वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम
“चावल मिलता है तो दाल नहीं, दाल मिलता है तो गैस नहीं है, सब्जी नहीं है...हम भूखे-प्यासे हैं. कमाई नहीं है. घर में सबके मां-बाप रो रहे हैं. गैस नहीं है, जलावन के लिए लकड़ियां लेने जाते हैं, तो उठक-बैठक कराते हैं, मारपीट करते हैं.”मिठ्ठू, प्रवासी मजदूर, पूर्णिया (बिहार)
मिठ्ठू कश्मीर के शोपियां में कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन के बीच एक मजदूर कैंप में फंसे हैं. इन्होंने हमें अपनी तकलीफ के बारे में एक Whatsapp वीडियो के जरिये बताया.
“हम लोगों को ये बोला कि चलो 10-20 दिन में छोड़ देंगे. ये बोलकर 2 महीने हो गए हैं. एक भी पैसे नहीं हैं, काम भी नहीं कर पाए हैं. हर रोज बोला जाता है, छोड़ देंगे-छोड़ देंगे...”मोहम्मद अशर्फुल, प्रवासी मजदूर, बिहार
मोहम्मद अशर्फुल ने भी अपनी परेशानी बताई. लेकिन अशर्फुल एक स्थानीय ऑफिसर की मौजूदगी में हमें अपनी परेशानी बता रहे थे.
कश्मीर में ‘डबल लॉकडाउन’ है. आर्टिकल 370 हटने के बाद का लॉकडाउन, फिर कोरोना का लॉकडाउन. बाकी जगहों पर घर से निकलने की मनाही है, लेकिन यहां इन मजदूरों के साथ खुलकर बात करने की भी मनाही है.
देशभर से हम मजदूरों की परेशानी देख रहे हैं, सुन रहे हैं. हमने जम्मू-कश्मीर में भी एक लेबर कैंप का जायजा लेना चाहा ताकि हमें वहां के भी हालात पता चल सकें. हमें शोपियां में प्रवासी मजदूरों के फंसे होने के बारे में पता चला. ग्राउंड रिपोर्ट के लिए 19 मई को हमारे स्ट्रिंगर वहां पहुंचे. उन्होंने आईडी कार्ड दिखाकर लेबर कैंप में तब्दील किए गए स्कूल में एंट्री की. लेकिन 3-4 मिनट के अंदर ही कैमरा बंद कर शोपियां डीसी ऑफिस से परमिशन लेने की बात कही गई. वो डीसी ऑफिस पहुंचे. काफी सवाल जवाब के बाद उन्हें इजाजत दे दी गई लेकिन वहां से एक अधिकारी भी स्कूल पहुंचे. स्कूल पहुंचे तो कहा गया कि अंदर नहीं जा सकते, गेट पर ही मजदूरों से बात कीजिए.
साथ पहुंचे अधिकारी ने कहा कि शूट 5 मिनट में निपटाएं. लेकिन मजदूरों की तकलीफों को 5 मिनट में समेटना मुश्किल था, हमें बहुत कुछ और पूछना था, मजदूरों को बहुत कुछ और कहना था. जो हमने मजदूरों से Whatsapp वीडियो के जरिये जाना.
“किसी को कुछ बोलने नहीं देते. कहते हैं मारेंगे-पीटेंगे, ये करेंगे-वो करेंगे...ये कहते हैं कोरोना है, अभी तक हमारी कुछ चेकिंग नहीं हुई है.”फैंटू ऋषि, प्रवासी मजदूरपूर्णिया (बिहार)
फैंटू की बात को आगे बढ़ाते हुए एक और मजदूर कहते हैं- “सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर रही. हम ग्राउंड में भी निकलते हैं तो हमें मारा जाता है.”
जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद बाहर के मजदूरों से जाने के लिए कहा गया था. लेकिन कई मजदूर फरवरी-मार्च में कमाई की आस में फिर से घाटी पहुंचे. लेकिन इस बार कोरोना वायरस लॉकडाउन इनके लिए मुसीबत बन गई.
अधिकारियों के मुताबिक शोपियां के जिस लेबर कैंप में हम जायजा लेने पहुंचे थे वहां 121 प्रवासी मजदूर हैं. इनमें 88 मजदूर बिहार के हैं.
बात करें पूरे जम्मू कश्मीर की तो लेबर डिपार्टमेंट के मुताबिक कोविड-19 लॉकडाउन के चलते घाटी में 38,352 प्रवासी मजदूर फंसे हैं, जो घर जाना चाहते हैं. इनमें 13,444 मजदूर बिहार से हैं.
यहां फंसे मजदूर भी चाहते हैं कि बाकी जगहों की तरह इन्हें भी घर जल्द पहुंचाने की सुविधा दी जाए.
“घर जाने के लिए 2-4 रोज की बात करते हैं. हमें 2 महीने हो गए. हर जगह से मजदूर अपने घर पहुंच रहे हैं, लेकिन हमलोगों की आवाज कश्मीर से कोई नहीं सुन रहा, कोई खबर नहीं आती है. घर वाले बहुत परेशानी में हैं. एक तो कश्मीर में हालात खराब रहता है. ऊपर से हम मजबूरी में फंस गए.”मोहम्मद अशर्फुल, प्रवासी मजदूर, पूर्णिया(बिहार)
बता दें, प्रवासी मजदूरों को लेकर पहली ट्रेन 1184 प्रवासियों को लेकर जम्मू के कटरा से मध्यप्रदेश के छतरपुर के लिए 19 मई को रवाना हुई है. हालांकि बिहार के लिए कोई ट्रेन अबतक नहीं चलाई गई है.
देखिए ये ग्राउंड रिपोर्ट.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)