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घायलों को पीटती दिखी थी पुलिस,1 की मौत के बाद लीपापोती में जुटी?

दिल्ली हिंसा के दौरान हत्या के एक मामले में अपने जवानों को बचा रही है दिल्ली पुलिस?

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

क्या दिल्ली पुलिस नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान हत्या के एक मामले में अपने जवानों को बचा रही है? दिल्ली पुलिस क्यों उन पुलिसवालों की पहचान नहीं कर सकी है जिन्होंने उन पांच गम्भीर रूप से घायल लोगों के साथ बुरा बर्ताव किया, उनका वीडियो बनाया? उन घायलों में से एक फैजान की मौत हो चुकी है ऐसा क्यों है कि मौत की परिस्थिति को लेकर दिल्ली के लोक नायक अस्पताल से जारी किए गये फैजान के डेथ सर्टिफिकेट की डिटेल और दिल्ली पुलिस की बातों में फर्क है?

सारे सवाल गम्भीर हैं, लेकिन उनके कोई जवाब नहीं हैं.

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25 फरवरी को एक वायरल वीडियो सामने आया जिसमें 5 घायल लोग सड़क पर पड़े हुए हैं, पुलिसवालों से घिरे हुए हैं. पुलिसवाले उन्हें बुरा-भला कहते-कहते राष्ट्रगान गाने और वंदे मातरम कहने को मजबूर करते हुए दिख रहे हैं. 27 फरवरी को उन पांच घायलों में एक फैजान की मौत दिल्ली के लोक नायक हॉस्पिटल में हो जाती है. वीडियो रिकॉर्ड करने के बाद क्या हुआ, इसका पता लगाने की कोशिश करते हुए मुझे गम्भीर बात पता चली कि दिल्ली पुलिस, लोक नायक हॉस्पिटल के डॉक्टरों और फैजान के परिवार के लोगों के बयान अलग-अलग हैं.

ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस आलोक कुमार ने हमें बताया कि पुलिस 24 फरवरी को 5 घायलों को सीधे रोड से उठाकर हॉस्पिटल लेकर गयी थी. उन्होंने ये भी बताया कि फैजान की मौत के मामले में FIR दर्ज की गयी है लेकिन हत्या का आरोप अज्ञात लोगों के खिलाफ रजिस्टर किया गया है.

क्यों?

क्योंकि, हॉस्पिटल में 5 घायल लोगों ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि उन्हें भीड़ ने पीटा था, पुलिसवालों ने नहीं. ज्वाइंट कमिश्नर आलोक कुमार ने ये भी कहा कि वायरल वीडियो में मौजूद पुलिसवालों के नाम FIR में नहीं हैं क्योंकि वो घायलों की पिटाई करते हुएदिखाई नहीं दे रहे थे. तब हमने ज्वाइंट सीपी से पूछा कि क्यों इन पुलिसवालों के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 304 ए के तहत आरोप नहीं लगाए गये?

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किसी व्यक्ति की मौत किसी दूसरे व्यक्ति की लापरवाही से होने पर ये धारा लगाई जाती है. क्या फैजान को अस्पताल ले जाने में हुई देरी मौत की वजह नहीं थी? इस पर ज्वाइंट सीपी कुमार के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था. उन्होंने कहा कि विभागीय जांच की जा रही है जिससे पता चलेगा कि क्यों जवानों ने 5 घायलों के साथ बुरा बर्ताव किया और क्यों वे अपनी ड्यूटी पूरी करने में विफल रहे.

इस बात को नोट किया जाए कि ज्वाइंट सीपी ने हमें बताया था कि सभी 5 घायलों को जीवित हाल में अस्पताल में भर्ती कराया गया था जबकि लोकनायक हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. किशोर सिंह ने हमें कन्फर्म किया कि 24 फरवरी के दिन पुलिस फैजान को मृत अवस्था में लेकर आयी थी.

डॉ. सिंह का बयान ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार के दावे के ठीक उलट है ऐसा क्यों?

और अधिक जानकारी के लिए हमने फैजान के परिवार से बातचीत की. उन्होंने घटनाओं का बिल्कुल अलग सीक्वेंस हमें बताया. इसे साबित करने के लिए उनके पास डॉक्यूमेंट्स भी हैं. फैजान की मां कहती है कि उनका बेटा सड़क से सीधे हॉस्पिटल नहीं ले जाया गया. वो कहती हैं कि 24 फरवरी को पुलिस उसे ज्योति नगर थाने लेकर गयी. उनका कहना है कि वो फैजान से मिलने उसी दिन थाने पहुंची लेकिन मिलने की इजाजत नहीं दी गयी. दो दिनों तक फैजान को पुलिस हिरासत में रखा गया.

“25 फरवरी को हमें थाने से एक फोन आया कि फैजान को घर ले जाएं. जब हम उसे देर रात लेकर आए तो उसे बहुत दर्द हो रहा था. 26 फरवरी को हमलोग उसे इलाज के लिए लोक नायक हॉस्पिटल ले गये.”
फैजान की मां

फैजान की मां ने हमें डेथ सर्टिफिकेट दिखाया जिसमें साफ तौर पर दिखता है कि हॉस्पिटल में एडमिट किए जाने की तारीख 26 फरवरी है और मौत की तारीख 27 फरवरी. जब हमने लोक नायक हॉस्पिटल के डॉ. किशोर सिंह को ये बात बतायी और पूछा कि कैसे फैजान 24 फरवरी को मृत अवस्था में लाया गया था अगर डेथ सर्टिफिकेट ये बताता है कि उसकी मौत 27 फरवरी को हुई? तो जवाब देने के बदले डॉ. सिंह हमसे कहते हैं कि इस बारे में उनकी जूनियर डॉ. रीतु सक्सेना से बात करें.

डॉ. रीतु सक्सेना ने हमें बताया कि डेथ सर्टिफिकेट में जो तारीख हैं वो सही है. उन्होंने कहा कि फैजान को 26 फरवरी के दिन न्यूरो सर्जरी वार्ड में भर्ती कराया गया था. उन्होंने ये भी बताया कि उसे उसके घरवाले लेकर आए थे न कि पुलिस. लेकिन उन्होंने फैजान की मौत की वजह बताने से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिल्ली पुलिस के पास है. ऐसे में हमारा सवाल है कि एक वरिष्ठ पुलिस अफसर, ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस और लोक नायक हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर ने अलग-अलग सूचनाएं हमें क्यों दी?

ज्वाइंट कमिश्नर आलोक कुमार ने हमें ये भी बताया कि जिन पुलिसकर्मियों ने पांच घायलों को जबरदस्ती राष्ट्रगान गाने को मजबूर किया उनकी पहचान अब तक नहीं हो सकी है.

इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईपीएस अफसर वाई पी सिंह ने कहा

“अगर पुलिस चाहती तो बगैर किसी देरी के उन पुलिसकर्मियों की पहचान कर सकती. इसके लिए पुलिस के पास कई साधन होते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि वे अपने लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.”

कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि बुरा-भला कहने वाले पुलिसकर्मियों के नाम केस दर्ज होना चाहिए और फैजान की हत्या के मामले में उनकी जांच होनी चाहिए. विभागीय जांच को वो नाकाफी बताते हैं. ऐसे में दिल्ली पुलिस को कई सवालों के जवाब देने हैं.

  1. क्या उन पुलिसकर्मियों की पहचान करना इतना मुश्किल है खासकर तब जबकि उस घटना के एक नहीं दो-दो वीडियो अलग-अलग एंगल से मौजूद हैं?
  2. लोकल स्टेशन हाऊस अफसर यानी किसी थाने के SHO के पास हमेशा ये जानकारी होती है कि उनके अधिकारी कहां तैनात हैं. संबंधित SHO बुरा-भला कहने वाले पुलिसवालों की पहचान क्यों नहीं कर सकते?
  3. क्या दिल्ली पुलिस अपने लोगों को बचा रही है?
  4. क्या दिल्ली पुलिस उन पुलिसवालों के खिलाफ FIR दर्ज करेगी ताकि फैजान की मौत में उनकी भूमिका का पता लगाया जा सके? क्या उन पर हत्या का केस दर्ज होगा? या फिर कम से कम गम्भीर लापरवाही का?
  5. क्या इस बार दिल्ली पुलिस लीपापोती करने वाली विभागीय जांच से अलग थोड़ा बेहतर करेगी और मामले को रफा-दफा करने से बचेग

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