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बाल दिवस: बचपन की कहानी सुनाते-सुनाते, रोने लगे कैब वाले भैया 

कैसा था कैब वालों का बचपन?

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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

कैमरा: सुमित बडोला/ज़िजाह शेरवानी

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि बस अब बहुत हो गया? पैसा, टैक्स, जिम्मेदारियां- ये सब कुछ कभी-कभी बहुत तनाव दे रही हैं. ऐसे में ‘चिल्ड्रेंस डे’ जिंदगी को रिवर्स गियर में डालकर वापस बचपन में जाने का सही समय हो सकता है. इसलिए हमने भी कुछ ऐसा ही कैब ड्राइवर्स के साथ किया. उनके बचपन में फिर से जाने की कोशिश की.

लेकिन जिस बात की हम उम्मीद कर रहे थे, हमें वैसा कुछ भी नहीं मिला. हर बच्चा उतना खुशनसीब नहीं होता है.असल जिंदगी में उन्हें अपनी मासूमियत, अपना बचपन खोने को मजबूर होना पड़ता है और तब उनके पास बचती हैं सिर्फ जिम्मेदारियां.

हम बचपन में पढ़ने जाते थे. गरीबी की वजह से तीन दिनों तक खाना नहीं मिला. जिसके बाद मैं कमाने आ गया. गाड़ी चलाना सिखा. 14 साल से कमा रहा हूं, पता ही नहीं चला कि बचपना कहां गया. तीन भाई-बहन हूं, सबसे बड़ा होने की वजह से जिम्मेदारियां मेरे पर ही हैं.
ज्ञान प्रकाश, कैब ड्राइवर
जैसे बाकी बच्चे खेलते हैं वैसा कुछ नहीं था हमारे साथ. हम बहुत गरीब परिवार से थे. शुरू से ही हमारे पास कर्ज था. कर्ज चुकाते-चुकाते कब बचपन गुजर गया, हमें पता ही नहीं चला. 10 साल से मैंने काम करना शुरू कर दिया था.
मोहन, कैब ड्राइवर
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वहीं कैब ड्राइवर जीत सिंह कहते हैं कि लोग बाल श्रम के खिलाफ बोलते हैं. वो कहते हैं कि बच्चों से काम नहीं कराना चाहिए. हमें ये देखने की जरूरत है कि किन परिस्थितियों की वजह से बच्चे काम करना शुरू करते हैं. एक बच्चे को सबसे पहले क्या चाहिए? शायद उसे कुछ खाने के लिए चाहिए.

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