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हिंसा के बीच दिल्ली ने दिखाया कि उसका दिल इंसाफ पसंद और नेक है

जिन्हें नाज है हिंद पर, वे यहां हैं, यही हैं.

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वीडियो एडिटर: अभिषेक वर्मा

कैमरापर्सन: अतहर रातहर

24 फरवरी से नफरत के धुएं में दिल्ली घुटती रही. ‘न्यू इंडिया’ की खौफनाक तस्वीरें लोगों के दिलो-दिमाग में इस मुल्क के मुस्तकबिल को लेकर सवाल उठा रही थीं. लेकिन स्याह कहानियों में से कई बार-कई जगह रोशनी भी झांकती दिखी. उम्मीद की किरण को बाहर निकलने के लिए रास्ता नहीं बनाना पड़ता. हिंसा की आग के बीच कुछ ऐसी खबरें, वीडियो सामने आए जो दिल को ठंडक पहुंचा रही हैं.

हो सकता है कि ऐसी कई इंसानियत पर भरोसे को बनाए रखने वाली खबरें, वीडियो हम तक नहीं पहुंचे हों लेकिन हम यहां आपको जितने भी ऐसे उदाहरण देने जा रहे हैं, शायद वो आपको उम्मीद दिलाएंगे की नफरत की उम्र लंबी नहीं होती. और हमारा इस वीडियो को बनाने के पीछे का मकसद भी यही है कि आप भी इस पर यकीन करें.

अशोक नगर में जिस जगह एक मस्जिद में तोड़ फोड़ की गई वहां जब क्विंट की टीम पहुंची तो हमें मिले जितेंद्र वर्मा.उन्होंने हमें बताया कि जब हिंसक भीड़ वहां बेतहाशा तोड़फोड़ कर रही थी, तो उन्होंने भीड़ को रोकने का भरसक प्रयास किया ताकि उनके मुसलमान पड़ोसियों को नुकसान न पहुंचे.

उस दिन कई लोग एक साथ भीड़ में आए, मैंने उन लोगों को मना किया कि ये इंसानियत के खिलाफ है. ये सब मत करो, लेकिन वो लोग मुझे भी मारने पर उतर आए, मैंने कहा कि जो लोग हमारे साथ रह रहे हैं उन पर आंच नहीं आनी चाहिए, लेकिन वो नहीं माने.
जितेंद्र वर्मा, अशोक नगर निवासी

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस  में 26 फरवरी को एक रिपोर्ट छपी. रिपोर्ट में बयान था अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का. हरप्रीत सिंह ने कहा कि हिंसा से ग्रसित चाहे वो मुस्लिम हों या हिंदू, हर जरूरतमंद के लिए दिल्ली के सारे गुरुद्वारे खोल दिए जाएं. उन्हें हर संभव मदद दी जाए. उनके लिए कम्युनिटी किचेन यानी लंगर की व्यवस्था की जाए.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जिन इलाकों हिंसा फैली है उनमें से एक है चांदबाग. बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट है कि इस इलाके में भी भीड़ आई और तबाही मचाकर चली गई. लेकिन जब एक मंदिर पर हमला हुआ तो उस इलाके में रहने वाले मुसलमानों ने एकजुट होकर मंदिर को कोई नुकसान पहुंचने नहीं दिया.

सोशल मीडिया पर नफरती कंटेट के बीच भाईचारे की मिसाल

सोशल मीडिया पर यूं तो दिल्ली हिंसा की आग को भड़काने वाले कई कंटेंट दिखे. लेकिन कहते हैं न कि हर तस्वीर के 2 पहलू होते हैं तो सोशल मीडिया -फेसबुक, ट्विटर भी मुसीबत की इस घड़ी में साथी बना.

हिंसा के दौरान मुस्ताफाबाद में एक बुजुर्ग महिला अपने घर में फंस गईं थीं. उनके बेटे के दोस्त को पता चला तो उन्होंने फेसबुक पर मदद की अपील की, लोगों से गुजारिश की. लोगों ने ये अपील देखते ही बुजुर्ग महिला को वहां से सुरक्षित निकाला और अपने घर ले आए. गुजारिश करने वाले शख्स का नाम मोहम्मद अनस है. बुजुर्ग महिला का नाम मंजू सारस्वत और उन्हें सुरक्षित अपने घर पर पनाह देने वाला है मोमिन सैफी का परिवार.

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अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्ट छपी कि दिल्ली के ही अशोकनगर में जब हिंसा हुई, बड़ी मस्जिद में आग लगाई गई. जब भीड़ घरों और दुकानों को जला रही थी. तो 40 मुसलमानों को पड़ोस में रह रहे हिंदुओं ने घर में पनाह दी, उन्हें सुरक्षित रखा.

कम्युनल ताकतों को हराने के लिए- यमुना विहार इलाके में रह रहे हिंदू-मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाया. उपद्रवियों को खदेड़ा. और वो उपद्रवियों से निपटने की कमान अपने हाथ में लेते हुए दोनों समुदाय इलाके की सुरक्षा कर रहे हैं.

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और ये भी देख लीजिए...

इस माहौल में हमें ऐसी कई कहानियों की जरूरत है. और हां, जिन्हें नाज है हिंद पर, वे यहां हैं, यही हैं. कुल मिलाकर दिल्ली ने इस मुसीबत की घड़ी में ऐलान किया कि दिल्ली गोली मारो के नारे लगवाने वाले, सरेआम धमकी देने वाले नेताओं से नहीं बनी है, दिल्ली का अपना दिल है, जो इंसाफ पसंद है, नेक है.

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