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कोरोना के बीच मुख्यमंत्रियों ने केंद्र को दिखाई ‘संघवाद’ की ताकत

नेशनल लेवल पर दिखे कोरोना क्राइसिस से जुड़े राज्यों के फैसले

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

लगातार बढ़ते एक्टिव केस, हांफता हुआ मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, अचेत अर्थव्यवस्था, भविष्य पर छाई अंदेशे की धुंध, ‘लॉकडाउन’ की अदृश्य दीवारें और नौकरियों पर लटकती तलवारें. भारत में कोरोना वायरस के असर को अगर चंद शब्दों में बयां करना हो तो वो चंद शब्द कुछ ऐसे ही होंगे. डरावने और उदास. लेकिन इन सबके बीच एक पहलू है, जिसे इन नकारात्मक परिस्थितियों में भी अपनी अहमियत दिखाने का एक सकारात्मक मौका मिला है. और वो है- देश का संघीय ढांचा यानी फेडरल स्ट्रक्चर.

कथा जोर गरम है कि...

केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से शायद ये पहली बार है कि अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी प्रशासनिक और संवैधानिक ताकत का ऐसा इस्तेमाल और प्रदर्शन किया हो, जैसे वो कोरोना से निपटने और लॉकडाउन लागू करने को लेकर कर रहे हैं. हालांकि शुरुआत में इनमें से कई राज्यों पर भी सवालिया निशान लगे लेकिन बाद में वो संभल गए.

देश का संविधान बिल्कुल शुरुआत में ही ये कहता है कि India, that is Bharat, shall be a union of states. यानी, इंडिया, अर्थात भारत, राज्यों का एक संघ होगा. और संघवाद का मतलब है केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संवैधानिक तौर पर शक्तियों का विभाजन.

अब आप सोच रहे होंगे कि कोरोना की आफत और राज्यों की ताकत का भला आपस में क्या रिश्ता हुआ?

तो मैं आपको याद दिलाता हूं. 9 अप्रैल की दोपहर 1 बजकर 35 मिनट पर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक ट्विटर पर एक वीडियो स्टेटमेंट जारी किया. जिसके मुताबिक ओडिशा में लॉकडाउन 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया गया.

हैरानी की बात ये कि ओडिशा में COVID19 के आंकड़े ज्यादातर राज्यों के मुकाबले कम हैं लेकिन वो लॉकडाउन बढ़ाने वाला देश का पहला राज्य बन गया. यानी नवीन बाबू ने ये फैसला लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस बैठक का इंतजार भी नहीं किया जो 11 अप्रैल को तमाम मुख्यंमंत्रियों के साथ करने वाले थे.

इससे एक दिन पहले तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि वो 14 अप्रैल तक के घोषित लॉकडाउन को बढ़ाने के पक्ष में हैं. 10 अप्रैल को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने राज्य में लॉकडाउन एक मई तक बढ़ाने की घोषणा कर दी. इसी दौरान कई दूसरे मुख्यमंत्री भी लॉकडाउन बढ़ाने के पक्ष में नजर आए.

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अर्थव्यवस्था की चुनौती

अब सवाल ये था कि लॉकडाउन के बीच ही अर्थव्यवस्था और आमदनी की दिक्कतों से कैसे निपटा जाए.

  • पंजाब ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान रबी की फसल की कटाई और बिक्री के लिए किसानों को छूट दी जाएगी.
  • ओडिशा ने सोशल डिस्टेंसिग के नियमों को लागू करते हुए मनरेगा योजनाओं को शुरु करने और खेती-किसानी से जुड़ी कार्यवाही शुरु करने को हरी झंडी दिखा दी.
  • राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वक्त रहते वो किया जिसकी दरकार शायद पूरे देश में थी. भीलवाड़ा मॉडल से सुर्खियों में आए राजस्थान ने 7 अप्रैल को ही अपनी 7.5 करोड़ आबादी में से 5 करोड़ की स्क्रीनिंग का दावा कर दिया था.

इसके साथ ही सूबे ने केंद्र से राहत का इंतजार किए बगैर कोरोनावायरस के इलाज की ड्यूटी के दौरान मारे जाने वाले कर्मचारियों के परिवारों को 50 लाख रुपये की मदद की घोषणा कर दी. डॉक्टर, नर्सेज के लिए 25 करोड़ रुपये का इंसेंटिव घोषित कर दिया.

कोरोना बना मौका!

इसमें शक नहीं कि मौजूदा मुख्यमंत्रियों में कई बेहद तजुर्बेकार और वरिष्ठ पॉलिटीशियन हैं लेकिन कोरोना महामारी ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी काबलियत दिखाने का मौका दिया.

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने बेहद शुरुआत में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और रूट मैपिंग जैसे वैज्ञानिक तरीकों की शुरुआत कर दूसरे राज्यों के सामने मिसाल पेश की. देश में कोरोना वायरस से संक्रमण का सबसे पहला केस केरल से ही आया था. लेकिन उसके बाद बरती एहतियात चलते चलते राज्य में कोरोना वायरस से दो लोगों की ही जान गयी है.

13 अप्रैल तक महाराष्ट्र में कोविड-19 से मरने वालों की तादाद 149 हो चुकी है. देश के तमाम दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा लेकिन इसके बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जानकारी देने में पारदर्शिता और कुछ हद तक दूरदर्शिता दिखाते हुए सोशल मीडिया पर तारीफ बटोरी.

पॉलिटिकल कमेंटेटर नीलांजन मुखोपाध्याय अपने एक लेख में लिखते हैं कि कोरोना महामारी पीएम नरेंद्र मोदी की ही तरह इन रीजनल लीडर्स यानी मुख्यमंत्रियों के लिए भी एक इम्तेहान भी है और मौका भी. फर्क बस ये है कि पीएम मोदी के हर कदम पर हमेशा देश की नजर रहती है जबकि इन नेताओं को नेशनल लेवल पर चमकने का मौका कभी कभार मिलता है.
  • आप महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे का उदाहरण लीजिए. ज्यादातर नेता और मीडिया तबलीगी जमात के पीछे राशन-पानी लेकर पड़े हुए थे. लेकिन उसी दौरान उद्धव ने सांप्रदायिक वायरस को कोरोना वायरस की ही तरह खतरनाक बताकर सबको हैरान कर दिया.
  • महाराष्ट्र इस वक्त कोरोना के कन्फर्म्ड केसेस के मामले में नंबर एक पर है लेकिन टोटल लॉकडाउन के दौरान भी उद्धव सरकार की सक्रियता और उपलब्धता की तारीफ हुई.
  • कर्फ्यू पास से लेकर हॉटस्पॉट बनाने तक को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी सुर्खियों में रहे. हालांकि आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश में टेस्टिंग से लेकर सोशल डिस्टेंसिंग तक को लेकर गंभीरता बहुत देर से नजर आई. उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी खबरों में रही लेकिन हमेशा की तरह केंद्र से खींचतान को लेकर.

वैसे कानून-व्यवस्था और हेल्थ स्टेट सब्जेक्ट हैं और ऐसे ही नाजुक मौकों पर वो राज्य सरकारों को अपनी अहमियत दिखाने का मौका भी देते हैं.

आपको याद होगा कि नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर भी कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार से पंजा लड़ाया था लेकिन कोरोना से पैदा हुए हालात हमें एक बार फिर याद दिलाते हैं कि हर चीज पर केंद्र का डंडा नहीं चल सकता. इसके साथ ही संघीय ढांचे में जैसे अधिकार हैं वैसे कर्तव्य भी हैं.. विविधता से भरा देश है हमारा. हर कोने की अलग-अलग जरूरत. तो लोकल लेवल पर ज्यादा एक्शन और असरदार फैसले लिए जा सकते हैं. सबसे और सबकी कोशिशों से ही ये गुलिस्तां सजेगा.

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