''चीन ने हमारे खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है लेकिन सरकार हमें बता नहीं रही है कि कितना नुकसान हुआ है और सरकार इस पर क्या करने जा रही है? अभी तक जितनी बातें सरकार की तरफ से कही गई हैं, वो सिर्फ बाते हैं, कुछ ठोस नहीं और इससे चीन को फायदा हो रहा है. हम भले ही युद्ध न छेड़ें, लेकिन चीन को तगड़ा जवाब देने की जरूरत है. भारत के लिए ये परीक्षा की घड़ी है और अगर हम अभी चूके तो यही दुनिया में हमारी हैसियत और चीन से निपटने में हमारी काबिलियत तय करेगा.''
ये राय है सामरिक मामलों के बड़े एक्सपर्ट सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में स्ट्रैटजिक स्टडीज के प्रोफेसर प्रो. ब्रह्मा चेलानी की.
प्रो. चेलानी से क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने खास बातचीत की. प्रो. चेलानी का ये इंटरव्यू एक ओवरव्यू देता है कि चीन LAC पर जो कर रहा है, वो क्या है, क्यों है और भारत के पास क्या विकल्प हैं. साथ में ये भी कि चीन के मामले में हमसे अब तक कहां चूक होती आई है और हो रही है.
लद्दाख तनाव का लॉकडाउन कनेक्शन
प्रो. चेलानी का मानना है कि चीन ने लद्दाख में जमीन हथियाने की योजना पिछले साल ही बनाई होगी. लद्दाख में भारतीय सेना हर साल मार्च-अप्रैल में अभ्यास करती है. लेकिन इस साल कोरोना के कड़े लॉकडाउन के कारण हम ऐसा नहीं कर पाए. जबकि ये वहां तैनात सैनिकों के लिए बहुत जरूरी होता है. इसकी वजह ये है कि लद्दाख के इस इलाके में मौसम बेहद कठोर है, अगर सैनिकों की ट्रेनिंग नहीं होगी तो उनकी तैयारी कमजोर पड़ती है.
दूसरी तरफ चीन इस इलाके में जनवरी से लगातार युद्धाभ्यास करता रहा. एक नहीं कई अभ्यास किए. अप्रैल में ऐसे ही एक सैन्य अभ्यास की आड़ में आगे बढ़ा चीन और हमारी जमीन पर चढ़ बैठा. ऐसा करके चीन ने भारत को जैसे नींद में चौंका दिया, जो कि नहीं होना चाहिए.
भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती?
प्रो. चेलानी की चेतावनी है कि चीन ने भारत के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि जहां कब्जा किया है वो रणनीतिक रूप से बेहद अहम इलाका है. 'अगर चीन की सेना वहां से नहीं हटती है तो हमारी सुरक्षा प्रभावित होगी. युद्ध होता है तो चीन उत्तरी लद्दाख पर कब्जा कर पाकिस्तान के साथ गलियारा बना देगा. इसलिए चीनी सैनिकों से इसे खाली करवाना बेहद जरूरी है.
'नेहरू की तरह मोदी की विदेश नीति महंगी पड़ी'
प्रो. चेलानी ने इस बात पर अफसोस जताया कि भारत में हर सरकार अपनी तरह से विदेश नीति चलाती है. जबकि चीन की दीर्घकालीक विदेश नीति होती है. चीन सरकारें बदलने के साथ विदेश नीति नहीं बदलता. भारत में हर नई सरकार विदेश नीति को नए सिरे से परिभाषित करने लगती है. वाजपेयी सरकार के समय यही हुआ, मनमोहन सरकार के समय यही हुआ. लेकिन अफसोस कि मोदी सरकार ने भी पिछली सरकारों की गलतियों से नहीं सीखा. जिस दिन मोदी ने जिनपिंग को भारत बुलाया उसी दिन चीन ने चुनार में कब्जा किया. मोदी जी ने एकतरफा चीन से दोस्ती करनी चाही.
जिस तरह से नेहरू का ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ भारत को काफी महंगा पड़ा, उसी तरह से मोदी का ‘वुहान स्पिरिट’ भारत को महंगा पड़ा. हकीकत ये है कि वुहान ‘ईवल स्पिरिट’ साबित हुआ.
क्या सिर्फ बातचीत से निकलेगा समाधान?
''जब भी हम चीन से बात करें तो ये ख्याल रखें कि चीन बेहद चालाक देश है. वो बातचीत से नहीं मानेगा. सच्चाई ये है कि चीन से सीमा विवाद पर इंदिरा गांधी के जमाने से बातचीत चल रही है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. हम चीन से लगातार बातचीत करते रहे और चीन लगातार हमारी सीमा का उल्लंघन करता रहा.
माओ ने कहा था कि चीन बातचीत सिर्फ अपनी स्थिति मजबूत करने और दुश्मन को हताश करने के लिए करता है. चीन आज भी वही कह रहा है. बातचीत उसके लिए सिर्फ टाइम पास है. चीन किसी नियम, किसी समझौते का सम्मान नहीं करता.
चीन पर भारत का रुख
"1967 में जब हमने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया तो वो सालों चुप रहा और जब से हमने उससे दोस्ती की कोशिश की तो चीन की हरकतें फिर शुरू हो गईं. जब हम 1967 में मुंहतोड़ जवाब दे सकते थे, तो अब तो हम और मजबूत हैं. लेकिन आज हम सिर्फ बात कर रहे हैं, यहां तक कि आर्थिक पाबंदियां भी हमने नहीं लगाईं. सरकार ने बयान जारी किए हैं लेकिन शब्दों से कुछ नहीं होगा, जब इतिहास लिखा जाएगा तो मोदी जी का इतिहास एक्शन के आधार पर लिखा जाएगा. कोई नहीं कह रहा कि युद्ध कीजिए, लेकिन चीन ने जो किया है वो 'एक्ट ऑफ वॉर' है. उसने न सिर्फ हमारे सैनिकों की हत्या की बल्कि उनके शवों के साथ भी बर्बरता भी की.''
देश में चीन के खिलाफ बहुत गुस्सा है लेकिन सरकार उसे दबाने की कोशिश कर रही है. चीन ने जो किया है, सरकार वो भी जनता को बताने से हिचक रही है. इससे चीन को फायदा हो रहा है, चीन को संदेश जा रहा है कि ये लोग डरे हुए हैं, अपनी जनता से छिपा रहे हैं.
क्या होगा भारत का सही जवाब?
आर्थिक दबाव- ''चीन ने भारत को डराने के लिए ये किया है. अगर भारत डर जाएगा तो चीन की जीत हो जाएगी. यही चीन की नीति है -बिना लड़े जीतना. भारत का बाजार आज भी चीन के लिए खुला हुआ है. 6 साल में चीन का ट्रेड सरप्लस दोगुने से ज्यादा हो गया है. इस वक्त ये ट्रेड सरप्लस 60 बिलियन डॉलर का है. ये भारत के रक्षा बजट के बराबर है. तो हमें इकनॉमिक कदम उठाने चाहिए. मैं चीन के सामान का बहिष्कार करने की बात नहीं कर रहा. हम उनके लिए बाजार क्यों खोल कर रखे हुए हैं?''
हम दो तरह के आयात चीन से करते हैं. जरूरी चीजों का आयात और गैर जरूरी चीजों का आयात. चीन का 60% ट्रेड सरप्लस गैर जरूरी चीजों के आयात से है. जैसे बल्ब, टीवी, मोबाइल आदि....क्या हम इसे नहीं रोक सकते? इससे तो हमारी मैन्युफैक्चरिंग भी मार खा रही है. अगर हमने चीन पर आर्थिक पाबंदियां नहीं लगाई तो आने वाले समय में चीन और आक्रमण करेगा.
कूटनीतिक दबाव- ''चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए. हॉन्गकॉन्ग,तिब्बत पर हमें बोलना चाहिए. कोरोना के कारण दुनिया में इस वक्त माहौल चीन के खिलाफ है, वो अलग थलग पड़ा हुआ है. इसका हमें फायदा उठाना चाहिए. चीन ने कई मोर्चे भी खोले हुए हैं, जैसे-हॉन्गकॉन्ग, साउथ चाइना समुद्र आदि, हमें उन्हें वहां घेरना चाहिए. चीन पर दबाव बनाने के लिए दूसरे देशों के साथ समझौते करने चाहिए, सूचनाएं साझा करनी चाहिए. ''
सबसे जरूरी सवाल है कि चीन को जवाब देने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति है क्या? युद्ध आर्मी या आर्थिक ताकत से नहीं जीते जाते. ये नेतृत्व, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संकल्प से जीते जाते हैं.
प्रो. चेलानी ने इंटरव्यू के आखिर में भारत सरकार को एक बड़ी चेतावनी दी. उन्होंने कहा- ये भारत के बहुत बड़ी परीक्षा की घड़ी है. इसमें हम पास होंगे या फेल, यही भारत का भविष्य तय करेगा. अगर भारत झुका तो चीन का दबाव और बढ़ जाएगा. और दुनिया में भी इसी से हमारी हैसियत तय होगी. जरूरी है कि भारत इस परीक्षा से मजबूत और दृढ़ निश्चय देश के रूप में निकले.
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