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दिल्ली में BJP की हार के बाद ‘चाणक्य’ नीति पर बड़ा सवाल  

अगले 50 साल तक भारत पर राज करने की बात करने वाली बीजेपी की ये लगातार छठी हार है.

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

दिल्ली में बीजेपी की हार कोई मामूली हार नहीं है. ये 200 सांसदों की फौज, करोड़ों रुपए, दर्जनों 'बयान वीरों' की मंडली, सोशल मीडिया पर जहर की दुकान चलाने वाले और सबसे ज्यादा उस चाणक्य नीति की हार है, जिसे हर कोई हमेशा के लिए तख्ते नशीं समझ बैठा था. एक के बाद एक 6 राज्यों में बीजेपी की लगातार हार खुद पूछ रही है कि चाणक्य नीति काम कर रही थी या फिर सामने सही निशाना लगाने वाला कोई अर्जुन नहीं था? अब गाली, गोली, हिंदू-मुसलमान करेंगे तो जनता ऐसी ही वोट का ‘करंट’ लगाकर पूछेगी, जनाब ऐसे कैसे?

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली का किला फतह कर लिया है. 70 में से 62 सीट. लेकिन इस चुनावी युद्ध में बीजेपी को ऐसी शिकस्त मिली है, जिसका घाव भरना मुश्किल है. क्योंकि जो बीजेपी छोटी से लेकर बड़ी जीत का जश्न गली से लेकर सड़कों पर ढोल-नगाड़ों के साथ मनाती है तो उसकी हार की चर्चा भी होगी ना.

अब आप कहेंगे कि 'हाफ स्टेट' कहे जानी वाली दिल्ली ही तो हारे हैं फिर इतनी जल्दी चाणक्य नीति पर सवाल कैसे उठा सकते हैं? लेकिन सवाल का जवाब खुद आंकड़े दे रहे हैं.

अगले 50 साल तक भारत पर राज करने की बात करने वाली बीजेपी की ये लगातार छठी हार है. 6 राज्य- राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड और अब दिल्ली. अगर ‘चाणक्य’ जीत का रास्ता जानते हैं तो ये हार कैसे हुई?

चलिए अब आपको इस चुनावी युद्ध के किस्से सुनाते हैं. पहले शुरुआत जीत से.

2014 लोकसभा चुनाव के बाद कहा जाने लगा कि बीजेपी अजेय है. 2014 में बीजेपी की सरकार सिर्फ 7 राज्यों में थी. लेकिन 2018 पहुंचते-पहुंचते बीजेपी 21 राज्यों में अपना परचम लहरा चुकी थी. ये भी सच है कि अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव जीता है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के 14 साल के वनवास को खत्म किया. जम्मू-कश्मीर में पहली बार बीजेपी सरकार में आई, असम, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में जीत दर्ज की. लेकिन राजनीति में कोई अजय रहे ये जरूरी नहीं.

भारत के 71 फीसदी नक्शे पर कब्जा जमाए बैठी बीजेपी, अब सिमट कर सिर्फ 40 फीसदी पर आ पहुंची है.
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लोकसभा चुनाव के बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सरकार ना बना पाने का मलाल. फिर 2019 में ही झारखंड के नतीजों ने बीजेपी की नीतियों पर सवाल खड़ा कर दिया. झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 25 सीटें ही बीजेपी को मिलीं. JMM-कांग्रेस-RJD गठबंधन ने सरकार बना ली. झारखंड और महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने का गम अभी कम भी नहीं हुआ था कि दिल्ली के वोटरों ने भड़काऊ बयान देने वाले बीजेपी नेताओं को वोट का करंट लगा दिया.

पूरे चुनाव में नागरिकता कानून का विरोध का प्रतीक बन चुके शाहीन बाग पर हमला करना हो या गोली मारो के नारे लगाने हो, बीजेपी के चाणक्य इस बार खुद अपने ही बुने जाल में फंस गए. योगी आदित्यनाथ, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा जैसे नेताओं की गोली मारने की धमकी भी काम नहीं आई. ना करंट वाला प्रयोग काम आया और न ही शाहीन बाग और बाकी जगहों पर प्रदर्शनों को प्रयोग बताने वाला एक्सपेरिमेंट काम आया. दहाईं का आंकड़ा भी बीजेपी क्रॉस नहीं कर पाई.

मामला साफ है अगर कोई अर्जुन काम का धनुष उठा ले तो नफरत के बाण फेल हो जाते हैं, और होंगे. फिर न ध्रुवीकरण की नीति चलती है और न चाणक्यनीति? एक धर्म को दूसरे धर्म का डर दिखा कर वोट मांगने वालों से दिल्ली की जनता ने दरअसल पूछा है- जनाब ऐसे कैसे?

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