भारत में जारी कोरोना संकट के बीच दुनियाभर के देशों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया है, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा अमेरिका की ओर से दी जाने वाली मदद की हो रही है. ब्रेकिंग व्यूज में समझिए कि आखिरी कैसे शुरुआत में भारत की मदद करने से हिचकिचाने वाला अमेरिका, बाद में ‘तत्काल मदद’ करने के लिए तैयार हो गया.
कैसे अचानक भारत की मदद को तैयार हुआ अमेरिका?
दिलचस्प बात है कि सरकार के साथ-साथ कई लोगों ने अमेरिकी सरकार पर मदद के लिए दबाव बनाया. इसलिए यह एक प्रकार की संगठित पहल का नतीजा है कि अमेरिका भारत की मदद के लिए राजी हुआ.
इसमें एक शख्सियत का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा रहा है और वह हैं डॉ. आशीष झा...बिहार मूल के और अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के डीन डॉ. आशीष झा.
डॉ. झा ने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखकर बताया कि, आखिर क्यों अमेरिकी सरकार को एस्ट्रेजेनेका वैक्सीन की अतिरिक्त खुराकों को भारत भेजना चाहिए, जिसका वो कभी इस्तेमाल नहीं कर पाएगी. डॉ. झा के इस आर्टिकल के बाद अमेरिका में इस मामले को लेकर काफी कुछ हुआ.
क्या मॉडर्ना,फाइजर के पेटेंट से भारत को राहत देगा अमेरिका?
अब सबसे अहम बात है कि क्या अमेरिका की सरकार कोरोना संकट की इस घड़ी में मॉडर्ना, फाइजर के पेटेंट से भारत को राहत देगी और कोरोना महामारी के समय में वैक्सीन निर्माण में छूट मिलेगी. इससे पहले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने अमेरिका के राष्ट्रपति से वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की थी.
सीरम को कच्चा माल देना अमेरिका के भी हित में था
एक्सपर्ट्स के अनुसार, शुरुआत में वैक्सीन को लेकर भारत की मदद से इनकार करने वाला अमेरिका इस बात से परेशान था कि उन्हें सबसे ज्यादा क्रिटिकल सप्लाई की जरूरत है लेकिन 25 अप्रैल के बाद जब भारत में हालात गंभीर हुए और अमेरिकी डॉक्टर्स और विशेषज्ञों ने अमेरिका की सरकार को समझाया कि भारत में जारी कोरोना संकट काफी गंभीर है. इसके बाद यूएस प्रशासन भारत की मदद के लिए तैयार हुआ.
पहले अमेरिका को थी अपनी चिंता और फिर पता चली स्थिति की गंभीरता
26 अप्रैल को अमेरिका में भारत के राजदूत ने जेक सुलिवान को शुक्रिया कहा, जब उन्होंने कोरोना संकट से मिलकर निपटने के लिए भारत में अपने समकक्ष एनएसए अजीत डोवाल से बात की. वहीं 23 अप्रैल को कई थिंक टैंक्स और डॉक्टर्स ने अमेरिकी सरकार से चर्चा की.
वहीं यूएस में कई सांसदों ने अमेरिकी सरकार पर भारत की मदद करने के लिए दबाव बनाया. 25 अमेरिकी सांसदों ने बाइडेन प्रशासन से कहा कि लोकतांत्रिक साझेदार के रूप में उन्हें भारत की मदद करनी चाहिए.
अमेरिका केंद्र के जरिए नहीं, सीधे राज्यों तक मदद पहुंचाना चाहता था
26 अप्रैल को यूएस-इंडिया ज्वाइंट बिजनेस काउंसिल की बैठक को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने संबोधित किया. इस बैठक में शामिल विजय आडवाणी ने बताया कि अमेरिका भारत में सीधे राज्यों को मदद करना चाहता है ताकि वैक्सीन और अन्य मेडिकल राहत सीधे लोगों तक पहुंचे. वहीं हिन्दू अखबार के अमेरिका में मौजूदा संवाददाता ने बताया कि वैक्सीन को लेकर भारत सरकार ने अमेरिका से कोई मांग नहीं की है. हालांकि अन्य लोगों ने वैक्सीन को लेकर अमेरिका पर दबाव बनाया.
CEO’s का टास्क फोर्स करेगा भारत की मदद
US IBC और अन्य अमेरिकी कॉर्पोरेशन ने मिलकर भारत की मदद के लिए 40 सीईओ का एक टास्क फोर्स बना दिया है, जिसमें इंडियन सीईओ भी शामिल हैं. अमेरिका का मानना है कि अगर सीरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन के लिए कच्चे माल की सप्लाई रुकती है तो दुनिया में COVID संकट पैदा हो सकता है क्योंकि SII सबसे बड़ा वैक्सीन सप्लायर है.
दुनिया में जब भी कोई आपदा या मानवीय संकट आया है तो भारत ने हमेशा अपनी क्षमता से ज्यादा मदद की है. अमेरिका ने खुद इस बात को स्वीकार किया है. आज फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और पाकिस्तान भारत को मदद की पेशकश कर रहे हैं.
मार्च के पहले हफ्ते में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत हुई लेकिन अप्रैल के मध्य में सरकार ने रोकथाम के लिए तेजी से काम किया. अगर हमने 4 हफ्ते बर्बाद कर दिए हैं तो हमें मदद के लिए अमेरिका के 3 से 4 दिन लेने पर बहस नहीं करनी चाहिए.
दुनिया के बड़े देश भारत की मदद के लिए तैयार हैं इसलिए हमें इन देशों से मदद लेने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए. वैक्सीन राष्ट्रवाद जैसे मुहावरों से परहेज करना चाहिए.
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