ADVERTISEMENTREMOVE AD

अखिलेश से ब्रेकअप के बाद क्या है मायावती का गेमप्लान | VIDEO

बीएसपी प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी से किया ब्रेकअप

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा’’

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव आजकल अकेले में बैठकर बशीर बद्र साहब का ये शेर गुनगुनाते होंगे. यहां संदर्भ इश्क-मोहब्बत का नहीं, खालिस सियासत का है. वो सियासत जहां मौकापरस्ती का कबूतर दाना देखकर किसी पराई छत पर भी उतर जाए और दाना ना मिले तो अपनी भी छत को अलविदा कह दे.

BSP-SP का ब्रेक-अप

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी से सारे रिश्ते खत्म करने का ऐलान कर दिया है. आने वाले तमाम छोटे-बड़े चुनाव बीएसपी अकेले लड़ेगी. ये भारत की राजनीति का सबसे हैरतअंगेज गठबंधन और सबसे तेजी से हुआ ब्रेकअप होगा.

इसका मतलब ये कि जाटव, यादव, दलित, अति दलित, पिछड़े, मुस्लिम, जाट, ब्राह्मण, राजपूत और दर्जनों जात-बिरादरियों में फैला उत्तर प्रदेश फिर से पॉलिटिक्स के उसी चौराहे पर आकर खड़ा हो जाएगा, जहां लड़ाई दोतरफा या तितरफा नहीं, बल्कि कई तरफा हो जाती है.

12 जनवरी 2019 को लखनऊ की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक ही मंच पर बैठे मायावती और अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि वो 2019 का लोकसभा ही नहीं, 2022 का यूपी विधानसभा का चुनाव भी साथ-साथ लड़ेंगे. अजित सिंह का आरएलडी भी गठबंधन में शामिल था. ये जाटव, यादव, जाट और मुस्लिम वोट बेस का वो मजबूत गठजोड़ था, जो बीजेपी से सीधे पंजा लड़ता नजर आ रहा था.

मैनपुरी में मुलायम के मंच पर मायावती

19 अप्रैल, 2019 को तो कमाल ही हो गया. मैनपुरी में मुलायम के मंच पर मायावती नजर आईं. मुलायम तालियां बजा रहे थे. अखिलेश इतरा रहे थे, कार्यकर्ता चिल्ला रहे थे और माया मुलायम सिंह को जिताने की अपील कर रही थीं.

2 जून 1995 के लखनऊ गेस्ट हाउस की खौफनाक यादों को जानने वालों के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं था. लेकिन ‘देशहित’ के लिए माया ने सब भुला दिया. लेकिन फिर आया 23 मई, 2019 का दिन. लोकसभा चुनाव का गेमचेंजर बताया जा रहा बुआ-भतीजे का गठबंधन मोदी-लहर में तिनके की तरह बह गया.

बीजेपी की 62 सीट के मुकाबले बीएसपी को 10 सीट मिली. सपा को महज 5 सीट मिली. 2014 के मुकाबले बीजेपी की 9 सीट घटीं लेकिन वोट शेयर 42.63% से बढ़कर 49.6% पहुंच गया.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

1993 का जादू 2019 में गायब

समाजवादी पार्टी और बीएसपी 1993 में चले ‘मिले मुलायम-कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ के नारे का ‘2019 वर्जन’ निकालने में नाकाम रही.

3 जून, 2019 को मायावती ने ऐलान कर दिया कि बीएसपी यूपी में होने वाले 11 उपचुनाव अकेले लड़ेगी. हालांकि उन्होंने साफ कहा कि-

विधानसभा चुनाव में यादव समाज यादव बाहुल्य सीटों पर भी समाजवादी पार्टी के साथ टिक कर खड़ा नहीं रह सका. इसलिए राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर हमें अकेले लड़ने का फैसला लेना पड़ रहा है, लेकिन हमारा कोई ब्रेकअप नहीं हुआ है.
मायावती, बीएसपी सुप्रीमो 

राजनीतिक पंडितों को लगा कि मायावती दरवाजे भले बंद कर रही हों लेकिन एक खिड़की खुली छोड़ दे रही हैं, ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर उसे हाथ मिलाने का जरिया बनाया जा सके. लेकिन 24 जून को मायावती ने वो खिड़की भी बंद कर दी.

इतनी कड़वाहट के साथ खत्म हुए इस रिश्ते के अब दोबारा जुड़ने के आसार नजर नहीं आते. लखनऊ के सियासी गलियारों में कथा जोर गरम है कि मायावती दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण के अपने पुराने फॉर्मूला की तरफ लौटेंगी जिसके बूते उन्होंने 2007 में यूपी में सरकार बनाई थी.

सूबे में तकरीबन 21% दलित, 19% मुस्लिम और 11% ब्राह्मण हैं

लंदन से एमबीए कर लौटे भतीजे आकाश को उत्तराधिकारी बनाकर मायावती यूपी के युवाओं में सेंध लगाना चाहती हैं.

लेकिन 2019 के नतीजे साफ कहते हैं कि बीजेपी एसपी के गैर यादव और बीएसपी के गैर जाटव वोट बैंक में सेंध लगा चुकी है. वोटर तक पहुंचने की बीजेपी की महामशीनरी ने चुनाव के परंपरागत तरीकों को ढेर कर दिया है. ऐसे में पुराने नुस्खों की जमीन पर बीएसपी का हाथी शान से चाल चल पाएगा, फिलहाल तो ऐसा मुश्किल लगता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×