कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन एग्जाम लेने का फैसला किया है. जिसके बाद छात्र और शिक्षक दोनों इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एक नोटिफिकेशन जारी कर फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा कराने के लिए सभी विभागों के निर्देश दिया है. ये एग्जाम ओपन बुक मोड से लिया जाएगा. डीयू के मुताबिक परीक्षाएं एक जुलाई से शुरू होंगी. लेकिन यूनिवर्सिटी के इस फैसले से कई स्टूडेंट परेशान हैं.
किरोड़ीमल कॉलेज के मुनव्वर हुसैन कहते हैं कि लॉकडाउन की वजह से बहुत से बच्चे अलग-अलग जगह फंसे हैं, ना उनके पास किताबें हैं, ना कोई नोट्स. ऐसे में वो एग्जाम कैसे देंगे. मुनव्वर हुसैन कहते हैं, “यूनिवर्सिटी बंद हो गया, मैं लखनऊ में फंसा हूं, घर बिहार है और वहां जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है, लेकिन अबतक नहीं हो सका. अगर मैं किसी तरह घर पहुंच भी गया ,तो मुझे क्वारन्टीन सेंटर में रहना होगा, फिर मैं एग्जाम कैसे दूंगा?
इंटरनेट स्पीड छात्रों के लिए बड़ी टेंशन
किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र अंकित कुमार कहते हैं,
“जो इंटरनेट स्पीड दिल्ली में है वो बिहार में नहीं है, ऊपर से ऑनलाइन एग्जाम के लिए लैपटॉप चाहिए, मैं इस वक्त जहां हूं वहां बिजली भी जाती है, तब मैं क्या करूंगा. एग्जाम के दौरान बिजली चली गई तो किसकी जिम्मेदारी होगी?”
2G इंटरनेट के साथ कश्मीर के छात्र कैसे देंगे एग्जाम?
दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के छात्र अलीशान जाफरी बताते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में बहुत से छात्र कश्मीर से हैं, वहां 2G की स्पीड आती है, कई बार इंटरनेट बंद कर दिया जाता है. फिर वहां के छात्रों के बारे में क्यों नहीं सोचा गया. यूनिवर्सिटी प्रशासन को क्यों नहीं उन बच्चों का ख्याल आया?
ऐसे समय में एग्जाम लेना असंवेदनशील है. ये चीजें बताती हैं कि यूनिवर्सिटी समानता के बारे में नहीं सोचती. यूनिवर्सिटी ने उन छात्रों को नजरअंदाज किया है, जो पिछड़े समाज से आते हैं, कश्मीर के छात्रों के पास 4G इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है.
दिव्यांग छात्रों की परेशानी
डीयू की प्रोफेसर डॉक्टर आभा देव हबीब बताती हैं कि यूनिवर्सिटी में बहुत से दिव्यांग छात्र पढ़ते हैं, क्या उनके बारे में सोचा गया. इस लॉकडाउन में वो बच्चे जहां भी हैं, क्या उनके पास ब्रेल लीपि की सुविधा है, क्या उनके पास स्कराइब है जो उनके पेपर लिखने में मदद करे?"
डॉक्टर आभा ने ये यूनिवर्सिटी प्रशासन पर ये भी आरोप लगाया कि जिस स्टैंडिंग कमेटी ने ऑनलाइन एग्जाम का फैसला किया है उसमें 15 लोग थे, जिसमें सिर्फ एक प्रोफेसर थे.
इस तरह की अहम बातों में जब भी कोई स्टैडिंग कमेटी बनती है उसमें टीचर की भागीदारी होती है, इसमें दिव्यांग टीचर और स्टूडेंट की भागीदारी होती है, इसमें छात्रों को रखा जाता है. सब मिलकर, समझकर एक प्रस्ताव रखते हैं. जो 15 लोगों की कमेटी यूनिवर्सिटी ने गठित की थी, उसमें सिर्फ एक प्रोफेसर थे, ये बहुत ही अफसोस की बात है. आप उर्दू विभाग को ही देख लीजिए, ऑनलाइन रीडिंग मटेरियल भी मौजूद नहीं है, साइंस विभाग में कम से कम बहुत सी चीजें ऑनलाइन हैं. लेकिन उर्दू और संस्कृत का क्या?
बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ओपन बुक एग्जाम के लिए प्रश्नपत्र तैयार करने के लिए दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं. सभी डिपार्टमेंड हेड के अलावा स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (SOL) और नॉन कॉलिजिएट विमिंस एजुकेशन बोर्ड को भेजे गए हैं.
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