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लॉकडाउन ग्राउंड रिपोर्ट: गोद में दो बच्चे और 150 KM का पैदल सफर

लॉकडाउन घोषित होने के बाद अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए लोग अपने गांव लौटने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं.

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देशभर में लॉकडाउन घोषित होने के बाद अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए लोग अपने गांव लौटने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं.

मजदूरों और फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. ऐसे में एक तरफ कोरोनावायरस का डर , दूसरी तरफ भूख की वजह से मजदूर अपने गांव जाने को मजबूर हैं. एक तरफ जहां कुछ लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करना चाहते हैं वहीं कुछ लोग चोरी-छिपे अपने अपने गांव की तरफ निकले हैं. ये अब तक के इतिहास की शायद सबसे लंबी यात्रा है.

लॉकडाउन घोषित होने के बाद अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए लोग अपने गांव लौटने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं.
यमुना एक्सप्रेस वे पर पैदल लौटते लोग
(फोटो : द क्विंट)
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हम लोगों का घर आजमगढ है, आजमगढ यहां से 800 किलोमीटर है , अगर कुछ साधन मिलेगा बीच में तो ठीक है, नहीं तो पैदल है चले जाएंगे. क्या करे यहां न खाने के लिए है न रहने के लिए.
मनोज,आजमगढ़ के रहने वाले

हमें नोएडा एक्सप्रेस वे पर सत्यवन और उषा मिले, जो 175 किलोमीटर दूर बदायूं के रहने वाले हैं. उनके साथ दो बच्चे थे एक की उम्र 3 साल और दूसरे की 1 साल, औए एक बैग जिसमें उनका समान था.

“क्या करें हमारे पास कोई चारा नही है, मकान मालिक रुकने नहीं दे रहे. कह रहे हैे कि किराया लेंगे , जब काम ही नहीं है तो कहां से पैसा देंगे हम. खाने के लिए भी कुछ भी नही है हमारे पास.”
सत्यवन और उषा
लॉकडाउन घोषित होने के बाद अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए लोग अपने गांव लौटने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं.
सत्यवन और उषा
(फोटो : द क्विंट)

लॉकडाउन के तीसरे दिन भी हजारों लोग पैदल अपने घरों को लौट रहे हैं ऐसे में हमारे पास कुछ सुझाव हैं कि शायद सरकार और प्रशासन इनकी परेशानी को कम कर सकती है.

- बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों के लिए सार्वजनिक बसों या ट्रेनों की व्यवस्था करके.

- यह सुनिश्चित करने के लिए कि बसों में भीड़ न हो और यात्रियों के बीच पर्याप्त जगह हो.

- लोगों को यह आश्वासन देने के लिए कि नौकरी की सुरक्षा होगी, खाने के लिए पर्याप्त है और सरकार उनकी देखभाल करेगी.

- जो लोग पैदल चल रहे हैं, उन्हें भोजन, पानी और आश्रय प्रदान करने के लिए राजमार्गों पर पर्याप्त कर्मियों को तैनात करके.

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