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दोस्ती या दरार ? फिलहाल कैसा है भारत और अमेरिका के बीच रिश्ता

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ नजरिए से रिश्ते में अचानक नई अड़चन आ रही है.

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज, मो. इरशाद

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दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश अमेरिका और भारत इतने करीब कभी नहीं रहे हैं, जितना ट्रंप के दौर में रहे हैं. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'अमेरिका फर्स्ट' नजरिए से इस रिश्ते में अचानक नई अड़चन आ रही है.

उदाहरण के तौर पर हाफिज सईद की गिरफ्तारी को लेकर हाल ही में किया गया ट्वीट देखिए.

जब कई देश ये मानते हैं कि पाकिस्तान नियमित रूप से भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई में मदद करता है, ऐसे में ट्रंप का सईद को 'तथाकथित' मास्टरमाइंड कहना भारत को गलत संकेत देता है. ये भी तथ्य है कि सईद पाकिस्तान में चुनाव के लिए खड़ा हो चुका है, इसका मतलब है कि गिरफ्तारी के लिए उसे 'ढूंढने’ की जरूरत नहीं थी ...वो खुलेआम घूम रहा था. ऐसे में ये ट्वीट चिढ़ाने जैसा है.

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जब चीन जैसे देश से किसी भी तरह की चुनौती मिल रही हो, ऐसे में ऐसा कुछ नहीं है, जो दोनों देशों के बीच के रिश्तों पर असर डाल सके, फिर भी रिश्तों में दरार-सी दिख रही है.

H1B वीजा नियमों में सख्ती

अमेरिका का 70 फीसदी H1B वीजा भारतीयों को ही मिला करता था लेकिन अब इसके नियमों के सख्त हो जाने से इंफोसिस जैसी बड़ी कंपनियों को नुकसान हुआ है, जो H1B वीजा पर अपने वर्कर्स को अमेरिका भेजा करते थे. 2017 के बाद से ट्रंप सरकार ने इसके नियमों को सख्त करना शुरू किया, ताकि कंपनियां अमेरिकी लोगों को नौकरियां दे.

“फिलहाल, हमारे इमिग्रेशन सिस्टम का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है. हर बैकग्राउंड के अमेरिकन वर्कर को हटाकर उनकी जगह दूसरे देशों से वर्कर लाए जा रहे हैं, जो कम पैसों में वहीं जॉब करते हैं. ये रुक जाएगा.” 
डोनाल्ड ट्रंप, 18 अप्रैल 2017 का बयान

वैसे ये इतना भी बुरा नहीं है, क्योंकि वहां की हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने एक बिल पास किया है, जिसके मुताबिक देशों के हिसाब से वीजा के नियम लागू किए जाएंगे. इससे उन भारतीयों को फायदा होगा, जो इस वीजा के इंतजार में हैं. लेकिन अभी भी इस फैसले पर ट्रंप की मुहर बाकी है.

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टैरिफ रेट

व्हिस्की, हार्ले और बादाम!

भारत और अमेरिका में ये वो प्रोडक्ट हैं, जो टैरिफ रेट बढ़ने के बाद से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इसके बाद फिर डोनाल्ड ट्रंप व्यापारिक समझौतों में बदलाव लाने के लिए भी ‘दिलचस्पी’ दिखा रहे हैं. वो ये सोचते हैं कि अमेरिका और बाकी के देशों के बीच दुनिया के सुपरपावर के साथ कौन, किसके साथ ज्यादा ‘चालाक’ बन रहा है.

“भारत हमपर काफी टैरिफ लगाता है. जब हम हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल भेजते हैं, वो काफी टैरिफ चार्ज करते हैं. मैंने पीएम मोदी से बात की है और वो काफी हद तक इसे घटाने जा रहे हैं.”  
डोनाल्ड ट्रंप, 6 अक्टूबर 2018 का बयान
अगर बाद में यही ट्रेड वॉर में बदल जाए, जैसा कि चीन के साथ जारी है, तो? ऐसा होगा तो नहीं, लेकिन टैरिफ रेट्स के बाद कुछ तो हुआ ही है!

ईरान से तेल मत खरीदो!

ये एक जरूरी मुद्दा है, क्योंकि भारत कम दामों पर अपना ज्यादातर तेल ईरान से खरीदता है, लेकिन अमेरिका भारत पर दबाव बना रहा है कि वो ईरान से तेल न आयात करे. कहीं और से ले ले. जबकि भारत पहले ही ईरान से तेल का एक बड़ा हिस्सा आयात करना बंद कर चुका है. हालांकि‍ ईरान और भारत के बीच चाबहार पोर्ट इन सबसे बाहर है. लेकिन भारत को अमेरिका को किसी तरह मनाने का काम करना ही पड़ेगा, ताकि उसका असर ईरान के साथ कूटनीतिक रिश्ते पर न पड़े, क्योंकि ईरान भारत के लिए स्ट्रैटेजिक तौर पर भी जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान को बाईपास कर अफगानिस्तान और यूरोप जाने के लिए यहीं से रास्ता मिलता है.

रूस का ‘बुलावा’

भारत, रूस से S-400 triumf मिसाइल सिस्टम खरीदने वाला है, इससे भी भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध का खतरा मंडरा रहा है. रूस से हथियार खरीदने या उसको बेचने पर अमेरिका CAATSA प्रतिबंध लगाती है. S-400 triumf  डिफेंस सिस्टम दुनिया की सबसे एडवांस तकनीक है और चीन के पास पहले से मौजूद है. भारत ये लेता है, तो उससे वो पाकिस्तान के F-16 फाइटर जेट को मार गिराने में सक्षम हो जाएगा. ये फाइटर जेट पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदा है.

जुलाई में भारत और रूस ने CAATSA से बचने के लिए पेमेंट करने के तरीकों पर प्लान बनाया है. साथ ही भारत इस कोशिश में भी लगा है कि इन प्रतिबंधों से बचा जा सके. अब जब भारत और अमेरिका करीब आ रहे हैं, तो भारत को इसमें राहत मिलने की आस है.

पसंदीदा लिस्ट से बाहर

टैरिफ रेट में हुए बदलावों के बाद से दोनों देशों को हो रहे नुकसान के बाद भारत को GSP से बाहर करना अमेरिका की आर्थिक से ज्यादा एक राजनीतिक चाल है. GSP एक सिस्टम है, जिसमें विकासशील देशों के नाम होते हैं और उनको विकास की खातिर मदद के लिए कुछ रियायतें दी जाती हैं. भारत का इस लिस्ट में से निकाला जाना ट्रंप की उन चालों का ही हिस्सा है, जिसमें वो अपने दोस्तों पर दबाव बना रहे हैं, ताकि अपने व्यापारिक घाटों को कम कर सके.

इसी बीच अमेरिका की सीनेट ने भारत को रक्षा सहयोगों में नाटो-सदस्य के बराबर का दर्जा देने का समर्थन भी किया. इससे ये पता चलता है अमेरिका, भारत के साथ कूटनीतिक रूप से जुड़े रहने के लिए भी हमेशा तैयार है.

तो यही सब है, जो भारत और अमेरिका के रिश्तों में चल रहा है.

भारत-अमेरिका रिलेशनशिप स्टेटस: इट्स कॉम्प्लीकेटेड!

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