वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी
'जय किसान-जय संविधान' लेकिन दोनों पर हैं सवालिया निशान. ऐसा हमें क्यों कहना पड़ रहा है? क्योंकि आज का नजारा देखिए- पंजाब,हरियाणा और राजस्थान के किसान दिल्ली में प्रवेश करना चाहते थे लेकिन दिल्ली की एक किले के तरह घेराबंदी कर दी गई. किसानों को दिल्ली में नहीं घुसने दिया गया.
अंबाला के आगे उन्हें नहीं बढ़ने दिया गया, कई और रास्तों पर भी बैरिकेड लगा दिए गए. रोकने के लिए भारी पुलिस बल की तैनाती हुई, पानी की बौछार और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया. किसानों ने भी विरोध करते हुए बैरिकेड्स उठाकर नदी में फेंक दिए, दिल्ली की तरफ उग्र कूच था. ये काफी लंबा आंदोलन है, किसान अपनी बात दिल्ली में सरकार के सामने रखना चाहते हैं लेकिन सारे दरवाजे बंद कर दिए गए हैं और किसान दिल्ली नहीं पहुंच पाए हैं.
महामारी का बहाना, मकसद किसानों को भटकाना?
आज संविधान दिवस है. संविधान के तहत हर व्यक्ति अपने मूल अधिकारों का प्रयोग कर सकता है. ऐसे में जब पुलिस से पूछा गया कि आंदोलनकारियों को क्यों रोका जा रहा है तो जवाब मिला कि महामारी की वजह से ऐसा प्रावधान है कि इकट्ठा नहीं हुआ जा सकता, भीड़ नहीं जुटाई जा सकती. इस तर्क पर लोग पूछ रहे हैं कि जब दो दिन पहले हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला बिना मास्क के रैली कर रहे थे, तब ये कानून कहां गया था?
वहीं दूसरा दृश्य कोलकाता से आता है- जहां बीजेपी खुद ही प्रोटेस्ट कर रही है तो क्या वहां यह महामारी का कानून लागू नहीं?
तीसरा दृश्य केरल से आता है- जहां मजदूर कानूनों के खिलाफ लेफ्ट ने आज भारत बंद का ऐलान किया है.
साफ है कि तरह-तरह के प्रतिरोध आज भारत में देखने को मिले हैं लेकिन कहीं पर संविधान का हवाला है तो कहीं पर संविधान का उल्लंघन है. मल बात ये है कि आप अपना प्रतिरोध दर्ज नहीं करा सकते. किसानों की मांग पुरानी है बहुत साधारण है कि सरकार ने जो तीन कानून पास किए हैं वो वापस लिया जाए और उनकी बातों को सुना जाए.
दिल्ली आने लगे किसान तो बातचीत का ऑफर क्यों?
ये किसान आंदोलन जब दिल्ली की तरफ कूच कर गया तब कुछ कोशिशें हुईं. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से ये कहा कि,''मैं आपसे बात करना चाह रहा हूं,आप उपलब्ध नहीं हैं. किसान आंदोलन को मत भड़काइए.'' अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि कानून बिल्कुल गलत है. उधर, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ये कहा कि किसान आंदोलित ना हों, आएं बात करें. सवाल ये है कि कि किसान तो खुद बात करना चाहते थे लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई.
अब जब हरियाणा और दिल्ली की तरफ आने लग गए तो सत्ताधारी पार्टी के लिए ये आंदोलन सिरदर्द बन गया. पार्टियां ये सोचने लगूीं कि पंजाब से आंदोलित किसान यहां आ रहा है तो इसको किस तरीके से रोक दिया जाए. ये नेशनल सुर्खियां ना बन जाएं. किसान इस बात पर भी नाराज हैं कि सर्दी में उन पर पानी की बौछार की गई. इससे पहले वो खुद सरकार से बात करना चाहते थे तो बात नहीं की गई.
किसानों का मुद्दा बड़ा ही साफ और साधारण है. वो ये है कि ये जो किसान कानून हैं, इससे किसी का कोई फायदा नहीं होने वाला है, इससे किसानों को सही कीमत नहीं मिलने वाली है. सरकार कहती है MSP जारी रहेगा तो उसको कानूनी तौर पर कह दीजिए.
जिस किसान ने देश को मंदी से बचाया, उसकी पूछ नहीं
सरकार की तरफ से बार-बार दोहराया जा रहा है कि किसान एमएसपी की चिंता न करें. बाकी चीजों के लिए तो कानून बन गया है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग हो सकती है, APMC को खत्म कर दिया गया, सामूहिक खेती को बढ़ावा देंगे और बहुत सारी बातें कही गईं हैं.
ध्यान देने वाली बात ये है कि कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में देश को मंदी से बचाने में किसानों का रोल है. यही किसान प्रवासी के तौर पर वापस जा रहे थे. इनकी आमदनी पूरे साल की देखें तो जिनके पास 2 हेक्टेयर की जमीन है उनकी आमदनी है एक लाख बीस हजार से कम. जिन किसानों के पास छोटी जोत है उनकी आमदनी है महीने के ₹5,000. अभी कोविड-19 में सरकार की तरफ से ₹6,000 दिए गए हैं लेकिन ये उनकी पूरी इनकम का बहुत मामूली सा हिस्सा है. ऐसे में किसानों को डर लग रहा है कि अभी जो कानून बने हैं, वो उनके खिलाफ जाने वाले हैं. औऱ सरकार किसानों को आश्वस्त नहीं कर पा रही है इसलिए ये आंदोलन दिल्ली की दहलीज पर आ चुका है. ताकत से इस आंदोलन को, इस घटनाक्रम को दबाया जा सकता है लेकिन किसानों की बात यहां रुक जाएगी ऐसा लगता नहीं है. इस पर राजनीतिक हस्तक्षेप की जरूरत है. इसको 'लॉ एंड ऑर्डर' के तरीके से हैंडल करने से बात बनती नहीं दिख रही है.
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