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Video:निष्ठुर सरकार और सर्द रातें, दोनों से भिड़ रहे हैं दिव्यांग 

RRB के खिलाफ दिव्यांग लोगों का दिल्ली के मंडी हाउस में प्रदर्शन

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

दिल्ली के मंडी हाउस में रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (RRB) के खिलाफ दिव्यांग लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. 3 दिसंबर को प्रदर्शन का 7वां दिन था. लोगों का कहना है कि रेलवे परीक्षा (ग्रुप-D) के रिजल्ट की पहली लिस्ट में उनका नाम शामिल था, लेकिन जब उस लिस्ट को रिवाइज किया गया तो उनका नाम लिस्ट से नदारद है.

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प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि कई शिकायतों के बाद भी प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया है. द क्विंट ने प्रदर्शनकारियों के साथ मंडी हाउस में एक रात बिताई. ये जानने के लिए कि इतनी सर्दी में भी वो कैसे प्रदर्शन कर रहे हैं और क्या वो अब तक उनका ध्यान अपनी तरफ खिंच पाए हैं या नहीं?

रोज रात को न्यूजपेपर पर सोने को मजबूर बिहार से आए प्रदर्शनकारी दीपक कुमार का कहना है, ‘हमारे सभी दिव्यांग भाई मंडी हाउस में बाहर ही एक कंबल में रात गुजारने को मजबूर हैं, तो आप समझ सकते हैं कि कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.’

हम खुद को प्लास्टिक से लपेट कर सोते हैं. आप समझ सकते हैं कि हम किस दर्द से गुजर रहे हैं, जब हम उठते हैं तो ऐसे लगता है कि 4-5 बाल्टी पानी किसी ने हम पर फेंक दिया है.
कुरिल कुमार, प्रदर्शनकारी

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार ने उनकी मदद के लिए अब तक कोई कदम नहीं उठाया. उत्तर प्रदेश से आए रंजन ने कहा, ‘हम अभी तक सड़कों पर ही सो रहे हैं. सरकार ने हमारी मदद के लिए कोई कदम नहीं उठाया है.’

अलग-अलग राज्यों से आए कई प्रदर्शनकारी बहुत थोड़े पैसे लेकर आए हैं, जो अब खत्म हो चले हैं. पैसे की कमी के चलते वो अब मांगकर खाना खाने को मजबूर हैं.

राजस्थान के एमएस राठौड़ कहते हैं कि कटोरे के साथ खाना मांगना बहुत बुरा लगता है. उन्होंने बताया, ‘मैं एक ग्रेजुएट हूं, UPSC के लिए तैयारी कर रहा था. जो प्रदर्शनकारी भूख हड़ताल पर थे, उनकी हालत और भी ज्यादा खराब है. उनका आरोप है कि उन्हें अस्पतालों में सही इलाज भी नहीं मिल रहा है.’

कई लोग प्रदर्शन करते हैं, लेकिन हम जैसे लोग नहीं. और वो भी इस तरह से. इस मौसम में खुली हवा में, जामा देने वाली सर्दी में.
दीपक, प्रदर्शनकारी

राजस्थान से आए प्रदर्शनकारी नरेश भाटिया का कहते हैं कि वो अपने हक के लिए लड़ रहे हैं, ऐसे में वो कैसे थक सकते हैं. ‘हम थक नहीं सकते, कैसे थकेंगे? अगर हमें नौकरी मिल जाएगी तो हमारी जिंदगी बन जाएगी. ये मंडी हाउस एक ऐतिहासिक जगह बन जाएगी, हम जब भी यहां से जाएंगे इसे चूम कर जाएंगे.’

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