कोरोना वायरस से निपटने के लिए 21 दिनों का लॉकडाउन उन लोगों के लिए भी मुश्किल भरा साबित हो रहा है, जो अपने घरों में हैं. मगर जरा उनके बारे में सोचिए, जो इस लॉकडाउन के बीच घर से बाहर फंसे हुए हैं. ऐसे ही कुछ लोग दिल्ली में एम्स हॉस्पिटल के पास एक अंडरपास में रहने को मजबूर हैं.
इस अंडरपास का एक रास्ता एम्स मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 3 के ठीक सामने से शुरू होता है. जब मैं इस अंडरपास के अंदर गया तो वहां घुसते ही इतनी तेज बदबू आ रही थी कि मास्क लगाकर भी थोड़ी देर खड़ा होना मुश्किल लग रहा था.
मगर उसी तेज बदबू के बीच मुझे वहां कई लोग इधर-उधर अस्त-व्यस्त हालत में पड़े दिखे. जब मैंने उन लोगों से बात की तो पता चला कि इन लोगों में कई गंभीर हालात के मरीज मौजूद हैं. मसलन, किसी को कैंसर है, किसी का लीवर ट्रांसप्लांट होना है, तो किसी की हार्ट सर्जरी होनी है.
इन मरीजों में 8 महीने की बच्ची से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं. जब कोरोना वायरस के कहर के बीच देश में प्रधानमंत्री से लेकर घर के सदस्य तक सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दे रहे हैं, तब इन मरीजों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग अपनाना तो दूर, गंदगी और दमघोंटू हालात से दूरी बनाना तक मुश्किल हो रहा है.
इन मरीजों में से सबसे पहले बात करते हैं, समस्तीपुर (बिहार) से दिल्ली आए पंकज कुमार की. पंकज बताते हैं, ''मेरी 3 बार सर्जरी हो चुकी है. मेरा लीवर भी खराब हो गया है. हम 3 महीने पहले एम्स आए थे. तभी से वहां मैं भर्ती था. 23 तारीख (मार्च) को डॉक्टरों ने कहा कि एक महीने की डेट दे रहे हैं, उसके बाद आना.''
डॉक्टरों ने पंकज से यह भी कहा कि वह कोरोना वायरस से बचने के लिए एहतियात बरतें. इसके बाद 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देश में 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान कर दिया.
इस लॉकडाउन के बीच पंकज एक बदबूदार जगह पर रहने को मजबूर हैं, जहां उनके खाने तक की व्यवस्था नहीं है.
पंकज ने बताया, ‘’यहां सफाई ठीक से नहीं होती है. डॉक्टर ने चावल और कई चीज खाने के लिए मना किया है. लगभग आधा किलोमीटर दूर जाकर कैंटीन से खाना खरीदना पड़ता है.’’
पंकज की देखभाल के लिए फिलहाल उनकी मां बिंदू उनके साथ मौजूद हैं.
कांपती हुई 8 महीने की बच्ची
जितेंद्र चौधरी पिछले महीने गढवा (झारखंड) से अपनी 8 महीने की बच्ची सोनम को लेकर एम्स आए थे. उन्होंने बताया कि रांची में डॉक्टर कुछ साफ-साफ बता नहीं रहे थे.
जितेंद्र ने बताया, ‘’बच्ची हमेशा कांपती रहती है. (इससे पहले) मैं जनवरी में (दिल्ली) आया था, तब मुझे इसके हार्ट के चेकअप के लिए 25 मार्च की डेट मिली थी, लेकिन बंद होने की वजह से चेकअप नहीं हो पाया.’’
जितेंद्र के साथ उनकी पत्नी और सास भी हैं.
'दवा-पैसा खत्म, गाड़ी बंद, गांव भी कैसे लौटें'
बिहार की रहने वाली जया देवी अपने 10 साल के बेटे अभिषेक को लेकर दिल्ली आई थीं. उन्होंने बताया, ''हम एक महीने पहले दिल्ली आए थे. डॉक्टर ने कहा कि सब जांच हो गई हैं, अब ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर से मिलो. लेकिन हॉस्पिटल ही बंद हो गया.'' फिलहाल जया के साथ उनके पति भी मौजूद हैं.
उन्होंने कहा,
‘’यहां बहुत दिक्कत हो रही है. दवाइयां खत्म हो चुकी हैं, कहां से दवाई लाऊं? या गांव कैसे जाऊं? गाड़ी भी बंद हैं. पैसा भी खत्म हो गया है.’’जया, अभिषेक की मां
दो बच्चों को लेकर अंडरपास में रहने को मजबूर माता-पिता
3 साल की अनुष्का को ट्यूमर है. उत्तर प्रदेश के निवासी अनुष्का के पिता मोरध्वज ने बताया, ''23 मार्च को (अनुष्का को) एक कीमो लगा था. एक 28 को. अब 13 अप्रैल को लगना है.''
मोरध्वज का कहना है कि लॉकडाउन ना होता तो भी वह दिल्ली में ही रुकने वाले थे. मगर कोरोना वायरस के खतरे के बीच वह दो बच्चों (जिनमें से एक बीमार है) और अपनी पत्नी के साथ एक गंदगी और भीड़भाड़ वाली जगह पर रहने को मजबूर हैं, बाहर कहीं खाना बंटता है, उसी से गुजारा कर रहे हैं.
पत्नी के साथ बिहार से अपना इलाज कराने दिल्ली आए रामचरित्र शाह लॉकडाउन की वजह से अंडरपास में रहने को मजबूर हैं. उनका कहना है कि उन्हें 6 अप्रैल को वापस लौटना था, लेकिन फिलहाल वह यहीं रहने को मजबूर हैं.
अंडरपास के पास ही शेल्टर होम भी मौजूद, मगर इन मरीजों को नहीं मिली जगह
अंडरपास के पास ही शेल्टर होम भी मौजूद हैं. जब एक शेल्टर होम के केयर टेकर से पूछा गया कि इतने गंभीर मरीजों को यहां जगह क्यों नहीं मिली तो उसने कहा, ''इतनी जगह में हम 40 से ज्यादा लोगों को नहीं रख सकते.'' इसके अलावा उसने कहा, '' इतने लोग रखने पर भी मीडिया वाले पूछते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन क्यों नहीं हो रहा, अब इतनी जगह में इतने लोगों को रखकर सोशल डिस्टेंसिंग कैसे अपनाएं.''
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