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कोरोना वायरस तेजी पकड़ रहा, टेस्ट करने में हम रेंग रहे

क्या कम टेस्ट कर के भारत कोरोना से जंग जीत जाएगा?

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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा

कोरोना वायरस अब भारत में अपने पांव पसारता जा रहा है. लेकिन शायद हम उसके बढ़ते कदम से अब तक मुंह फेरे हुए थे. 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में 10 अप्रैल 2020 तक डेढ़ लाख लोगों का भी टेस्ट नहीं किया गया. उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य 10 हजार लोगों का भी टेस्ट नहीं कर सके. इस महामारी का पहला केस भारत में आए ढाई महीने बीत चुके हैं, फिर भी सरकारों ने कोरोना वायरस की टेस्टिंग क्यों नहीं बढ़ाई? पहले क्यों कम टेस्ट किए गए?

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भारत में 10 अप्रैल तक कोरोना के पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा 6000 के पार जा चुका है और 200 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. लेकिन कुछ लोग चीन और अमेरीका के मुकाबले भारत की हालत बेहतर बता रहे हैं.

लेकिन सवाल ये है कि इस वाह-वाही के पीछे कामयाबी है या हम सच से मुंह फेर रहे हैं? क्या बिना टेस्ट किए, हम मान लेंगे कि हम कोरोना से जीत रहे हैं? 

भारत में कोरोना का पहला मामला जनवरी के महीने में आया था. जिसके करीब दो महीने बाद सरकार ने 25 मार्च से लॉकडाउन का ऐलान किया ताकि इसे फैलने से रोका जा सके. लेकिन अहम बात ये है कि सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना को फैलने से रोक सकता है, लेकिन इसने कितने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है ये नहीं बता सकता है.

आंकड़े हमारी तैयारी की पोल खोल रहे हैं

फरवरी के आखिर तक कोरोना के सिर्फ 3 केस सामने आए थे, लेकिन मार्च खत्म होते-होते करीब 1100 लोग पॉजिटिव पाए गए.

ये नंबर भी तब सामने आए जब भारत ने 30 मार्च तक 38,442 टेस्ट किए. यानी पहले केस के आने के दो महीने बाद भी 50 हजार लोगों तक का टेस्ट नहीं हुआ था. जबकि लाखों लोग विदेश से मार्च के महीने तक देश में आते रहे.

दो महीने की देरी के बाद जब भारत में टेस्ट की रफ्तार बढ़ाई गई, तब सिर्फ 10 दिनों में कहानी बदल गई. एक अप्रैल को भारत में कोरोना के कुल 1637 केस थे, जिसमें से 38 लोगों की मौत भी शामिल है. लेकिन जैसे ही भारत ने टेस्ट की स्पीड बढ़ाई आंकड़े तीन गुना बढ़ गए. हेल्थ मिनिस्ट्री की मानें तो 10 अप्रैल तक 6 हजार से ज्यादा पॉजिटिव और करीब 200 लोगों की मौत की बात सामने आई. आंकड़े साफ बता रहे हैं, हमने गलती कहां की.

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दुनिया के मुकाबले भारत कहां?

थोड़ा आसान शब्दों में समझाएं तो भारत में अब जाकर एक लाख की आबादी पर सिर्फ 12 लोगों का ही टेस्ट हो रहा है. वहीं, दुनिया के दूसरे देशों की टेस्ट के मामले में हालत भारत से बिल्कुल अलग है.

साउथ कोरिया की आबादी महज 5.1 करोड़ है. वहां अब तक 2.5 लाख से ज्यादा लोगों का टेस्ट किया जा चुका है. WHO पर मौजूद our world in data के मुताबिक 8 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी ने करीब 12 लाख से ज्यादा टेस्ट कर लिए हैं. जो इटली सबसे ज्यादा कोरोना की चपेट में हैं वो एक लाख की आबादी पर करीब 1,335 लोगों का टेस्ट कर रहा है. और जिस पाकिस्तान को हम दिन रात कोसते हैं वो हमसे ज्यादा एक लाख की आबादी पर 19 लोगों का टेस्ट कर रहा है.

एक बात साफ है जिसने टेस्ट में देरी की वो देश इसका खामियाजा भी भुगत रहे हैं. जैसे कि अमेरिका. अमेरीका में 10 अप्रैल तक 16 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 4 लाख से ज्यादा लोग पॉजिटिव हैं. अमेरिका सुपर पावर होने का दम भरता है लेकिन टेस्ट के मामले में देरी उसके लोगो की जान ले रही है.

भारत के राज्यों का हाल

अब बात भारत की. देश में कोरोना वायरस की मार सबसे ज्यादा महाराष्ट्र पर पड़ी है. अब तक महाराष्ट्र में 1200 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन ये मामले तब सामने आए हैं जब महाराष्ट्र ने 26 हजार से ज्यादा टेस्ट किए हैं. दिल्ली, राजस्थान, केरल टेस्ट करने में सबसे आगे हैं. लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल कर्नाटक अब भी ये बात समझने को राजी नहीं है.

बिहार में एक दिन में 500 से भी कम टेस्ट हो पा रहा है, जबकि सिर्फ चार टेस्ट सेंटर हैं. झारखंड में भी 10 अप्रैल तक 2500 लोगों का भी टेस्ट नहीं हो सका. 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में एक दिन में 700 से 800 टेस्ट हो रहे हैं. यूपी सरकार 10 हजार लोगों तक का टेस्ट नहीं कर पाई है. विकास मॉडल वाले गुजरात में 10 अप्रैल तक 5000 टेस्ट भी नहीं हुए.

अब बात बस इतनी है कि 130 करोड़ आबादी वाले देश में जिस तरह कोरोना वायरस के लिए स्क्रीनिंग और सैंपल टेस्ट किए जा रहे हैं, वो काफी नहीं हैं. खासकर तब जब ये पता लग रहा है कि बिना कोरोना के  लक्षण वाले कई लोग भी पॉजिटिव निकल जा रहे हैं. और कुछ लोग निगेटिव होने के बाद फिर से पॉजिटिव निकल रहे हैं. कोरोना से जंग जीतना है तो टेस्टिंग किट और सेंटर बढाने होंगे. नहीं तो ताली और थाली बजाने वाली जनता आज ना कल पूछेगी जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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