वीडियो एडिटर- कनिष्क दांगी
यूनाइटेड किंगडम (UK) ने फाइजर वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दे दिया है और पूरी दुनिया में ये खबर खुशखबरी के रूप में सामने आई है. लेकिन इसी मौके पर कुछ रियलिटी चेक करना जरूरी है. जैसे की भारत को यह वैक्सीन कब तक मिलेगी, हमारी क्या तैयारी है, सरकार की पॉलिसी क्या होगी, क्या सभी कंपनियों की वैक्सीन भारत में मिलेगी या फिर सरकार तय करेगी कि भारत में कौन वैक्सीन बेच पाएगा?
सबसे पहले बात कि भारत को फाइजर वैक्सीन कब तक मिलेगी. बता दें कि भारत ने फाइजर की कोई प्री बुकिंग नहीं की है. सरकार जैसे बाकी कंपनियों के साथ बात कर रही है वैसे ही इनके साथ भी चर्चा चल रही है. वैसे फाइजर वैक्सीन का रखरखाव भारत के लिए प्रैक्टिकल नहीं है क्योंकि उसे माइनस 70 डिग्री पर ही ट्रांसपोर्ट और स्टोर किया जा सकता है. इसकी भारत में कोई व्यापक व्यवस्था नहीं है. अब यूके से मंजूरी मिलने के बाद अमेरिका के ऊपर भी दबाव आ गया है कि वह जल्दी से परमिशन दे.
अमेरिकी अप्रूवल के लिए 10 दिसम्बर और 17 दिसंबर की तारीख का इंतजार करना होगा. अमेरिकी रेगुलेटर USFDA 10 दिसंबर को फाइजर और 17 दिसंबर को मॉडर्ना के अप्रूवल पर फैसला करेगा कि इमरजेंसी ऑथराइजेशन देना चाहिए या नहीं. इमरजेंसी ऑथराइजेशन का मतलब है कि ये पूरी तरह से मंजूरी नहीं है बल्कि अपवाद स्वरूप हाई रिस्क मरीजों को ये टीका दिया जा सकता है.
अमीर देशों की तैयारी बहुत सुनियोजित है और बड़े पैमाने पर चल रही है. फाइजर वैक्सीन का एक बड़ा शिपमेंट अमेरिका में पहुंच रहा है. यानी जैसे ही अमेरिकी रेगुलेटर मंजूरी देगा, वैक्सीन का डिस्ट्रीब्यूशन वहां भी शुरू हो जाएगा. यूरोपियन यूनियन अप्रूवल देने में पीछे है, लेकिन यूके के अप्रूवल देने के बाद सभी देशों पर दबाव बढ़ेगा और कंपनियां भी सरकारों पर दबाव बनाएंगी कि जल्दी अप्रूवल दिया जाए.
कब तक मिलेगी वैक्सीन?
यह वैक्सीन ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि यह पहली बार एक नए तरह के डिलीवरी प्लेटफार्म पर बना है, जिसका पहले कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है. भारत में ये परंपरागत तरीके बन रही है. भारत बायोटेक, कैडिला और सीरम इंस्टिट्यूट की वैक्सीन को अब तक सरकार ने अप्रूवल नहीं दिया है. तो अब सवाल यह है कि वैक्सीन हमें कब मिलेगी. ऐसी वैक्सीन जो भारत में आ सके, रेफ्रिजरेशन में रखी जा सके और डिस्ट्रीब्यूशन आसान हो.
वैक्सीन को लेकर भारत में फरवरी और मार्च महीने के पहले कोई बड़ी सफलता मिलती नहीं दिख रही है. दिसंबर में अमेरिका और यूके की मंजूरी के बाद जरूरी नहीं है कि वैक्सीन हमको मिले ही. भारत का अभी पक्का ऑर्डर सिर्फ एस्ट्रोजेनेका का के पास है, जो सीरम इंस्टीट्यूट के साथ करार किया है. उसके लिए इंतजार अभी लंबा है.
जब तक वैक्सीन भारत आएगी, साइडइफेक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी होगी
एक अच्छी बात यह है कि फरवरी-मार्च तक पश्चिमी देशों को इसके बारे में और इसके रिस्क के बारे में इतनी जानकारी मिल जाएगी कि भारत में रिस्क फैक्टर कम हो जाएगा अगर हमने उसको ठीक से इस्तेमाल किया और पब्लिक में सही जानकारी दे दी तो भारत के लिए ये अच्छा होगा.पहले कहा गया था कि टीका देंगे लेकिन बाद में भारत के हेल्थ सेक्रेटरी ने यह सफाई दी कि सबको टीका लगेगा टीका लगेगा ऐसा हमने कभी नहीं कहा. जाहिर है कि इसमें चुनाव किया जाएगा किस ग्रुप को पहले वैक्सीन दी जाए.
भारत के लिए हम मानकर चल रहे थे कि 130-38 करोड़ लोगों में सबको वैक्सीन लग जाएगी. लेकिन अब सरकार ने खुद ही बता दिया है कि ऐसा नहीं होने जा रहा है. आने वाले दिनों में सीरो सर्वे के कारण हर्ड इम्यूनिटी पर क्या असर हुआ उसके बारे में भी हमारे पास थोड़ी ज्यादा जानकारी होगी. भारत की अथॉरिटीज तब बेहतर तरीके से ये तय कर पाएंगीं कि भारत में वैक्सीन कैसे जरूरतमंद तक पहुंचे.
वैक्सीन पर सरकार का क्या रुख होगा?
अर्थशास्त्री अजय शाह ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लेख लिखकर कहा है कि 'PPE और टेस्टिंग किट के मामले में प्राइवेट कंपनियां आगे आईं. इसके बाद आपूर्ति भी हो गई और दाम भी नीचे रहे. लेकिन सरकार अगर वैक्सीन मामले में सभी कंपनियों के दरवाजे भारत के लिए नहीं खोलती है तो ऐसा करना गलत होगा.' तो क्या भारत सरकार वैक्सीन की अपने ऊपर पूरी जिम्मेदारी लेगी और ये तय करेगी कि सरकार की इजाजत के बिना दूसरे टीके भारत नहीं आ सकते. लेकिन अजय शाह के मुताबिक ऐसा करना गलत होगा.
भारत में क्या होना चाहिए?
- ट्रायल की सारी सूचनाएं लोगों को दी जाएं
- सरकार को पब्लिक हेल्थ पर अपनी योजना बतानी चाहिए
- सरकार को बाजार की शक्तियों पर भरोसा करना चाहिए
- सरकार को वैक्सीन सुलभ बनाने पर ध्यान देना चाहिए
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