ADVERTISEMENTREMOVE AD

ब्रेकिंग Views | ऑटो अटका, बाजार भटका, इकनॉमी को ये कैसा झटका?

कार से शेयर बाजार तक मंदी, क्यों मुरझा रही इकनॉमी?

छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बजट पेश हुए 1 महीना बीत चुका है. इकनॉमी का लेखा-जोखा देखें तो कारोबार और शेयर बाजार का मूड काफी खराब है. सबसे पहले बात करते हैं ऑटो सेक्टर के कारोबार की. मारुति सुजुकी इंडिया का संकट बढ़ता जा रहा है, मारुति की बिक्री जुलाई में 33.5% घट गई है. इसकी घरेलू बिक्री 1 लाख 54 हजार 150 यूनिट (जुलाई 2018) के मुकाबले 36.3% घटकर 98 हजार 210 यूनिट रह गई है. मारुति इकनॉमी के हालात का 'दिशासूचक यंत्र' माना जाता है. सेल में बढ़त यानी अच्छी इकनॉमी और सेल में गिरावट यानी इकनॉमी की हालत मंद है.

इसके अलावा ऑटो सेक्टर की बाकी कंपनियां भी मंदी से हांफती नजर आ रही हैं. महिंद्रा ट्रैक्टर की बिक्री में 12% वहीं अशोक लेलैंड ट्रक की बिक्री में भी 14% गिरावट आई है.

कार डीलरों के संगठन फाडा के मुताबिक बिक्री में हो रही गिरावट का नतीजा भी दिख रहा है. बीते डेढ़ साल में करीब 282 डीलरशिप बंद हो चुकी है. आने वाले दिनों में प्रोडक्शन में और गिरावट आ सकती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब बढ़ते हैं शेयर बाजार की ओर...

इस महीने 17 साल बाद सबसे ज्यादा गिरावट के साथ शेयर बाजार बंद होने की खबर आई. बड़े से बड़े शेयर 10 से 50% तक टूटकर ध्वस्त हो चुके हैं. मिड कैप और स्मॉल कैप की हालत और खराब है. इसकी वजह ये है कि फॉरेन फ्लो यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) का पैसा आना बंद हो गया. इन फ्लो लगातार गिर रहा था. अब वो आउट फ्लो में बदल गया है. इस वक्त निगेटिव कैश फ्लो है. एफपीआई जुलाई के महीने में 15 हजार करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट लेकर चले गए हैं.

बाजार के निवेशकों के 13-14 लाख करोड़ रुपये डूब चुके हैं. मूड खराब होने की वजह है-सुपर रिच टैक्स.

CAG ने कहा है फिस्कल डेफिसिट का आंकड़ा और ऑफ बैलेंस शीट खर्चे जो सरकारी खजाने से हुए हैं, उसे मिला लिया जाए तो फिस्कल डेफिसिट 3.4% नहीं है बल्कि 5.9% है. इसी आंकड़े को देखकर देसी-विदेशी निवेशक स्ट्रैटजी बनाता है. इसलिए इस आंकड़े का इकनॉमी पर गहरा असर पड़ता है. इसका सरकारी खजाने की सेहत पर काफी असर पड़ता है.

बात करें सरकारी खजाने की तो अप्रैल, मई, जून के जारी आंकड़ों के मुताबिक, नेट टैक्स रेवेन्यू में 6% की बढ़त हुई है. जबकि बचे 9 महीनों के भीतर टैक्स कलेक्शन में 30% की बढ़त का सरकार ने टारगेट रखा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
निवेश, उद्योग का प्लान नदारद है. एक और आंकड़ा डराता है. इस वक्त देश के बड़े शहरों में 13 लाख तैयार मकानों की बिक्री ठप पड़ी है.

ऐसे में इकनॉमी के तेज ग्रोथ के दावों को पंख कैसे लगेंगे? हम मंदी की गिरफ्त में है जहां रोजगार जाने का खतरा मंडराता रहता है. भारतीय इकनॉमी गंभीर संकट की ओर बढ़ रही है. ऐसे इमें इकनॉमी को नए सोच, नए नजरिये का बस इंतजार ही है!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×