वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास
30 साल के सतीश एक कबड्डी कोच हैं. तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में युवा लड़कियों को कबड्डी की ट्रेनिंग देते हैं. कोविड- 19 महामारी की वजह से उन्होंने एक स्कूल में पीटी टीचर की नौकरी खोई. इसलिए वो रोज सुबह अपने परिवार और लड़कियों के लिए पैसे कमाने के लिए मछली पकड़ने जाते हैं.
हर जगह लड़के खेल रहे हैं लेकिन इस इलाके के आसपास कोई भी लड़कियां खेलती नहीं हैं. इसलिए, मैंने कुछ नया करने का फैसला किया और लड़कियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया. शहरों में, लड़कियां बास्केटबॉल के साथ-साथ अन्य खेल भी खेलती हैं लेकिन वे कबड्डी नहीं खेलती हैं. ये हमारे गांवों से एक खेल है और यहां लड़कियां बहादुर और मजबूत हैं.सतीश, कबड्डी कोच
खून पसीना बहाकर लड़कियां भी तेजी से इसे सीख रही हैं और उस क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की कोशिश कर रही हैं, जिसे आमतौर पर लड़कों का खेल कहा जाता है.
हमने स्कूलों में लड़कों के खिलाफ खेला है और हम जीत गए हैं. हमें बस सभी को सिर्फ खिलाड़ियों के रूप में देखना होगा और अगर हम इसमें अपना दिल लगा लें तो हम जीत सकते हैं.श्रीजा
सतीश कहते हैं कि इन गांवों में, लड़कियां घर पर भी शॉर्ट्स नहीं पहनती हैं. जब वे शुरू में टूर्नामेंट में जाने लगीं, उन्होंने पुरुषों समेत 500 से अधिक लोगों को दर्शकों के रूप में देखा और अब, उन्हें शॉर्ट्स पहनने की आदत हो गई है.
इन लड़कियों का परिवार मछली पकड़ने पर निर्भर करता है. लॉकडाउन के दौरान नौकरी खोने की वजह से इन परिवारों के पास कोई आमदनी नहीं है.
मैंने इस साल अपने बच्चों को स्कूल में नहीं डाला क्योंकि मैं ऑनलाइन क्लासेज के लिए पढ़ने का सामान नहीं जुटा सकता.राजेंद्रन, श्रीजा के पिता
बिना जूते, बिना किसी ट्रेनिंग के सामान और बिना खास खान-पान के ये लड़कियां तैयारी करती हैं. इन्हें मुश्किल से तीन वक्त का खाना मिल पाता है.
सतीश बताते हैं कि मैंने इन लड़कियों के लिए अपने सामर्थ्य के भीतर सब कुछ किया है. जब हम मैचों के लिए जाते हैं तो हम देखते हैं कि अन्य सभी टीमों के पास एनर्जी ड्रिंक है. हमारी लड़कियों के लिए रोजाना वाला ही खाना होता है. माता-पिता उन्हें स्पेशल ड्रिंक या पौष्टिक खाना देने में असमर्थ हैं. यहां तककि एक दिन में तीन बार भोजन करना भी बड़ी बात है. ये सभी लड़कियां काफी पतली हैं और जब मैं उन्हें ठीक से खाने के लिए कहता हूं तो वे कहती हैं, 'नहीं खाना, सर'.
कबड्डी इन लड़कियों के लिए एक बेहतर जीवन देने की उम्मीद है. शाश्विता बताती हैं किहमारे गांव में, लड़कियों को बाहर जाने की इजाजत नहीं है. मैं कई लड़कियों को अपने घरों से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करना चाहती हूं.
महामारी की वजह से उनका स्कूल छूट गया है लेकिन कबड्डी खेलना बंद नहीं हुआ है. रोज सुबह सात बजे, वो कड़ी मेहनत करती हैं, लेकिन फंड के अभाव में उन्हें डर है कि कहीं उनके सपने बिखर न जाएं
आपकी तरफ से एक छोटी मदद इन लड़कियों को कबड्डी खेलने और अपनी प्रसिद्धि पाने में मदद कर सकती है. आपके डोनेशन से सतीश और इन लड़कियों की मदद हो सकती है.
इनकी सहायता के लिए हमें लिखिए editor@thequint.com
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