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कोरोना लॉकडाउन: 1.70 लाख Cr. का राहत पैकेज, बड़ी बीमारी-अधूरा इलाज

ये देखना जरूरी है कि सरकार गरीबों के लिए इतना सब करने के बाद इसे कैसे डिलीवर करेगी

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लॉकडाउन के 36 घंटों के बाद सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया. इसका फोकस है कि गरीबों को तत्काल पैसे पहुंचाकर राहत पहुंचाने का काम किया जाए. इस पैकेज को लेकर दो कमेंट आए हैं, पहला कि वेल बिगेन हाफ डन और दूसरा ये है कि इरादा बहुत अच्छा है, लेकिन लॉकडाउन के इस दौर में इसे कैसे लोगों तक पहुंचाया जाएगा.

पैकेज में क्या है खास?

इस पूरे पैकेज पर चर्चा से पहले इसका एक हाईलाइट देख लें. जिन महिलाओं को एलपीजी मिल रही थी, उन 8 करोड़ महिलाओं को अब तीन महीनों के लिए फ्री में एलपीजी मिलेगी. इसी तरह किसानों को तुरंत दो हजार रुपये की किश्त दे दी जाएगी. पीएम किसान योजना के तहत उन्हें पहले से ही 6 हजार रुपये देने की योजना चल रही थी. वहीं जो नरेगा के मजदूर हैं, उनकी मजदूरी को बढ़ा दिया गया है. उनके लिए ऐसा काम क्रिएट किया जाएगा, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा सके.

बुजुर्ग, विधवा, पेंशनधारकों और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के लिए भी प्रबंध किया गया है. वहीं उन कंपनियों में जहां 100 से कम कर्मचारी हैं और 90 फीसदी लोगो की 15 हजार से कम सैलरी है, उनकी कंपनी और कर्मचारियों की तीन महीने की किश्त सरकार भरेगी. इस तरह से सरकार ने तत्काल राहत देने की कोशिश की है.
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लेकिन अगर इस पैकेज को अपेक्षा के तौर पर तौलना चाहें तो कैसे तौल सकते हैं? इसका एक तरीका ये हो सकता है कि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जो विश लिस्ट रखी थी, जिसे शायद उन्होंने कई एक्सपर्ट से बात करके रखी होगी. उनका कहना था कि-

सरकार के पास केंद्र और राज्य सरकारों को मिलाकर 70-75 लाख करोड़ खर्च करने के प्रावधान से 5-6 लाख करोड़ रुपये डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के लिए निकालने चाहिए. इसमें इस बात का खयाल नहीं रखना चाहिए कि किधर कितना लीकेज हो जाएगा.
पी चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री

उसके हिसाब से देखा जाए तो निर्मला सीतारमण का ये पैकेज करीब पौने दो लाख करोड़ रुपये का है. यानी एक तिहाई विश लिस्ट पूरी हो चुकी है. बहस ये है कि अगर जनधन में अगर आप पैसा डालते हैं और वही नरेगा में पैसा देते हैं. तो नरेगा वाले ज्यादा गरीब लोग हैं. जनधन वाले ज्यादा गरीब लोग हैं, ये साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है. दूसरा आप काम कैसे पैदा करेंगे, ये एक बड़ा सवाल है. वहीं बैंकों को ये भी कहा गया है कि आप अपने कम से कम कर्मचारियों को रखिए तो ऐसे में लोगों तक पैसे कैसे पहुंचेंगे?

एक जो हाइलाइट है, जिस पर किसी तरह की बहस नहीं है, वो है कि पीडीएस के जरिए जो एफसीआई के पास सरप्लस अनाज पड़ा हुआ है, उसमें से गरीबों के लिए अनाज तुरंत बढा दिया गया है. जिसमें अगले तीन महीने पांच किलो गेंहू या चावल और एक किलो दाल तुरंत उठा सकते हैं.

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पैकेज के बाद अब डिलीवर करने का चैलेंज

अगर सरकार का पौने दो लाख करोड़ का जो हिसाब है अगर उसकी डीटेल में जाएं तो इसमें से करेंट एलोकेशन को री डायरेक्ट किया जाएगा. इसीलिए सरकार का असली खर्च एक या सवा लाख करोड़ हो सकता है. ये देखना जरूरी है कि सरकार गरीबों के लिए इतना सब करने के बाद इसे कैसे डिलीवर करेगी.

लॉकडाउन के चलते जब इकनॉमी लगभग पूरी तरह से रुक गई है, तो ऐसे में ट्रेड कॉमर्स इंडस्ट्री और उसको चलाने वाले फाइनेंस सिस्टम के लिए आप कब राहत लेकर आएंगे. इसे लेकर वित्त मंत्री ने कहा कि उनकी नजर है, लेकिन फिलहाल गरीबों को जरूरी चीजें देने पर फोकस है.

लेकिन शहरों में रहने वाले गरीब और जो मजदूर इस वक्त एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं, अपने घरों की तरफ जा रहे हैं और वो किसी भी डेटाबेस में नहीं है, उसके हाथ में पैसा कैसे मिलेगा ये एक बहुत बड़ा सवाल अब भी खड़ा है.
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इकनॉमी का जल्द शुरू होना जरूरी

देखा जाए तो इस अनहोनी वाली परिस्थिति में भारत ने एक रास्ता चुना है, जो ये है कि जिंदगियों को पहले बचाना है. चाहे इसके लिए अर्थव्यवस्था पटरी से उतर जाए और उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े. लेकिन इकनॉमी का इस तरह रुक जाना भी एक बड़ी तकलीफ लाएगा. इसीलिए ये एक खतरे की घंटी की तरह है, क्योंकि हमारी इकनॉमी जो पहले से ही मंदी में थी अब वो और मंदी की तरफ ना जाए. उसके लिए हम कितनी जल्दी इकनॉमिक एक्टिविटी को वापस शुरू कर सकते हैं, इस पर ध्यान देना जरूरी होगा.

क्योंकि ऑर्गेनाइज सेक्टर के नुकसान का असर अनऑर्गेनाइज सेक्टर भी पड़ेगा. गरीबों को पैसा देना एक तत्कालिक राहत है, लेकिन पूरी इकनॉमी का इस तरह रुक जाना आने वाले दिनों में बहुत ही चेतावनी भरा वक्त है. हलांकि सरकार के दिमाग में इसके लिए कोई न कोई प्लान होगा. लेकिन क्योंकि किश्तों में ये पैकेज हमें मिल रहे हैं इसीलिए इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.

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