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'मिनी पाकिस्तान',धर्म के नाम पर कैसे बंटे दिल्ली में इलाके?

कॉन्टेस्टेड होमलैंड्स: पॉलीटिक्स ऑफ स्पेस एंड आइडेंटिटी की लेखिका नाजिमा परवीन से खास बातचीत

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मुस्लिम बहुसंख्यक इलाकों को क्यों कुछ लोग नफरत की भावना से 'मिनी पाकिस्तान' (Mini Pakistan) कहते हैं? धर्म के नाम पर कैसे दिल्ली में मुहल्ले बंटे हैं? ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढ़ती एक किताब आई है. किताब का नाम है 'कॉन्टेस्टेड होमलैंड्स: पॉलिटिक्स ऑफ स्पेस एंड आइडेंटिटी' (Contested Homelands: Politics of Space and Identity). इस किताब की लेखिका नाजिमा परवीन से क्विंट ने खात बातचीत की है.

किताब की शुरुआत में नाजिमा परवीन ने पूछा है कि क्या मुसलमान भारतीय हो सकते हैं? नाजिमा कहती हैं,

ये सवाल पिछले कई सालों से हमारे सामने है. ये प्राइम टाइम सवाल है, हर दिन टीवी चैनल पर इसपर बहस होती है. मैंने इसका जवाब जानना चाहा है कि ये सवाल इतना प्रासंगिक क्यों है? आखिर इस सवाल का इतिहास क्या है. आपको जो अधिकार मिले हैं, वो मिलने चाहिए या नहीं. मेरी किताब मुस्लिम इलाकों की एक स्टडी है. लेकिन मुस्लिम इलाकों की स्टडी करते वक्त मैं ये जानने की कोशिश करती हूं कि ये शब्द मुस्लिम इलाका का इतिहास क्या है. इसे स्वीकर करने के बदले मैंने जानना चाहा है कि मुहल्लों का सांप्रदायिक अलगाव क्यों हुआ? ये हिंदू इलाके, मुस्लिम इलाके कहां से आ गए?

इस किताब में हिंदू और मुस्लिम मुहल्लों का जिक्र है. किताब में नाजिमा परवीन बताती हैं कि आजादी से पहले ही अंग्रेजों ने धर्म के आधार पर मुहल्लों को पहचान दी. नाजिमा कहती हैं, "अंग्रेजों द्वारा धर्म के आधार पर बनाई गई कैटेगरी हमें विभाजन की तरफ ले गई. इसी के नतीजे हिंदू राष्ट्र और पाकिस्तान की मांग उठी."

मुस्लिम मुहल्लों को 'मिनी पाकिस्तान' कहने की वजह क्या है?

नाजिमा बताती हैं कि आजादी के बाद से ही मिनी पाकिस्तान शब्द चलन में आ गए. "लेकिन आपातकाल के बाद आधिकारिक दस्तावेजों में मिनी पाकिस्तान शब्द आए. मुस्लिम बहुसंख्यक इलाकों की छवि पिछड़े इलाकों की बनाई गई. जबकि मुस्लिम 'इलाके' प्रशासनिक लापरवाही का शिकार हैं ये धारणा बनाई गई कि मुसलमान प्रगतिशील विचार के खिलाफ हैं."

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