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किसान आंदोलन: बैकफुट पर सरकार, थोड़ा और आगे बढ़ने की दरकार

जस्टिन ट्रूडो ने ‘ट्रोल’ किया और भारत के लोगों ने भी उनको ट्रोल करने की कोशिश की. आज ‘ब्रेकिंग व्यूज’ में बात करेंगे

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वीडियो एडिटर- कनिष्क दांगी

सरकार ने मंगलवार को किसानों से बातचीत तो की, लेकिन बड़े अनमने तरीके से ये बैठक हुई. कोई नतीजा नहीं निकला. सरकार ने किसानों नेताओं को बुलाकर ये कहा कि आपके लिए हम एक कमेटी बना देते हैं, अब आंदोलन खत्म करके घर चले जाइए. किसान आंदोलनकारियों ने कहा कि आप कमेटी बनाएं हम अपनी बातचीत जारी रखेंगे, लेकिन हम घर नहीं जाएंगे.

दूसरी तरफ कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत को 'ट्रोल' किया और भारत के लोगों ने भी उनको ट्रोल करने की कोशिश की. इसके बारे में भी आज 'ब्रेकिंग व्यूज' में बात करेंगे.

किसान आंदोलन: क्रोनोलॉजी समझिए

1 दिसंबर किसान आंदोलन का छठा दिन है, किसान दिल्ली में आकर जमे हुए हैं. पहले सरकार ने कहा कि आप चले जाइए तब हम बात करेंगे हम रास्ता निकालते हैं. दूसरी तरफ बदनामी की ये कोशिश की गई कि जो बीजेपी के आईटी सेल के ट्रोल लोग थे, वो इस आंदोलन को बदनाम करने में लगे हुए थे. खालिस्तान से संपर्क जोड़ रहे थे लेकिन तब तक आंदोलन इतना बड़ा हो गया कि इनकी ही पार्टी से जुड़े हुए लोग भी विरोध में उतर आए.

राजस्थान से NDA सांसद हनुमान बेनीवाल और हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने ये कहा कि किसानों की जो मांग है, MSP की गारंटी, उसे कानून में लिखित में सरकार दे, इस बात को मान लेना चाहिए.

हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड के अध्यक्ष और निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने इस्तीफा दे दिया. यानी लंगर, खाप और आंदोलन, ये तीनों चीज मिलाकर आंदोलन लगातार आगे ही बढ़ रहा है. सरकार ने कोशिश ये की है कि किसानों से बातचीत की जाए. उनको टुकड़ों-टुकड़ों में अलग-अलग कर दिया जाए.

लेकिन किसानों के नेताओं को ये मंजूर नहीं था. उन्होंने यह भी कोशिश की कि योगेंद्र यादव को इस मीटिंग में शामिल ना किया जाए. ये बात सूत्रों के आधार पर आई लेकिन योगेंद्र यादव ने जवाब दिया है और यह कहा कि ''मैंने खुद ही कहा कि मेरे होने से दिक्कत है तो एक व्यक्ति के कारण काम रुकना नहीं चाहिए आप लोग आराम से जाकर बात करें. समाधान निकालना चाहिए.''

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क्या सरकार आंदोलन की गंभीरता नहीं समझ पाई?

बात कहां अटकी है? पहले तो सरकार का समझना था कि आंदोलन 'आई-गई' बात हो जाएगी और नेशनल मीडिया में कवरेज नहीं मिलेगा. लेकिन जब नेशनल मीडिया में कब कवरेज मिलना शुरू हो गया और दिल्ली में इनको रोकने की कोशिशों के बाद भी पुलिस और प्रशासन इनको रोक नहीं पाए. तब सरकार को ये बात समझ आ गई कि किसी प्रकार का बल प्रयोग आगे भारी पड़ सकता है. इसलिए सरकार ने चतुराई दिखाई और किसानों को दिल्ली आने की इजाजत दे दी. फिर लगा कि बातचीत के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं.

पार्टी अध्यक्ष नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री तोमर ने रणनीतियां बनाईं. ऐसा लगा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सरकार की तरफ से बातचीत को लीड करेंगे लेकिन किसानों से हुई बैठक में वो शामिल नहीं हुए. तो सूत्रों के हवाले से ये बताया गया कि उनको 'रिजर्व फोर्स' के रूप में रखा गया है, आगे जरूरत पड़ी तो उन्हें उतारा जाएगा. लेकिन किसानों की तरफ से साफ है कि वह झुकने को तैयार नहीं है. अब इसमें सरकार कैसे रास्ता निकालती है, कहां बीच का रास्ता है,ये देखना होगा.

ट्रूडो का किसानों पर बोलना गंभीर बात?

इस बीच जब ये मसला उठा कि जस्टिन ट्रूडो भारत के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहे हैं तो सोशल मीडिया में ट्रोलिंग के जरिए ये बात कही जाने लगी कि क्या जब इस बार कहा गया था कि 'अबकी बार ट्रंप सरकार' तो ये अमेरिका के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं था? जाहिर है कि ट्रूडो वाला डेवलपमेंट एक सीरियस डेवलपमेंट है. इस मायने में कि जब से अमेरिका में बाइडेन की जीत हुई है और अब वह सरकार में आ जाएंगे, तो उसके बाद से लोकतांत्रिक शक्तियों की तरफ से 'पुश-बैक' होने जा रहा है या होगा, उसकी एक झलक ट्रूड़ों के बयान में दिखती है. ऐसा ट्रंप के शासन के दौरान नहीं दिखता था कि सिविल लिबर्टी के मामले में या सिविल सोसाइटी के शांतिपूर्ण आंदोलनों के दौरान ट्रंप के राज में ऐसा नहीं देखा जाता था.

फिलहाल, अंत में यही बताना है कि किसानों का आंदोलन जिस तरीके से टिका हुआ है, जाहिर है कि सरकार उसमें कोई दरार डालने की कोशिश करेगी. किसका धैर्य पहले टूटेगा? इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा.

तीन बाते हैं-

  • क्या खरीदार और बेचने वाले किसान के बीच में 'डिस्प्यूट मेकैनिज्म' के लिए आप इंडिपेंडेंट अथॉरिटी नहीं बना सकते?
  • क्या आप एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन को स्वायत्तता का संवैधानिक स्थिति का दर्जा नहीं दे सकते?
  • क्या आप एमएसपी को कानूनी गारंटी नहीं दे सकते?

पूरा मुद्दा इन तीनों बातों पर टिका हुआ है.

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