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बजट में ये जो फिस्कल डेफिसिट है न, इसे 330 सेकेंड में समझ लो 

सरकार कर्ज लेगी तो बड़ा आसान है ये समझना कि आपके ऊपर क्या असर पड़ेगा

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((बजट 2020 से पहले सरकार का बजट अच्छी तरह से और आसान भाषा में इस वीडियो से समझ सकते हैं, ये वीडियो 2018 में पहली बार पब्लिश हुआ था. ))

बजट बोलते ही लोगों के मन में आता है कि बजट बड़े कारोबारियों या सरकार के लिए होता है हमें क्या करना? लेकिन नहीं जनाब बजट की हर बात का असर हम सबके ऊपर पड़ता है. सबसे ज्यादा चर्चा होती है फिस्कल डेफिसिट या वित्तीय घाटे की, ये आंकड़ा आपको जरूर जानना चाहिए क्योंकि इसका सीधा कनेक्शन आपकी जेब से है.

क्विंट आपको बेहद आसान तरीके से समझा रहा है क्या होता है फिस्कल डेफिसिट यानी वित्तीय घाटा.

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घर की तरह सरकार का बजट

जैसे आप अपने घर का बजट बनाते हैं ठीक वैसे ही सरकार देश का बजट बनाती है. कमाई के हिसाब से खर्च. लेकिन जैसे गाड़ी या घर खरीदने के लिए कई बार आपको बैंक से लोन लेना पड़ता है.

सरकार का भी यही हिसाब है. टैक्सों से उसकी कमाई होती है पर जब खर्च बढ़ जाता है तो उसे भी लोन लेना पड़ता है. आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया होने पर जैसे आपका बजट बिगड़ता है वैसे ही सरकार का भी बिगड़ता है.

मतलब बजट का फॉर्मूला वही है, इसे ऐसे समझिये कि अगर आप अपने बजट में रकम के आगे दस-बारह जीरो जोड़ दें तो वो देश का बजट बन जाएगा. तो आइए समझते हैं बजट और फिस्कल डेफिसिट.

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सरकार की कमाई

डायरेक्ट टैक्स

सरकार की कमाई के कई तरीके होते हैं. इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, वेल्थ टैक्स. इन सभी टैक्स को डायरेक्ट टैक्स कहा जाता है. जो सीधे हम और आप सरकार के खजाने में जमा कराते हैं. 2017-18 में मोटा मोटी ये रकम है करीब-करीब 10 लाख करोड़ रुपया.

इनडायरेक्ट टैक्स

सरकार की कमाई का एक दूसरा हिस्सा है इनडायरेक्ट टैक्स. मतलब साबुन, तेल, कपड़ा या सर्विस पर लगने वाला टैक्स. अब ये जीएसटी हो गया है. ये रकम भी करीब साढ़े नौ लाख करोड़ रुपया होती है.

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खर्चों का हिसाब-किताब

कमाई के बाद खर्चों का हिसाब करने निकलेंगे तो भी ज्यादा फर्क नहीं है, बस स्केल बहुत बड़ा होता है सरकार का. घर चलाने के लिए राशन, घर, बच्चों की स्कूल फीस, परिवार की दवा-दारू, अस्पताल या मॉल वगैरह जाने के लिए खर्च होता है.

सरकार पूरे देश में शिक्षा, हेल्थ, खेती, रिसर्च एंड डेवलेपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर....... वगैरह पर खर्च करती है. ये खर्च होता है करीब 7 लाख करोड़ रुपया. इसी तरह रक्षा पर करीब 3 लाख करोड़ रुपए का खर्च होता है.

पुरानी कहावत है- जितनी लंबी चादर हो उतने पैर पसारिए. लेकिन जब हम नहीं कर पाते तो सरकार कहां से करेगी. वो भी बैंकों से लोन लेती है और ब्याज चुकाती है. और ब्याज की ये रकम है- 5 लाख करोड़ रुपए.

ये सब मिलाकर कुल खर्चा हो गया- 7+3+4+3+5= करीब 22 लाख करोड़ रुपया.

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सरकार के ज्यादा कर्ज का असर हम पर

अब चक्कर यही है कि खर्चा सरकार का बढ़ता है तो दिक्कत आपकी-हमारी बढ़ती है. बैंकों के पास लोन देने के लिए एक फिक्स अमाउंट है. उसमें से एक बड़ा लोन अगर सरकार ने ले लिया तो हमारे और आपके लिए बैंकों के पास कम रकम बचेगी, जिससे लोन महंगा हो जाएगा.

तो हमें अगर महंगा कर्ज मिल रहा है या कर्ज मिलने में दिक्कत हो रही है तो वो इसलिए क्योंकि हर साल सरकार ज्यादा लोन ले लेती है.

फिस्कल डेफिसिट- थोड़ा भी ज्यादा मानिए

सरकार ने अनुमान लगाया था कि 2017-18 में उसका उसका खर्च 21.5 लाख करोड़ होगा जबकि कमाई 16 लाख करोड़ होगी यानी फिस्कल डेफिसिट 5.5 लाख करोड़. लेकिन बाद में सरकार के खर्च बढ़ गए और उसे लगा कि मार्च तक खर्च चलाने के लिए उसे 50 हजार करोड़ रुपए और कर्ज लेना होगा. यानी फिस्कल डेफिसिट 5.5 लाख करोड़ से 6 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा. हालांकि सरकार ने अभी कहा है कि उसे 50, 000 नहीं सिर्फ 20,000 करोड़ रुपयों की ही जरूरत होगी.

इस तरह 1 फरवरी को जब वित्तमंत्री अरुण जेटली बजट पेश करेंगे तब शायद आपको फिस्कल डेफिसिट और दूसरे आंकड़े समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

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