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बुआ, बबुआ और बीजेपी- यूपी में आखिर हो क्या रहा है?  

राज्यसभा चुनाव में बहुत तिलिस्म, तिकड़म, हंगामे वाली पॉलिटिक्स होती है. ऐसे में समझते हैं कि यूपी में आखिर क्या हुआ

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(वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी)

आज के Breaking Views में यूपी की राजनीति की बात. बिहार में अभी 'एंटरटेनमेंट' चल ही रहा था कि यूपी में बुआ, बबुआ और बीजेपी ने मिलकर तमाशा खड़ा कर दिया है. दरअसल, 9 नवंबर को राज्यसभा के चुनाव होने हैं. चुनाव के ठीक पहले बीएसपी के 7 एमएलए बगावत करके बाहर आ गए हैं. इन विधायकों में से 5 का कहना है कि उनके नाम पर बीएसपी के जिस कैंडिडेट का पर्चा भरा गया, उसमें जो दस्तखत किए गए हैं वो फर्जी हैं.

मायावती को इस बात पर गुस्सा आया और उन्होंने 7 एमएमएल सस्पेंड कर दिए हैं. साथ ही विधानसभा अध्यक्ष से इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की है. एक तरह से देखा जाए तो राज्यसभा चुनाव पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज का बड़ा भारी ट्रेड है, जिसपर हम लोग कम ध्यान देते हैं. इन चुनावों में बहुत तिलिस्म, तिकड़म, हंगामे वाली पॉलिटिक्स होती है. ऐसे में समझते हैं कि यूपी में आखिर क्या हुआ है.

अखिलेश Vs मायावती

यूपी में 9 नवंबर को जो चुनाव होना है उसमें 10 राज्यसभा सदस्य जीतकर आएंगे. 8 सदस्य बीजेपी के साफ-साफ हैं. 9वें आदमी के लिए बीजेपी के पास 18 वोट हैं लेकिन बीजेपी ने अपना कैंडिडेट खड़ा नहीं किया है. उधर, अखिलेश यादव का एक कैंडिडेट जीत रहा ह. दूसरे के लिए वो कोशिश कर सकते थे लेकिन अखिलेश ने अचानक प्रकाश बजाज जो पेशे से वकील है, बिजनेस फैमिली से आते हैं. उनको खड़ा कर दिया है.

गुरुवार को मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि उनकी पार्टी तो चाह रही थी आपस में तय कर लिया जाए कि कैंडिडेट्स को कौन सपोर्ट करेगा वहीं समाजवादी पार्टी के लोगों का कहना है कि वो बीजेपी और मायावती की मिलीभगत को एक्सपोज करना चाहते थे. अब मायावती ने खुद कह दिया है कि वो बदला लेंगी और अखिलेश यादव ने जो किया है उसका हिसाब जनवरी में होने जा रहे एमएलसी चुनाव में करेंगी. मायावती का कहना है कि भले ही बीजेपी को सपोर्ट करना पड़े लेकिन एसपी कैंडिडेट को उनकी पार्टी हराएगी.

समीकरण क्या कहते हैं?

जाहिर है कि अभी तो सबका ध्यान बिहार पर है कि वहां से क्या बड़ा राजनीतिक मैसेज आएगा. लेकिन उसके बाद पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल का भी नंबर है. यूपी का चुनाव मार्च 2022 तक होना है. इसलिए ऐसा लगता था कि बंगाल के चुनाव के बाद यूपी पर फोकस बढ़ता लेकिन अब ऐसा लगता है कि सभी विपक्षी पार्टियां तैयारी में जुटी हुई हैं. योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार बहुत मजबूत स्थिति में हैं. हालांकि, जिस तरह की कानून-व्यवस्था और विवाद सुर्खियों में हैं, उसमें विपक्ष के लिए स्पेस जरूर है. विपक्ष की ये हालत है कि एसपी-बीएसपी, एसपी-कांग्रेस का गठजोड़ पहले ही फ्लॉप हो चुका है, इसलिए हो सकता है समाजवादी पार्टी इस बार किसी के साथ गठबंधन न करे. मायावती. बीजेपी के साथ है कि नहीं हैं, इसमें कंफ्यूजन हो रहा है.

मुसलमानों में कंफ्यूजन होगा, मुस्लिम समुदाय का वोट एसपी के पास जा सकता है, कुछ बैकवर्ड कास्ट वोटर बेस जैसे यादव उनके पास हैं ही. बीजेपी की नजर है कि जो डॉमिनेंट कास्ट हैं, उन्हें छोड़कर दूसरे पिछड़ों और दलितों में बेस बनाया जाए. यूपी बीजेपी ने इसपर खास काम हुआ है. लोग उनके साथ आए भी हुए हैं, बिहार जैसा यूपी नहीं है यहां पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी अलग ढंग से चलता है. ऐसे में मायावती और अखिलेश दोनों अगर लड़ाई में लगे रहते हैं तो त्रिकोणीय चुनाव में क्या होगा?

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त्रिकोणीय चुनाव में क्या होगा?

एक्सपर्ट कहते हैं कि सीधी लड़ाई में भी बीजेपी जीतकर आ गई, ये आप कह सकते हैं 'मोदी मैजिक' था. लेकिन त्रिकोणीय में अगर ये कह रहे हैं कि बीजेपी को ही फायदा होगा, ये जरूरी नहीं है. क्योंकि यूपी में जिस तरह से सबका अपना अलग-अलग जनाधार है, उसमें ऐसा हो सकता है कि इस बार एसपी-बीएसपी को ये लगे कि बिना गठबंधन की ही राजनीति सही है. लेकिन जिस तरीके से समाजवादी पार्टी यूपी में सक्रिय है और बीजेपी पर सीधा हमला करती है, बीएसपी की जुबान में थोड़ा बदलाव है.

बीएसपी के खासकर मायावती के ट्वीट अगर आप देखेंगे तो पता चलेगा कि उसमें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी हमला ज्यादा होता है बीजेपी पर कम हमला होता है. बीजेपी से मांग होती है बीएसपी की, जैसे हाथरस जैसी कोई घटना हो जाए तो मायावती बीजेपी से अपनी मांगें भर रख देती हैं लेकिन बीजेपी के केंद्रीय या राज्य स्तरीय नेताओं पर मायावती कोई खास और तगड़ा हमला करती नहीं दिखती हैं.

इसलिए अखिलेश की नजर इस बात पर है कि बीजेपी की तरफ मायावती की पार्टी का झुकाव देखते हुए जो लोग विपक्ष की तरफ सहानुभूति रखते हैं, उनका वोट एकतरफा आ सकता है. जाहिर है कि अभी चुनाव दूर है लेकिन राज्यसभा के चुनाव ने वो ट्रिगर दे दिया है जिससे आगे की तस्वीर बदल सकती है.

एंटी डिफेक्शन लॉ- बड़ी चुनौती

बीएसपी की नियति देखिए, उसकी नियति में टूटना ही है, चाहे राजस्थान हो या मध्य प्रदेश हो, एक न एक जगह लोग टूटते हैं ये सिलसिला माननीय कांशीराम के समय से चला आ रहा है. मायावती इसका इलाज नहीं ढूंढ सकी हैं कि जिन लोगों को वो चुनती हैं, बड़ा मौका देती हैं वो आखिर ऐसा क्यों करते हैं. एंटी-डिफेक्शन लॉ, एक बड़ा विवाद का विषय हो गया है. अलग-अलग पार्टियां भी इसके लूप होल का इस्तेमाल करती हैं. विवादित होने के बावजूद पार्टियों में या न्यायपालिका के बीच में इस पर कोई चर्चा नहीं है. ये हमारी डेमोक्रेसी का जरूर एक माइनस प्वाइंट बन गया है, जो उसका तोड़ता-मरोड़ता है. शायद किसी वक्त सबकी आंखें खुले और इस पर भी चर्चा करें. लेकिन फिलहाल बिहार के बाद फिर यूपी पर लौटेंगे लेकिन अभी 10 नवंबर तक बिहार पर फोकस रखते हैं.

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