं मालूम कि वो हिंदुत्व ब्रांड वाली राजनीति से कैसे डील करे. ये मसला ऐसा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.’
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क्या इसका रिव्यू हो सकता है?

कई सवाल सामने आए हैं कि इस फैसले को रिव्यू पिटीशन के लिए डाला जाएगा, लेकिन ज्यादातर देखा गया है कि इतनी बड़ी बेंच के फैसले में सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटीशन को खारिज कर देता है. यही वजह है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से ये खबर आ रही है कि वो इसके रिव्यू के लिए नहीं जाएंगे.

विश्वास को एक फैक्टर के तौर पर देखा

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में ये मुद्दा था कि वहां मंदिर था कि नहीं था. वहां ये मुद्दा नहीं था कि राम पैदा हुए थे कि नहीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के आखिरी पैराग्राफ में ये कहा कि जितने भी सरकारी दस्तावेज थे, उसमें इसे राम जन्मस्थान के तौर पर उल्लेख किया गया है. इसपर विपक्ष ने फाइनल काउंटर नहीं रखा है, क्योंकि व्यापक रूप से ये माना जाता है. इस अवधारणा को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. इसका मतलब ये हुआ कि कोर्ट ने विश्वास को एक फैक्टर के तौर पर देखा है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करके बाबरी मस्जिद को ढहाया गया. इसका एक अलग केस चल रहा है. इसपर एक क्रिमिनल केस चल रहा है, जिसकी तारीख अप्रैल 2020 में रखी गई है. कोर्ट ने ये भी कहा 1949 में जो राम की मूर्ति रखी गई, वो जबरन रखी गई. इन दोनों घटनाओं का जिक्र कोर्ट ने अपने फैसले में किया है. ऑपरेटिव ऑर्डर अलग बात है, लेकिन जिन-जिन बातों का जिक्र कोर्ट ने किया है, उसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट एक लाइन खींचकर बता रहा है कि क्या कानूनी और गैरकानूनी काम हुए थे और उस पर होहल्ला ना हो.

आज के फैसले के बाद अब ये देखना होगा कि क्या आने वाले दिनों में काशी या मथुरा जैसे मुद्दे उठाए जा सकते हैं?

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