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मोदी सरकार के छिपाने से नहीं छिपेगी देश की भयंकर बेरोजगारी

सबसे अधिक परेशान करने वाली बात ये है कि आंकड़ों के मुताबिक, नोटबंदी के बाद हालात और खराब हुए हैं.

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नए आंकड़ों से रोजगार संकट बेपर्दा हो गया है. इस वक्त देश में रोजगार की हालत पिछले 45 साल में सबसे खराब है. नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, साल 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1% थी. ये वही रिपोर्ट है, जिसे जारी न करने को लेकर केंद्र सरकार विवादों में है.

सबसे अधिक परेशान करने वाली बात ये है कि नोटबंदी के बाद ही हालात बदतर हुए हैं, जिसकी सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ी है. वजह ये कि अगर कुछ पुरुष रोजगार की तलाश में जा रहे हैं, तो महिलाएं घर पर रह रही हैं. वो अपने आप को जॉब मार्केट से हटा रही हैं.

रिपोर्ट कहती है कि देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी, जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.3 फीसदी है. गांव में ये संकट थोड़ा कम लगता है. इसकी वजह है कि लोग खेती से हटकर शहरों की तरफ आकर, कस्बों की तरफ आकर जॉब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.

सरकार डेटा छिपाती या कमी निकालती है

एक और गंभीर बात ये है कि सरकार या तो डेटा छिपाती है या कोशिश करती है कि अगर कोई डेटा बाहर आता है, तो उसे किसी बहस से काट दो. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि CMIE के जो आंकड़े पिछले दिनों आए हैं, वो भी इसी रोजगार संकट की तरफ इशारा कर रहे हैं.

सरकार अपनी पुरानी आदत की तरह इस डेटा को खारिज करने की कोशिश करेगी. ये कहेगी कि इसमें ट्रेडिशनल तरीके से जॉब में नहीं जोड़ने वाली जनसुविधाएं बढ़ाई हैं. लेकिन उन सब डेटा पर भी गंभीर सवाल है. उदाहरण के लिए उज्ज्वला स्कीम में 6 करोड़ लाभार्थी होना, ये शुरुआती कवरेज है. आज की तारीख में कितने लोग दूसरा या तीसरा सिलेंडर लेते हैं, ये बात सरकार नहीं बताती. RTI कर लो, तो भी सरकार ये आंकड़े नहीं देती.

ये जो सर्वे है, इसका काम जून 2018 में पूरा गया था. रिपोर्ट सितंबर-अक्टूबर में रिलीज कर सकते थे. लेकिन रिलीज नहीं होने दिया गया, तो दो एक्सपर्ट ने इस्तीफा दे दिया. मतलब सरकार का झूठ बोलना, डेटा में घालमेल करना फिर से कंफर्म हुआ है.

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सरकार नहीं देगी किसी भी बात का जवाब

सरकार इस बात का कोई जवाब नहीं देगी. उस पर कोई दबाव नहीं है. सरकार इसे ‘फालतू’ भी करार दे सकती है. लेकिन ये बात नहीं भूलना चाहिए कि जो बेरोजगार है, उसको किसी नए आंकड़े की जरूरत नहीं है, वो खुद ही चलता-फिरता आंकड़ा है.

आखिर में ये कहना है कि नोटबंदी बिलकुल अज्ञान का, अहंकार का कदम था. इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा या नहीं, इसका पता नहीं, लेकिन देश को भुगतना पड़ा है.

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