वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
मंदी की मार से मुकाबला करने के लिए सरकार ने पहला कदम उठाया है. डायरेक्ट टैक्स के रेट घटाने की मांग हो रही थी. लेकिन सरकार इसे घटाने को लेकर आनाकानी कर रही थी. अब जाकर सरकार बैंडएड उपायों से आगे बढ़ी.
शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया कि कॉरपोरेट टैक्स को 30% से घटाकर 22% कर दिया गया है. सेस और अन्य टैक्स को जोड़कर ये नया टैक्स 25.17% होगा.
1 अक्टूबर 2019 के बाद मैन्युफैक्चरिंग कंपनी स्थापित करने वाले कारोबारियों को 15% की दर से इनकम टैक्स देना होगा. वहीं सभी तरह के सरचार्ज और सेस लगने के बाद टैक्स की दर 17.10% हो जाएगी. अब तक नए निवेशक 25% की दर से टैक्स दे रहे थे.
सरकार ने बीते दिनों इकनॉमी को मजबूती देने के लिए कई बड़े फैसले लिए. 10 सरकारी बैंकों के विलय से 4 नए बैंक बनाए गए. केंद्र सरकार ने ज्यादा से ज्यादा एफडीआई लाने की कोशिश की. एफपीआई पर लगे सरचार्ज को वापस लेने के बावजूद फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर्स के सिग्नल अच्छे नहीं आए. कुल मिलाकर कहें, तो तमाम कोशिशों के बावजूद इकनॉमी को बूस्ट मिलता नहीं दिखा.
लेकिन ताजा ऐलान का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि पिछले साल 150 बिलियन डॉलर का जो FDI भारत आया वो कंपनियां इसका फायदा उठा सकती हैं और आने वाले दिनों में नई कंपनियां खोलकर 17% के रेट का फायदा भी उठाया जा सकता है. ये रेट सिंगापुर के बराबर हो गया है और 25% वाला ब्रैकेट चीन के बराबर हो गया है.
अमेरिका-चीन के ट्रेड वॉर के बीच ग्लोबल सप्लाई चेन से जुड़ने की तरफ भारत ने बड़ा और पहला कदम उठाया है. संयोग है कि पीएम के अमेरिका यात्रा से पहले ये कदम उठाया गया. प्रधानमंत्री अमेरिका में निवेशकों को कहने वाले हैं कि वो भारत में आकर निवेश करें. ये टैक्स बूस्टर डोज है.
घरेलू निवेशकों की बात करें तो वो पैसों का इस्तेमाल कैसे करेंगे इसका अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता है. हो सकता है वो पैसों को रि-इन्वेस्ट करें. डेट को चुकाने की कोशिश करें. डिविडेंड के तौर पर शेयरहोल्डर्स को पैसा दें.
फिलहाल इन ऐलानों का नतीजा शेयर बाजार में उछाल के तौर पर दिखा. ये बाजार का सेंटिमेंट ठीक करता दिख रहा है. RBI से मिले पैसे का सरकार सही इस्तेमाल करना चाह रही है. अगले बजट से इंडिविजुअल टैक्सपेयर को राहत मिलने की उम्मीद भी जगी है.
हालांकि, बैंकों की माली हालत अब भी खराब है. फिस्कल डेफिसीट को लेकर चिंता जताई जा रही है. लेकिन अभी घाटा संभालने से जरूरी इकनॉमी की ग्रोथ है.
विनिवेश, लैंड, लेबर रिफॉर्म भी जरूरी है, जिस पर सबकी नजर है. 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर इकनॉमी के लिए फिलहाल आशा जगी है लेकिन काफी काम बाकी है.
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