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ब्रेकिंग VIEWS | BJP की अपनी प्रयोगशाला कैराना में हार के मायने

उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है

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4 लोकसभा सीटों और 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव बीजेपी के लिए खतरे की जोरदार घंटी हैं. और इसे सुना जाना जरूरी है. क्योंकि, विपक्ष एकजुट होकर बिल्ली के गले में घंटी बांधने को तैयार दिख रहा है. मोदी सरकार के चौथे जन्मदिन पर जब बीजेपी संगीत में झूम रही थी, तब ये घंटी शुभ नहीं है. ब्रेकिंग VIEWS में क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया बता रहे हैं कि किस तरह बीजेपी को वोटर के संकेत समझने की जरूरत है.

उपचुनाव अगर सैंपल सर्वे तो बीजेपी के लिए फिक्र की बात

4 लोकसभा सीट और 11 विधानसभा सीटों के उपचुनाव, पैमाने के हिसाब से कोई छोटेमोटे उपचुनाव नहीं हैं. जाहिर है इनके नतीजे भी गंभीर विश्लेषण की मांग करते हैं. संजय पुगलिया के मुताबिक अगर इन नतीजों को सैंपल सर्वे मान लिया जाए तो बीजेपी को फिक्रमंद हो जाना चाहिए. एकाध सीट छोड़कर हर जगह से उसके लिए नेगेटिव खबरें आईं.

बीजेपी अपनी ध्रुवीकरण की 'प्रयोगशाला' कैराना में ही हार गई

इन उपचुनावों में बीजेपी के लिए सबसे बुरी खबर कैराना से आई. कैराना, पार्टी के लिए ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला की तरह रही है. 2013 से कैराना तमाम ऐसी खबरों के केंद्र में रहा जहां हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव हावी रहा.

बीजेपी के हुकुम सिंह यहां से 3 लाख वोट से जीते थे लेकिन उनकी बेटी मृगांका सिंह करीब 50 हजार वोटों से हार गई. आरएलडी, एसपी, बीएसपी की साझा उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने जोरदार जीत दर्ज की.

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वोटर के मूड को समझने की जरूरत

क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया के मुताबिक बीजेपी को वोटर के मूड की अनदेखी नहीं करनी चाहिए जो लगातार बिगड़ता दिख रहा है,

बीजेपी जो नैरेटिव बेचने की कोशिश कर रही है, वो बिक जाए ये जरूरी नहीं. वोटर अपने सवाल उठा रहा है, अपने मुद्दे उठा रहा है. जिन्ना और ‘गाय पॉलिटिक्स’ काम नहीं आई. 

चुनावी समर में सबकी नजर महाराष्ट्र पर

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं. 2019 में ये काफी अहम राज्य हो जाता है. यही वजह है कि अभी पालघर और भंडारा-गोंदिया के नतीजों को भी समझना होगा.

पालघर में बीजेपी को जो जीत मिली है वो उस उम्मीदवार के सहारे मिली है जो कांग्रेस छोड़कर, बीजेपी में शामिल हो गया. कांग्रेस-एनसीपी ने शायद इसलिए भी जोर नहीं लगाया कि शिवसेना अगर हराने की स्थिति में हो तो बेहतर होगा कि आगे जाकर दोनों में गठजोड़ न हो पाए.

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नेता, जनता, मीडिया में कौन आगे, कौन पीछे?

उपचुनाव के इन नतीजों में बीजेपी के लिए जनता का संदेश साफ है. बार-बार एक सवाल खड़ा किया जाता है कि ‘खिचड़ी और बेईमान विपक्ष एकजुट हो भी जाता है तो उसके सामने बीजेपी का बड़ा चेहरा भारी पड़ेगा.’ लेकिन आज के चुनावी नतीजों में ये दिखता है कि ‘पीएम मोदी के सामने कौन का सवाल’ बेमानी हो गया है. शायद जनता जब नाखुश होती है तो ये सब नहीं देखती. अब जो बड़ी बात पता लगाने की है वो ये कि बीजेपी से जनता का मोहभंग हुआ है या नाराजगी है.

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