वीडियो एडिटर- कनिष्क दांगी
जो बाइडन का दौर भारत के लिए कैसा रहेगा? बाइडेन को फिलहाल अमेरिका की ग्लोबल हैसियत बढ़ानी है, ट्रंप का नुमाइशी वाला राष्ट्रवाद अब नहीं चलेगा. मतलब साफ है कि भारत को इसका फायदा होगा लेकिन यहां भी शर्तें हैं. ऐसे में आज ब्रेकिंग व्यूज में चर्चा करे हैं जो अमेरिका में बाइडेन-हैरिस की जोड़ी आने से भारत के रिश्तों पर कैसा असर पड़ेगा. खासकर ट्रेड और इंवेस्टमेंट के लिहाज से. साथ ही चर्चा ये भी करेंगे कि चीन के संदर्भ में भारत और अमेरिका में किस प्रकार का सहयोग बढ़ेगा. शेयर बाजार की भी बात होगी जहां पर अमेरिकी नीतियों का क्या असर होगा?
भारत के साथ अच्छे रहे हैं संबंध
पहली बात ये समझने की है कि डेमोक्रेट्स हों या रिपब्लिक, दोनों का भारत के साथ अच्छा संबंध रहा है. बुश, ओबामा, क्लिंटन या ट्रंप चारों कार्यकाल में रिश्तों में गहराई और ऊंचाई आी है. लेकिन आगे भारत के साथ अमेरिका का रिश्ता इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन के बारे में बाइडेन क्या पॉलिसी बनाते हैं.
बाइडेन के कार्यकाल में ट्रंप का ‘सनकी’ राष्ट्रवाद नहीं चलेगा, जिस तरह का सनकी ट्रेड वॉर ट्रंप ने चलाया था उस बंद करते हुए ये कहना होगा कि ‘रूल बेस्ड ट्रेड’ को चीन फॉलो करे, अगर वो इसे नहीं मानता है कि तो उसकी क्या कीमत चुकाता है, इन सब चीजों पर बाइडेन का फोकस रहने वाला है.
भारत को बनना होगा बराबरी का साझेदार
भारत की स्थिति की बात करें तो ये अब बड़ा देश है यानी वो अब अमेरिका का सहयोगी नहीं हो सकता. लेकिन अगर बाइडेन ग्लोबलिज्म की बात करेंगे तो भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद में स्थायी मेंबरशिप हासिल करने में मदद मिलेगी. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पहले ही सहयोग बहुत गहरा हुआ है, वो आगे ही बढेगा. अब पाकिस्तान इतना बड़ा 'सिरदर्द' नहीं रहा लेकिन जिस प्रकार से ट्रंप ने एक प्रकार से चीन, रूस, ईरान, तुर्की जैसे देशों के साथ अपनी जुगलबंदी बढ़ाई थी, इसके खिलाफ बाइडेन 'डेमोक्रेटिक वर्ल्ड' के साथ ज्यादा रिश्ते बनाएंगे. हो सकता है कि एक नया को-ऑपरेशन फ्रेमवर्क बनाने की कोशिश बाइडेन करें, भारत को इसमें बराबरी के साझेदार की तरह बनना होगा.
मतलब ये है कि भारत को भी ये देखना होगा कि उसके फायदे में अमेरिका क्या-क्या कर सकता है. क्योंकि आखिर में सभी देश अपने-अपने हितों के लिए काम करते हैं, डिप्लोमेसी भी बस इसी से चलती है.
ट्रेड पॉलिसी में ट्रंप ने अजीबोगरीब काम किए हैं. ट्रंप ने 'जनरल सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेस' जिसे जीएसपी कहते हैं. ऐसी चीजों में ट्रंप की पॉलिसी में इंपल्स बहुत ज्यादा था. वो हार्ले डेविडसन जैसी चीजों को बड़ा मुद्दा बना देते थे जबकि भारत 100 मोटरसाइकिल भी उस वक्त नहीं आयात करता था. इसलिए बाइडन की कोशिश होगी कि किस तरह से सब देशों की समृद्धि हो, जिससे अमेरिका की इकनॉमी सही से चले. ये भी है कि बड़ा फोकस अमेरिका का होगा कि चीन के साथ ट्रेड कम हो और दुनिया के साथ बड़े. टेक्नोलॉजी दूसरा सेक्टर होगा जहां पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप मिलकर एक ग्लोबल को-ऑपरेशन देख रहे होंगे, क्योंकि टेक्नोलॉजी को लेकर चीन ने बहुत बड़ी दीवार खड़ी की है.
कैसे-कैसे बदलाव हो सकते हैं?
बाइडेन की नीति में ये होने वाला है कि शायद अमेरिका में कुछ टैक्स बढ़ जाए लेकिन वो इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खर्च बढ़ाएंगे ताकि अमेरिका का ग्रोथ हो. इसका मतलब ये होगा कि डॉलर कमजोर होगा यानी कि इमर्जिंग मार्केट्स में खास करके अमेरिका से बहुत ज्यादा इनफ्लो आ सकता है, जिससे भारत के शेयर मार्केट को फायदा हो सकता है.
FDI में भी बहुत गुंजाइश है, डिफेंस, आईटी, फार्मा जैसे सेक्टर में हमारा रिलेशन बहुत अच्छा है, इसमें गुंजाइश बढ़े इसलिए भारत को अपना घर ठीक करना होगा. 'इज ऑफ डूइंग बिजनेस' सिर्फ कहने के लिए है. पूरी तरह से अभी नहीं है तो अमेरिकी कंपनियों को भारत लाना आसान काम नहीं है. पहले के अनुभव खट्टे रहे हैं लेकिन डिफेंस एक बड़ा एरिया होगा जहां दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ सकता है.
आखिरी बात ये है कि मानवाधिकार, लोकतंत्र, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा ये जो मुद्दे हैं वो डेमोक्रेट्स के बहुत पसंदीदा हैं. अमेरिका की जो घरेलू स्थितियां हैं उनमें भी इसपर काफी काम होने जा रहा है. यानी कि पूरी दुनिया के जो लोकतांत्रिक देश हैं उनको नए ढंग से देखना होगा कि ट्रंप वाला तरीका नहीं चल सकता. अमेरिका पहले की तरह से दुनिया की ‘दरोगागीरी’ भी नहीं करेगा लेकिन उसको ग्लोबल लीडरशिप चाहिए.
इसके लिए एक सौम्य नीति का प्रदर्शन देखेंगे. 'फॉरेन पॉलिसी प्रेसिडेंट' के रूप में बाइडेन जाने जाएंगे क्योंकि फॉरेन पॉलिसी पर उनकी मजबूत पकड़ है. बाइडेन ने कह भी दिया है कि पहले साल में एक बड़ा आयोजन होने वाला है वो है डेमोक्रेटिक वर्ल्ड का एक ग्लोबल समिट, जाहिर है कि जब ये ग्लोबल समिट होगा तो उसके इर्द-गिर्द उन सारे मुद्दों पर बात होगी, जिस पर ट्रंप अनदेखी कर देते थे. भारत में कुछ इन विषयों पर विवाद होता रहा है. इन विषयों पर भारत ने अपनी पोजीशन को डाइल्यूट किया है. ऐसा भी नहीं है कि बाइडेन के साथ तलवारें तनेंगी लेकिन अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का सवाल और मानव अधिकार की रक्षा का सवाल जहां तक है उसपर भारत को सलाह मिलेगी.
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