वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
मुंबई के कमाठीपुरा इलाके की सेक्सवर्कर की बेटियां दुनिया भर में घूम-घूमकर अपने नुक्कड़ नाटक 'लाल बत्ती एक्सप्रेस' का आयोजन कर रही हैं, ताकि समाज जिसने उनकी माओं, बहनों को लेकर एक दकियानूसी धारणा बना ली है उसे तोड़ा जा सके. मुंबई के एक एनजीओ क्रांति ने इन्हें सशक्त करने का काम किया है.
तान्या ने अपनी जिंदगी के 17 साल रेडलाइट एरिया में बिताए हैं. उनकी मां एक सेक्सवर्कर थीं और पिता मिलिट्री में थे लेकिन वो उन्हें कभी नहीं देख पाईं.
अश्विनी काफी छोटी थी जब उनकी मां ने उन्हें हॉस्टल में डाल दिया था. वो 8 साल की थी. लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि वो अपने सौतेले पिता के साथ रह रही हैं. पिता उनकी मां के साथ मारपीट करते थे. मां घर से भाग गईं क्योंकि वो उस तरीके से काम करना या रहना नहीं चाहती थीं, जिस तरीके से पिता उन्हें रखना चाहते थे. अश्विनी अपने हॉस्टल से भाग गईं और 3 साल तक फरार रहीं. उससे पहले उन्होंने सफर नहीं किया था, घर से बाहर नहीं निकली थी.
जयश्री 10 साल की थीं, जब उनके पिता का देहांत हो गया. तब उनकी जिंदगी में सौतेले पिता आए. वहां से जिंदगी में थोड़ी उथल-पुथल मच गई.
एनजीओ क्रांति ने इन महिलाओं को सशक्त किया. उन्हें उनके कड़वे अनुभवों से थेरेपी के जरिये निकालने में मदद की.
सबके लिए एक राह है तो क्यों न हम उस राह को तलाशने में समय लगाएं बजाय उनकी तरफ देखकर ये कहें कि “अच्छा तुम 18 साल की हो, एडल्ट हो जाओ, नौकरी ढूंढो, शादी करो.” जैसे कि उन्हें जिंदगी के बारे में सब पता हो.रॉबिन, को-फाउंडर, क्रांति एनजीओ
लड़कियों का कहना है कि बचपन से उन्हें बताया गया कि सेक्स वर्क गलत होता है और मम्मी अच्छी नहीं हैं. लेकिन क्रांति में आकर बिल्कुल अलग नजरिया मिला कि उन्होंने जो भी किया वो परिवार के लिए किया, हमारे लिए किया.
आज इन लड़कियों में से कोई लाइसेंस्ड जुम्बा इंस्ट्रक्टर है तो कोई पढ़ाई कर रहा है. सभी के अपने सपने हैं और उन्हें पूरा करने की ख्वाहिश है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)