कैमरापर्सन: सुमित बडोला
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप
टेलीकॉम कंपनियां इस समय आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) बकाया के भुगतान मामले में 2500 करोड़ रुपये चुकाने का वोडाफोन आईडिया का प्रस्ताव ठुकरा दिया. कंपनी ने कहा कि वो शुक्रवार तक और 1,000 करोड़ रुपये जमा कर देगी. लेकिन, अदालत ने इस प्रस्ताव को नहीं माना.
सरकार ने एजीआर का अजीब फॉर्मूला बनाया है. किसी के पास टेलीकॉम लाइसेंस है तो उसे दूसरे कारोबार से जो कमाई हुई, उसे भी स्पेक्ट्रम चार्ज और लाइसेंस फी में जोड़ा गया और बड़ा बिल थमा दिया गया. लंबी कानूनी लड़ाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो कानून है उसके मुताबिक, बकाया के साथ पेनल्टी और ब्याज चुकाना होगा. टेलीकॉम कंपनियों की अपील नहीं सुनी गई. समय मांगा वो भी नहीं मिला.
सुप्रीम कोर्ट ने जब एजीआर मामले में ऑर्डर दिया तो कंपनियों ने कोर्ट से राहत मांगी और सरकार से भी. लेकिन सरकार चुप रही. जबकि उसे करना ये चाहिए था कि वो कानून बदल देती. रास्ता निकालती, सुप्रीम कोर्ट के पास जाती. कंपनियों को समय देने के लिए कहती.लेकिन सरकारें रेवेन्यू की भूखी होती हैं. उसने ऐसा कुछ नहीं किया.
एजीआर के कायदों के तहत सरकारी कंपनी गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया को 1.72 लाख करोड़, ऑयल इंडिया को 48 हजार करोड़ और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन को 22 हजार करोड़ रुपये देने होंगे. सिर्फ इसलिए क्योंकि इनके पास भी टेलीकॉम लाइसेंस है, जिस से कोई कमाई तो नहीं हुई, लेकिन फॉर्मूला तो फॉर्मूला है.
याद कीजिए 2G कांड. 1.76 लाख करोड़ रुपये का घपला बताया गया. सेक्टर बर्बाद हो गया. कोर्ट ने सारे लाइसेंस रद्द कर दिए और एंटी क्लाइमैक्स ये हुआ कि CBI स्पेशल कोर्ट ने कहा कोई स्कैम हुआ ही नहीं.
इसी तरह एजीआर फॉर्मूला ने कंपनियों की कमर तोड़ दी. 10 कंपनियां थीं जिनमें अब सिर्फ 4 बची हैं. MTNL-BSNL करीब करीब खत्म होने की कगार पर हैं. टैक्स पेयर के पैसे डूबे. अब वोडाफोन-आईडिया का चलना मुश्किल है. इन कंपनियों पर बैंकों के करीब 49 हजार करोड़ रुपये भी लगे हैं. उनके डूबने का रिस्क है. वोडाफोन-आईडिया में 50 हजार स्टाफ हैं, उनकी नौकरी खतरे में है. यानी सेक्टर में 2 ही प्लेयर बचेंगे - जियो और एयरटेल. यानी कंज्यूमर तैयार हो जाएं. सस्ते कॉल और डेटा का जमाना खत्म होने वाला है. डुओपॉली में दरअसल एक ही प्लेयर कंट्रोल कर सकता है. दूसरे प्लेयर को टैरिफ बढ़ाने पर मजबूर कर सकता है.
एक तरफ 5G लाने का अरमान दूसरी तरफ पूरा टेलीकॉम सेक्टर बर्बादी की कगार पर है. जो बचेंगे उनके पास इतना इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं कि वोडाफोन के कस्टमर को भी सेवा दे पाएं. इन कंपनियों के पास नए निवेश के लिए भी पूंजी की कमी रहेगी और नया निवेश किया भी तो इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में वक्त लगता है.
बिजनेस और इकनॉमी में संकट आ सकते हैं. सरकार कहती है वो रेस्पॉन्सिव है. लेकिन इस टेलीकॉम संकट में वो कहीं नजर नहीं आ रही है. ILFS,यस बैंक और जेट एयरवेज- तीन उदाहरण हैं, जब सरकार ने संकट से किनारा कर लिया. क्या सिर्फ इसलिए कि उसे डर लगता है कि कॉर्पोरेट सेक्टर की मदद करते हुए नहीं दिखना है. क्या सिर्फ इसलिए कि उसे खजाने में पैसा चाहिए. इस चुप्पी की बहुत बड़ी कीमत अंत में तो टैक्सपेयर और कंज्यूमर को ही चुकानी पड़ेगी.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम होता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हर फैसला परफेक्ट हो ये जरूरी नहीं. और सरकार जब अपनी जिम्मेदारी से भागती है तो सुप्रीम कोर्ट का ओवर ऐक्टिविज्म शुरू होता है. इस बार तो कोर्ट बहुत भावुक भी हो गया जब माननीय न्यायाधीश को कहना पड़ा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू ना हो पाए तो हम देश छोड़कर चले जाएं और अदालत बंद कर दी जाएं.
भावना से दूर कड़वी सच्चाई ये है कि आर्थिक मंदी के दौर में, निवेशकों को बड़ा नेगेटिव सिग्नल जा रहा हैं. पॉलिसी दलदल में फंस रहे हैं. डिजिटल इंडिया को पलीता लगा रहे हैं. बहुत देर हो गई है फिर भी सरकार के जागने की उम्मीद है.
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